कलीम सिद्दीक़ी
अहमदाबाद : ऊना कांड की पहली बरसी पर 11 जुलाई को राष्ट्रीय दलित अधिकार मंच ने गौ-आतंक और भीड़ तन्त्र के ख़िलाफ़ एक दिवसीय सम्मलेन में एक बार फिर से भाजपा को चेताया है कि दलित समाज ऊना के अत्याचार को अभी भूला नहीं है.
इस सम्मेलन को संबोधित करते हुए राष्ट्रीय दलित अधिकार मंच के संयोजक जिग्नेश मेवाणी ने कहा कि, ऊना आन्दोलन 1927 में बाबा साहेब के महाड सत्याग्रह जैसा था, जिसने भाजपा व संघ को मुंहतोड़ जवाब दिया. पिछले साल 20 से 25 हज़ार दलितों ने सौगंध ली थी कि वो अब मैला नहीं उठाएंगे. गटर में नहीं उतरेंगे. मृत पशु की खाल निकालने का काम नहीं करेंगे. इसके बदले सरकार से वैकल्पिक रोज़गार के तौर पर पांच एकड़ ज़मीन मांगेंगे जो उनका क़ानूनी हक़ है. परन्तु सरकार ने अब तक वैकल्पिक रोज़गार की व्यवस्था नहीं की. इसलिए हमने निर्णय लिया है कि दलित आन्दोलन में अस्मिता के साथ-साथ आर्थिक मुद्दों को भी जोड़ा जाएगा. साथ ही दलित-मुस्लिम एकता को और मज़बूत किया जाएगा. मुसलमानों की धर्म के आधार पर हत्या को दलित समाज बर्दाश्त नहीं करेगा.
मेवाणी ने गौरक्षकों की गुंडागर्दी पर प्रधानमंत्री के मुंह खोलने पर भी सवाल किया. उन्होंने कहा कि, क्या कारण है कि मोदी जी मुहं खोलते हैं, परन्तु दलित-मुस्लिम विरोधी घटनाएं नहीं रुक रही हैं. सिर्फ़ इतना परिवर्तन आया है कि पहले गौ-गुंडे वीडियो वायरल करने के लिए बनाते थे तो वीडियो में उनका चेहरा भी होता था, अब इस तरह से बनाते हैं कि सिर्फ़ पीड़ित का ही चेहरा वीडियो में नज़र आता है. इन गुंडों को पूरा यक़ीन है कि वह कुछ भी करें, राजसत्ता उन्हें प्रोटेक्ट करेगी. इसी कारण से घटनाएं नहीं रुक रही हैं.
जिग्नेश ने इस बात पर भी ज़ोर दिया कि राष्ट्र और संविधान बचाने के लिए एक डेमोक्रेटिक फ्रंट बनाया जाए. उन्होंने बताया कि गुजरात में कागज़ पर दलितों को ज़मीन दी गई है, लेकिन सनद, क़ब्ज़ा नहीं दिया जाता है. भूमिहीन दलितों को ज़मीन का टुकड़ा मिले, यह उसका क़ानूनी हक़ है. सरकार ने हाईकोर्ट में हलफ़नामा देकर माना है कि दलितों की ज़मीनों पर उच्च जाति का क़ब्ज़ा है. फिर भी सरकार कुछ नहीं करती. वाइब्रेंट गुजरात के नाम पर देशी-विदेशी कंपनियां गुजरात में ज़मीनों की लूट कर रही हैं.
इस सम्मेलन में जेएनयू छात्र संघ के पूर्व अध्यक्ष कन्हैया कुमार भी मौजूद थे. उन्होंने सभा को संबोधित करते हुए कहा कि, इस देश में सबसे ज़्यादा सेक्यूलर मुसलमान हैं. मुझे सबसे पहला सेकूलरिज़्म का ज्ञान जिससे मिला उसका नाम मोहम्मद क़ासिम है.
कन्हैया ने धर्म रक्षा के नाम पर हो रहे आतंक पर कहा कि, हिन्दुओं को भगवान ने बनाया है न कि भगवान को हिन्दुओं ने. वह इतना कमज़ोर नहीं हैं, जो उनकी रक्षा करनी पड़ रही है. इसी प्रकार से इस्लाम भी इतना कमज़ोर नहीं है.
उन्होंने आगे कहा कि, मुसलमानों में विश्वास पैदा करने की ज़रूरत है. मैं एक बात कह देना चाहता हूं कि इस देश के मुसलमान न ही यहूदी हैं. न ही वह लोग जो हिटलर बनने की कोशिश कर रहे हैं, वो हिटलर हैं. इस्लाम विश्व का दूसरा सबसे बड़ा मज़हब है. वह मिटने वाला नहीं. हमें समतामूलक समाज चाहिए न कि भीड़ तन्त्र और खून ख़राबा वाला.
दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रोफ़ेसर रतन लाल ने कहा कि, संघियों को घी पच नहीं पा रहा है. पहले मुग़लों की गुलामी की. इन लोगों ने मुगलों के समय मंदिरों-मठों के नाम पर भीख मांगकर सिर्फ़ सोना जमा किया. फिर अंग्रेज़ों की मुख़बरी की. इसलिए सत्ता को पचा नहीं पा रहे हैं. ये लोग मात्र एक विचारधारा को लागू करना चाहते हैं. भविष्य में अम्बेडकरवाद और मनुवाद को लेकर बड़ा संघर्ष हो सकता है, इसके लिए हमें तैयार रहना चाहिए. दलित समाज के लोग थोड़ा अच्छा कपड़ा भी पहनकर निकलते हैं तो इन संघियों को लगता है कि ये दलित इनके धर्म के ख़िलाफ़ विद्रोह कर रहा है.
सबा दीवान की नुमाइंदगी करने वाले राजा हैदर ने कहा कि, जब सबा दीवान और राहुल रॉय ने फेसबुक पर लिखा ‘नॉट इन माय नेम’ और तय किया नहीं डरेंगे तो उन्होंने भी नहीं सोचा था कि यह चिंगारी इतनी बड़ी हो जाएगी. अब तक ‘नॉट इन माय नेम’ से 6 देशों और 26 राज्यों में प्रदर्शन हो चुका है. अंतर्राष्ट्रीय मीडिया ने महसूस किया कि कुछ तो ग़लत हो रहा है और प्रश्न किया 12 घंटे के अंदर प्रधानमंत्री मुहं खोलने को मजबूर हुए.
इस सम्मेलन में पहलू खान के भतीजे रफ़ीक, जो घटना के समय मौजूद थे, इन्हें भी गौरक्षकों ने पीटकर घायल कर दिया था. रफ़ीक ने सिलसिलेवार तरीक़े से पूरी घटना बताया. रफ़ीक़ के अनुसार अब तक सभी आरोपी नहीं पकड़े गए हैं. जो पकड़े गए हैं, उनको अगली तारीख़ पर ज़मानत मिलने वाली है. जो पैसे और गाय छीनी गई थी वह अब तक नहीं मिली है.
जुनैद के भाई ने कहा कि, ट्रेन में झगड़ा सीट को लेकर नहीं हुआ था. झगड़ा मुसलमान, मुल्ले, गौमांस खाने वाले और पाकिस्तानी जैसी सांप्रदायिक टिप्पणी पर ही हुआ था. ये देश किसी एक का नहीं, सब का है. हमारे पूर्वजों ने देश के लिए क़ुरबानी दी है.
इस सम्मलेन में देश भर के दलित कार्यकर्ता एवं प्रगतिशील विचारधारा के लोग शामिल थे.