अफ़रोज़ आलम साहिल, TwoCircles.net
नई दिल्ली: प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से मौलाना महमूद मदनी की क़यादत में 25 मज़हबी रहनुमाओं की मुलाक़ात का विरोध हो रहा है. मुस्लिम तंज़ीमों में इस मुलाक़ात को लेकर तरह-तरह के सवाल उठ रहे हैं. कहा जा रहा है कि इस मुलाक़ात का फ़ायदा कम, नुक़सान अधिक हुआ है. सोशल मीडिया पर भी तमाम लोग इस मुलाक़ात को शक़ के दायरे में रखकर देख रहे हैं.
इस मुलाक़ात के विरोध में सोशल मीडिया पर कई मुस्लिम नौजवानों ने अपनी राय ज़ाहिर की है. ज़्यादातर की पोस्ट का निचोड़ यह है कि यह मुलाक़ात बग़ैर किसी आधार व सिद्धांत के जल्दबाजी में अपने सियासी फ़ायदे के लिए उठाया गया क़दम है.
दबी ज़बान में कुछ मिल्ली रहनुमा इस बात की ओर भी इशारा करते हैं कि तमाम मुस्लिम तंज़ीमों के बीच एक आपसी समझौता भी हुआ था कि कभी भी देश के प्रधानमंत्री से मुलाक़ात होगी तो एक साथ ही होगी और मुद्दों के आधार पर होगी. मगर इस मुलाक़ात में कहीं इस समझौते की छाया भी नज़र नहीं आई.
जमीयत उलेमा-ए-हिन्द के एक दूसरे धड़े के अध्यक्ष मौलाना अरशद मदनी से इस बारे में पूछने पर वो कहते हैं कि, जो गया था, उसी से सारे सवाल पूछिए. मैं उस संबंध में कुछ भी नहीं बोलूंगा.
अगर पीएम मोदी आपको बुलाएं तो आप क्या मिलने जाएंगे? इस सवाल के जवाब में मौलाना अरशद मदनी का कहना है कि, ‘मैं सियासी आदमी नहीं हूं. मैं किसी भी प्रधानमंत्री से खुद मिलने-मिलाने का ख्वाहिशमंद भी नहीं हूं. लेकिन वो देश के प्रधानमंत्री हैं, अगर वो बुलाएंगे तो ज़रूर जाउंगा. लेकिन खुद से मिलने का ख्वाहिशमंद बिल्कुल भी नहीं हूं. नंबर लगाकर मिलना तो शायद पूरी ज़िन्दगी कभी भी नहीं.’
शायद बातों-बातों में इनका इशारा अपने भतीजे महमूद मदनी की ओर था, क्योंकि मिल्ली तंज़ीमों में चर्चा इस बात की भी है कि पीएम मोदी से मिलने के लिए महमूद मदनी पिछले ढाई साल से कोशिश में लगे थे.
ऑल इंडिया मुस्लिम मजलिस-ए-मशावरत के राष्ट्रीय अध्यक्ष नवेद हामिद का कहना है कि कोई भी तंज़ीम या शख़्स अपने तौर पर आज़ाद है. ये उनकी कार्यकारिणी का फैसला होगा.
नवेद हामिद आगे कहते हैं कि हम तो दुआ करते हैं कि इस मुलाक़ात का मुसलमानों को कुछ फ़ायदा पहुंचे. उनकी इस मुलाक़ात का देश व क़ौम पर असर दिखे और मोदी साहब से जिन-जिन मुद्दों पर बात हुई है, उन पर कुछ काम करें. इसके लिए हमें तीन महीने का समय ज़रूर देना चाहिए. इंतज़ार करना चाहिए कि मोदी जी क्या करते हैं.
वहीं पत्रकार अब्दुल वाहिद आज़ाद बताते हैं, जहां तक मुलाक़ात का सवाल है तो याद रहे महमूद मदनी ने मोदी से नहीं देश के प्रधानमंत्री से मुलाक़ात की. इस पर सवाल उठाना बेमानी है. लेकिन मुलाक़ात के बाद पीएमओ और जमीयत के बयान में तज़ाद मेरे लिए परेशान करने वाले हैं. पीएमओ के बयान से साफ़ होता है कि ये मुलाक़ात मुसलमानों के लिए न सिर्फ़ बेसूद रही, बल्कि नुक़सानदेह रही.
वो आगे बताते हैं कि मोदी इस वफ़द ये क़बूल कराने में कामयाब रहे कि उनकी सरकार मुसलमानों के लिए जो कर रही है वो क़ाबिल-ए-इत्मिनान है. तीन तलाक़ पर भी अपने मुअक़फ़ पर हामी भरवा ली. ये वफ़द गौ-रक्षा के नाम पर जारी गुंडागर्दी पर भी कुछ नहीं बोल सका. साफ़ है ये वफ़द बिना तैयारी के गया था और बेइज़्ज़त हुआ.
