अभी बची है इंसानियत…

सिराज माही


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जब आप सुबह-सुबह नींद की खुमारी में होते हैं, ठीक उसी वक़्त कोई सड़क किनारे भूखी चींटियों को खाना खिला रहा होता है.

ये कहानी 65 साल के रोहतास शर्मा की है, जो रोज़ सुबह नोएडा सेक्टर-62 के फोर्टिस हॉस्पिटल से खोड़ा 21 नम्बर टंकी जाने वाले रास्ते पर एक थैली में भुना हुआ आंटा लिए जगह-जगह डालते हुए नज़र आते हैं.

इसी रास्ते पर सुबह-सुबह अपनी सेहत की फ़िक्र करने वाले लोग जॉगिंग या मार्निंग वॉक करते हैं, लेकिन रोहतास शर्मा अपने काम में मशगूल चींटियों के बिल तलाश कर रहे होते हैं. जहां भी चींटियों का झुंड दिखता है, वहां थोड़ा सा आंटा डाल देते हैं, ताकि ये चींटियां खा सकें.

रोहतास शर्मा से यह पूछने पर कि इन चींटियों को खाना खिलाने से उन्हें क्या फ़ायदा होता है? इस पर वो कहते हैं कि, ‘बेटा यह अपने-अपने मन की बात है. मैं अपने मन की शांति के लिए करता हूं. एक जीव को दूसरे जीव की रक्षा करनी चाहिए, इसलिए मैं इन जीवों की रक्षा कर रहा हूं.’

वो आगे बताते हैं कि, ‘मैं दरअसल एक किसान हूं. जब मैं खेती करता था, तब खेत में हल चलाने के दौरान मुझसे जाने-अनजाने बहुत से जीव मर गए हैं. उन जीवों की हत्या के बदले मैं इन चींटियों को जिलाने के लिए इन्हें खाना दे रहा हूं.’

रोहतास शर्मा ने इन भूखी चींटियों को खाना खिलाने की वजह यह भी बताई कि मैं घर पर खाली रहता हूं, इसलिए टहलने के बहाने सुबह-सुबह चला आता हूं. इस तरह मेरे दो काम हो जाते हैं. एक तो भूखी चींटियों को खाना मिल जाता है. दूसरा मेरा टहलना भी हो जाता है. घर पर बैठे-बैठे गोड़ (पैर) में दर्द हो जाता है. वैसे भी आज कल ड्यूटी वालों को फ़ुर्सत कहां. सब अपने-अपने में पड़े हैं, संतुष्ट नहीं हैं. वो कुछ याद करते हुए ये लाईन गुनगुनाते हैं-

देख पराई चूपड़ी मत ललचाओ…

रूखी-सूखी खाकर ठंडा पानी पियो…

एक बिल के किनारे आंटा डालते हुए रोहतास शर्मा ने बताया कि हमें चींटियों को खाना खिलाते हुए क़रीब 20 साल हो गया है. पहले गांव में वक़्त निकाल कर चींटियों को खाना देता था. अब यहां वही काम कर रहा हूं.

रोहतास शर्मा ने बताया कि मुझे यह बात बहुत ख़राब लगती है कि इंसान सिर्फ़ अपने जीभ के स्वाद के लिए जीवों की हत्या करता है.

यह पूछने पर कि आप महीने में कितना आंटा इन चींटियों को खिला देते हैं. इस पर वो कहते हैं कि, मैं हर महीने क़रीब पांच किलो आंटा लाता हूं, उसे भून कर रख देता हूं. हर दिन थोड़ा-थोड़ा लेकर इन चींटियों को डाल देता हूं.

आप इन्हें भुना हुआ आंटा क्यों देते हैं? इस सवाल पर शर्मा बताते हैं कि कच्चा खाना जब हम नहीं खा सकते तो इन चींटियों को कैसे दे दें.

बता दें कि रोहतास शर्मा उत्तर प्रदेश के सम्भल ज़िले से ताल्लुक़ रखते हैं. नोएडा में क़रीब बीस सालों से रह रहे हैं. उनके भाई डीडीए में सरकारी कर्मचारी हैं. गांव में पचासों बीघा ज़मीन है, जो बटाई पर दी हुई है. इनके दो बच्चे हैं, एक बेटा और एक बेटी है. बेटी की शादी हो चुकी है. बेटे के साथ खुद रहते हैं. बेटा टैक्सी चलाता है. और ये घर पर रहते हैं.

रोहतास शर्मा ने आख़िर में हमसे विदा लेते हुए कहा कि बेटा चींटियों और किसी जानवर की सेवा करने से बेहतर है कि आप अपने मां-बाप की सेवा करो. क्योंकि सबसे बड़ी सेवा मां-बाप की होती है.

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