आस मोहम्मद कैफ, TwoCircles.net
मुज़फ्फरनगर : उत्तर प्रदेश सरकार के अवैध बूचड़खानो और बिना लाइसेंस वाली दुकानों को बंद करने के फैसले के 15 दिन बाद इस कारोबार से पूरी तरह जुड़े कुरैशी समाज पर अब रोजगार का संकट खड़ा हो गया है. धीरे-धीरे उनकी उम्मीद कमजोर पड़ने लगी है और समाज में निराशा पनपने लगी है.
शादी के मौसम और स्कूलों में एडमिशन के चलते अब जरुरी खर्चे में भी उसे दिक्कत का सामना करना पड़ रहा है. बड़ी समस्या छोटे कस्बो में है जहां कोई बूचड़खाना नहीं है और लाइसेंस वाली दुकाने तो बिल्कुल नही हैं. ऐसे तब भी हुआ है जब नगर पंचायत में ज्यादातर सदस्य मुसलमान ही रहे हैं.
गोश्तबंदी के बाद से कुरैशी समाज पर इसका क्या असर पड़ा है यह जानने के लिए TwoCircles.net ने कुरैशीबहुल क़स्बे मीरापुर का दौरा किया. कुल नौ हजार मुस्लिमो में यहां तीन हजार से ज्यादा सिर्फ कुरैशी हैं और ज्यादातर कुरैशी यहां गोश्त के कारोबार से जुड़े हैं.
यह क्षेत्र चमड़ा और हड्डी व्यापारियों का भी गढ़ कहलाता है. यहां के मुस्तकीम कुरैशी एकमात्र ऐसे गोश्त कारोबारी हैं जिनके पिता के नाम गोश्त बेचने का लाइसेंस है. 2008 में उनके पिता हाजी अमीर मोहम्मद के नाम यह लाइसेंस जारी किया गया था. मुस्तकीम के पिता 1968 से यह काम करते थे, अब वो बुजुर्ग हैं और मुस्तकीम यह काम संभालते है. मुस्तकीम इसके अलावा कोई और काम नहीं जानते और न उन्होंने सीखने की कोशिश की.
बातचीत में मुस्तकीम कहते हैं, ‘बचपन से ही अब्बा के साथ दुकान पर आने लगा था. घर में सबसे बड़ा हूं, 20 साल से यही काम कर रहा हूं. पांच बच्चे हैं और पहली बार इतने वक़्त के दुकान बंद हुई है. इसके अलावा कोई और काम कर नहीं सकता क्योंकि कुछ और आता नहीं. सभी बच्चे स्कूल जाते हैं. अब कुछ समझ में नही आ रहा. जो शर्त रखी गयी है उनमें कुछ आसान है मगर कुछ बहुत मुश्किल.’
गोश्त के कारोबार से जुड़े ज्यादातर कुरैशी इसी तरह के पशोपेश में हैं. 60 साल के मेहरबान अब भी गोश्त की दुकान चलाते है. उनके अनुसार भाजपा की सरकार पहले भी आई मगर गरीबों के पेट पर उन्होंने कभी लात नहीं मारी. अब पूरी उम्र इसी काम में कट गई. कुछ और ना हमें आता है और न बच्चों को.
अकेले मीरापुर में 100 से ज्यादा दुकाने हैं और सब बन्द हो गयी हैं. लगभग 20 दिन हो गए हैं. किसी ने कुछ अलग करने का प्रयास भी किया है, जैसे दिलशाद एक दिन कपड़ा बेचने चला गया मगर 200 रुपए का नुकसान करा आया. दिलशाद कहता है, ‘हमें गोश्त काटकर बेचने का तजुर्बा है, अब नया काम सीखने में वक़्त लगेगा. 500 रुपये रोज कमा लेते थे, अब रूटीन बिलकुल बदल गया है.’
एक और अरशद कुरैशी की भी सुन लीजिये. वे कहते हैं, ‘अगले सप्ताह साली की शादी है और बेटे का एडमिशन भी कराना है. कारोबार बन्द हो गया. अब कोई उधार देने में भी हिचक रहा है कि यह वापस करेगा कैसे? योगी जी ने ये कहां फंसा दिया?’
पिछले दिनों यहां के कुरैशी समाज के बहुत सारे लोग स्थानीय समाजसेवी और जमीयत-उल-कुरेश के नेता शिब्ली जीशान के नेतृत्व में लखनऊ गये थे. वहां वो सिराज कुरैशी से मिले. सिराज कुरैशी वही नेता हैं, जिनकी मुलाक़ात उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से हुई थी. शिब्ली जीशान कहते हैं, ‘वहां से आश्वासन मिला है. जल्दी ही कुछ हो जायेगा. उम्मीद है 20 तक कोई हल निकल जाएगा, सरकार को किसानों के साथ गोश्त कारोबारियों के चेहरे पर भी मुस्क़ान लानी चाहिए.’
सवाल यह भी है कि कस्बो में कमेला और दुकानों के लाइसेंस बनवाने के प्रयास क्यों नही किए गए. कभी न कभी तो ऐसा होना ही था. हाजी अमीर मोहम्मद बताते हैं कि चेयरपर्सन रही रेखा गुप्ता ने जरूर गंभीर प्रयास किये थे. उन्होंने जमीन उपलब्ध करा दी थी, निर्माण भी होने लगा था मगर राजनीति का पेंच फंसाकर इसका काम रुकवा दिया गया.
और लाइसेंस क्यों नही बन पाए? इसका जवाब मोहम्मद अलीम देते हैं. जो 30 साल से एक ही दुकान में गोश्त बेचते हैं. कहते हैं, ‘हमने कई बार कोशिश की. किसी ने बनाया ही नही. नेता लोग कहते थे क्यों चक्कर में पड़ते हो, टैक्स लग जायेगा, जैसे चल रहा है चलने दो, कैसे चलता था और अब नेता लोग कहां हैं?’
इरशाद कहते है कि उनकी चिड़िया फुर्र हो गयी है और मुस्तक़बिल में अंधेरा हो गया है. मगर क्या आपको प्रदेश के मुख्यमंत्री से कोई उम्मीद है? इसका जवाब गुलजार देते हैं और कहते हैं, ‘बिलकुल है. वो सबके सीएम हैं. हमारे पेट पर लात कैसे मार सकते हैं. वो जरूर कुछ बेहतर करेंगे जिससे हमारे परिवार को ख़ुशी मिले.’