TwoCircles.net News Desk
नई दिल्ली : ट्रिपल तलाक़ मामले में केंद्र सरकार की ओर से सुप्रीम कोर्ट में हलफ़नामा दायर किया गया है, जिसमें कहा गया है कि ट्रिपल तलाक के प्रावधान को संविधान के तहत दिए गए समानता के अधिकार और भेदभाव के खिलाफ़ अधिकार के संदर्भ में देखा जाना चाहिए.
केंद्र ने कहा कि लैंगिक समानता और महिलाओं के मान-सम्मान के साथ समझौता नहीं हो सकता.
केंद्र सरकार ने यह भी कहा है कि भारत जैसे सेक्युलर देश में महिला को जो संविधान में अधिकार दिया गया है, उससे वंचित नहीं किया जा सकता.
तमाम मुस्लिम देशों सहित पाकिस्तान के क़ानून का भी केंद्र ने हवाला दिया है, जिसमें तलाक़ के क़ानून को लेकर रिफॉर्म हुआ है और तलाक़ से लेकर बहु-विवाह को रेग्युलेट करने के लिए क़ानून बनाया गया है.
ट्रिपल तलाक़ को लेकर केंद्र सरकार ने कोर्ट के सामने कुछ सवाल रखे हैं:—
1. धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार के तहत ट्रिपल तलाक़, हलाला और बहु-विवाह की इजाज़त संविधान के तहत दी जा सकती है या नहीं?
2. समानता का अधिकार और गरिमा के साथ जीने का अधिकार और धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार में प्राथमिकता किसको दी जाए?
3. पर्सनल लॉ को संविधान के अनुछेद 13 के तहत क़ानून माना जाएगा या नहीं?
4. क्या ट्रिल तलाक़, हलाला और बहु-विवाह उन अंतरराष्ट्रीय क़ानूनों के तहत सही है, जिस पर भारत ने भी दस्तखत किये हैं?
केन्द्र के इन बातों व सवालों पर ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड का कहना है कि, ट्रिपल तलाक़ को महिलाओं के मौलिक अधिकारों का हनन बताने वाले केंद्र सरकार का रुख बेकार की दलील है. पर्सनल लॉ को मूल अधिकार के कसौटी पर चुनौती नहीं दी जा सकती. इसलिए केंद्र सरकार ने इस मामले में जो स्टैंड लिया है कि इन मामलों को दोबारा देखा जाना चाहिए, क्योंकि ये बेकार का स्टैंड है.