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लखनऊ: सामाजिक संस्था रिहाई मंच ने अखिलेश सरकार द्वारा मुजफ्फरनगर सांप्रदायिक हिंसा में मारे गए लोगों के लापता होने के नाम पर मुआवजा देने की घोषणा पर कहा है कि ‘सरकार उन्हें लापता कहकर हत्यारों और अपने पुलिस महकमे और खुद को बचाकर इंसाफ का कत्ल कर रही है.’
रिहाई मंच महासचिव राजीव यादव ने कहा कि मुजफ्फरनगर सांप्रदायिक हिंसा में जिन लापता लोगों के परिजनों को मुआवजा देने की घोषणा की गई है, उनको सांप्रदायिक हिंसा में मार दिया गया था. इसमें से 13 लोग लिसाढ़ गांव से हैं, जिनमें सिर्फ दो लोगों की लाशें उस दरम्यान बरामद हुई थीं. इसी तरह हड़ौली, बहावड़ी, ताजपुर सिंभालका से भी हत्या कर लाशें गायब कर दी गईं थीं. जबकि चश्मदीद गवाह कहते हैं कि हत्याएं उनके सामने हुईं.
राजीव यादव आगे कहते हैं, ‘पुलिस तो घटनास्थल पर तुरंत पहुंच गई थी फिर यह लाशें किसने गायब कीं? मुजफ्फरनगर-शामली सांप्रदायिक हिंसा में सबसे अधिक 13 हत्याएं झेलने वाले लिसाढ़ गांव के पीड़ितों पर जांच कर रहे एसआईसी के मनोज झा आरोपियों का नाम निकलवाने के लिए लगातार दबाव डालते रहते थे.’ राजीव यादव ने मुख्यमंत्री अखिलेश यादव से सवाल किया है कि ऐसी सांप्रदायिक जेहनियत वाले पुलिस अधिकारियों के खिलाफ कब कार्रवाई होगी?
मुजफ्फरनगर हिंसा की कानूनी लड़ाई लड़ रहे अधिवक्ता असद हयात ने कहा कि मारे गए उन लोगों – जिन्हें सांप्रदायिक हिंसा में मारा जाना माना ही नहीं गया – उनको सरकार कब मृतक मानेगी? उन्होंने बताया कि रिहाई मंच के राजीव यादव द्वारा डूंगर निवासी मेहरदीन की हत्या की एफआईआर दर्ज कराई गई थी. सांप्रदायिक हिंसा में मारे गए डूंगर निवासी मेहरदीन की हत्या का मुकदमा दर्ज कराने पर महीनों बाद पुलिस ने उन्हें यह कहकर मुजफ्फरनगर बुलाया कि पोस्टमार्टम के लिए लाश निकाली जाएगी. पर बयान दर्ज करने के बावजूद लाश नहीं निकाली गई. इसी तरह सांप्रदायिक हिंसा में मारे गए लोगों के और भी एफआईआर हुए.
असद हयात ने कहा कि लगभग 10 हत्याएं जनपद बागपत में हुई जिन्हें सरकार ने सांप्रदायिक हिंसा में हुई मौत नहीं माना है. 25 से अधिक मामले ऐसे भी हैं जिनकी निष्पक्ष विवेचना नहीं हुई और इन व्यक्तियों की सांप्रदायिक हत्याओं को पुलिस ने आम लूटपाट की घटनाओं में शामिल कर दिया. मुख्य साजिशकर्ता भाजपा और भारतीय किसान यूनियन के नेताओं और इनसे जुड़े संगठन के नेताओं के विरुद्ध धारा 120 बी आपराधिक साजिश रचने के जुर्म में कोई जांच ही नहीं की गयी. ऐसा कर सरकार खुद व अपने दोषी पुलिस महकमें को बचा रही है.