आज़ाद आगे यह भी कहते हैं कि, ‘जमीयत उलेमा-ए-हिंद कांग्रेस की ‘दलाली’ करती आई है. अब बदले दौर में उन्हें सूझ ही नहीं पाया कि जब मोदी से मिलेंगे तो कैसे फंस जाएंगे. एक तरफ़ शिकारी और दूसरे तरफ़ दलाली की अदालत. दलाल को फंसना ही था.’
सामाजिक संगठन अनहद से जुड़े उवेस सुल्तान खान ने अपने फेसबुक हैंडल पर लिखा है, ‘तमाम बड़ी (और पुरानी) मुस्लिम तंज़ीमों का आपसी तमाम मतभेदों के बावजूद एक साथ बिन-लिखा समझौता था, साझी समझ बनाई थी कि वे कभी भी सरकार से मिलने जायेंगी (किसी भी मुद्दे पर) तो अकेले नहीं जायेंगी. साझा तौर पर एक साथ जायेंगी, एक दूसरे के साथ समझ बनाकर. और इस बिन लिखे समझौते को अभी मोदी के दौर में नहीं, बल्कि पिछली सरकारों के दौरान भी अपनाया जाता रहा. डॉ. मनमोहन सिंह जब प्रधानमंत्री थे तब भी सब एक साथ ही गये थे.’
वो आगे लिखते हैं कि, ‘इस हुकूमत के आने पर भी इस साझी समझ को ही समझौते के तौर पर माना जाता रहा, इस दौर में कई बार प्रस्ताव आये मोदी से मिलने पर आम सहमति नहीं बन पाई, इसलिए कोई अकेला नहीं गया. पर आज महमूद मदनी गिरोह (जमीयत उलेमा हिन्द का एक गुट) ने इस समझौते को तोड़ते हुए मोदी से मुलाक़ात की. यह अपने आप में एक बड़ा धोखा है. ये कहना कि किसी क़ातिल से मिलना एक हिकमत है, इससे बड़ा मुनाफ़िक़ जुमला कोई नहीं हो सकता इस मामले पर.’
उन्होंने अपनी लंबी पोस्ट में आगे यह भी लिखा है, ‘पहले नई नवेली खड़ी की गई मुस्लिम तंज़ीमों के रंग-बिरंगे कपड़े पहने ईमान-फ़रोश मिले और आज जमीयत उलेमा के बुज़ुर्गों की कुर्बानियों को रुसवा कर ज़ालिम के दरबार में हाज़री देने सफेदपोश लोग पहुँचे. शाह वलीउल्लाह की विरासत को आज इन्होंने तबाह कर दिया. मेरे दिल से सिर्फ़ लानतें ही निकल रहीं हैं इन मौकापरस्तों के लिए. कल 1857 गदर के 160 साल हो रहे हैं, आज इन तमाम लोगों ने वही किया जो उस दौर में ज़ालिम अंग्रेजों के साथ मिले गद्दार किया करते थे, हमारे बुज़ुर्गों और उलेमा के खिलाफ़.’ इसके आगे ओवैस ने लंबी नज़्म भी लिखी है.
स्पष्ट रहे कि मुसलमानों के मुद्दे सही तरीक़े से उठाए जाएं और सरकार उस पर सही कार्रवाई करे, इसके लिए ज़रूरी है कि क़ौम के सभी असरदार नेता एक प्लेटफॉर्म पर आएं और एक ही सुर में बात करें, लेकिन सरकार के दबदबे और सरकारी लाभ व फ़ायदे की महत्वाकांक्षाओं के चलते ये एकता बार-बार टूट कर बिखर जाती है. इस बार भी यही हुआ है. ऐसे में अगर इन कथित रहनुमाओं ने अपना रास्ता नहीं बदला तो क़ौम अपने भीतर से ही नई लीडरशीप ढ़ूंढ़ने के लिए मजबूर हो जाएगी.
बताते चलें कि मुसलमानों के 25 रहनुमाओं के एक दल ने जमीयत के एक धड़े के महासचिव मौलाना महमूद मदनी की क़यादत में मंगलवार को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से मुलाक़ात की.
महमूद मदनी के मुताबिक़ मुल्क में जो मौजूदा हालात हैं, जिस तरह का दहशत का माहौल है, ऐसे माहौल में प्रधानमंत्री मोदी के साथ यह मुलाक़ात ज़रूरी थी. यहां यह भी स्पष्ट रहे कि प्रधानमंत्री मोदी ने इस दल को बुलाया नहीं था, बल्कि खुद इसके लिए मौलाना महमूद मदनी से प्रधानमंत्री कार्यालय से समय मांगा था. 25 लोगों के दल में अख़्तरूल वासे, पी.ए. इनामदार, डॉ. ज़हीर ज़की, मो. अतीक़, हाजी सैय्यद वाहिद हुसैन चिश्ती अंगारशाह के अलावा बाक़ी सारे लोग जमीयत उलेमा-ए-हिन्द से जुड़े हैं.