सरस्वती अग्रवाल
‘शुद्ध पियो, शुद्ध जियो’ ये लाईन किसी उत्पाद के विज्ञापन की नहीं, बल्कि ये वाक्य है उत्तराखण्ड के राज्य जनपद चमोली के गडोरा गांव के 38 वर्षीय निवासी लक्ष्मण सिंह का. जो फलों का जूस बेचकर परिवार चला रहे हैं.
इन्होंने 12वीं तक पढ़ाई की है. 3 बेटियों, एक बेटे तथा पत्नी को मिलाकर परिवार में कुल 6 सदस्य हैं. पत्नी आरती देवी ने भी 12वीं तक शिक्षा प्राप्त की है, जो फिलहाल आशा कार्यकर्ता हैं.
लक्ष्मण सिंह अपने गांव के प्रधान भी हैं. उनके पास 10 नाली यानी आधा एकड़ भूमि है. स्वयं का पक्का मकान है, जिसमें दो कमरे हैं. फलों से जूस निकालने के अलावा आय के अन्य स्रोतों में लक्ष्मण सिंह ने दो घोड़ों (सामान ढ़ोने के लिए) के साथ-साथ दो भैंसों को भी पाला है. साथ ही कृषि कार्य भी करते हैं. इस तरह अलग-अलग स्त्रोतों से महीने का क़रीब 25 हज़ार रूपये वो कमा लेते हैं.
वो अपने जूस के बिजनेस के बारे बताते हैं कि, पहले पूरे-पूरे दिन मेरे दुकान के क़रीब कोई नहीं आया. लेकिन मैंने हार नहीं मानी. जूस बनाते समय साफ़-सफ़ाई का पूरा ध्यान रखा और संतरे का 15 लीटर व 3 लीटर आंवले का जूस तैयार कर काफ़ी कम मूल्य में लोगों को उपलब्ध कराया, ताकि लोग उसके स्वाद से परिचित हो जाएं. आख़िरकार मेहनत रंग लाई. लोगों को मेरे जूस का स्वाद पसंद आया और धीरे-धीरे गांव भर में लोगों के बीच जूस प्रसिद्ध हो गया.
लक्ष्मण सिंह कहते हैं, ‘शुरु में जो दिक्कत आई सो आई, अब तो सब ठीक चल रहा है. परिवार बड़ा है, इसलिए सिर्फ़ एक काम पर निर्भर नहीं रहा जा सकता. कई काम एक साथ करने होते हैं. ऐसे में जूस बनाने में पत्नी सहयोग करती है. वो फलों व फूलों को इकट्ठा करने तथा बर्तन साफ़ करने और जलावन की लकड़ियां लाने में मेरी पूरी मदद करती हैं.’
लक्ष्मण सिंह की ख़ास बात यह है कि अब वो गांव-गांव जाकर महिलाओं को फल प्रसंस्करण का प्रशिक्षण दे रहे हैं, ताकि अलग-अलग गांव में ख़ासतौर पर महिलाओं को रोज़गार मिल सके. इतना ही नहीं, आगे उनकी योजना गांव में बनने वाले इन जूस को शहर तक पहुंचाने की भी है.
भविष्य में इस काम को कहां देखना चाहते हैं? इस सवाल के जवाब में उत्साहित होकर लक्ष्मण सिंह कहते हैं कि, ‘मेरा इरादा नज़दीकी बाज़ार में फल प्रसंस्करण की एक बड़ी इकाई स्थापित करने का है, ताकि दूर-दराज़ के लोग भी ताज़े जूस का स्वाद चख सकें.’
व्यवसाय से मुनाफ़ा कमाने के साथ ही लोगों के स्वास्थ को ध्यान में रखकर उत्पाद बनाने की लक्ष्मण सिंह की सोच उन सबके लिए किसी सीख से कम नहीं, जो थोड़े से लाभ और बाज़ारवाद की होड़ में लोगों के स्वास्थ को अनदेखा कर देते हैं. आशा है लक्ष्मण सिंह की ये कहानी हम सबको एक नई दिशा देगी. (चरखा फीचर्स)