आस मुहम्मद कैफ़, TwoCircles.net
बिजनौर : देश में खेल प्रतिभा के साथ ‘खेल’ होता रहता है. अगर खिलाड़ी महिला हो तो ये ‘खेल’ थोड़ा और बढ़ जाता है. बावजूद इसके लड़कियां खेल के मैदान में न सिर्फ़ बेहतर कर रही हैं, बल्कि देश का नाम ऊंचा करने में किसी भी मामले में लड़कों से पीछे नहीं हैं.
हालांकि इस बात से भी इंकार नहीं किया जा सकता कि खेल के मैदान में जाने से इन लड़कियों को घर के अंदर व बाहर दोनों जगह जुझना पड़ता है.
बिजनौर के स्टेडियम में भी कुछ करने की ललक और विपरीत परिस्थितयों में संघर्ष की अंदरूनी लड़ाई से जूझती दो लड़िकयों की कहानी भी कुछ ऐसी ही है.
नग़मा राष्ट्रीय स्तर पर हॉकी खेल चुकी हैं तो वहीं शीरीन फ़ातिमा उत्तर प्रदेश महिला रणजी टीम का हाल ही में कैम्प कर लौटी हैं. यह दोनों लड़कियां यहां आदर्श हैं. बल्कि इस जनपद की इन्हें सबसे बड़ी खेल प्रतिभा उन्हें कहा जा सकता है.
नग़मा हॉकी खेलती हैं और शीरीन क्रिकेट. हालांकि पहले शीरीन भी हॉकी खेलती थी और उत्तर प्रदेश का प्रतिनिधित्व कर चुकी हैं, मगर अब उन्होंने हॉकी स्टिक त्याग कर क्रिकेट बैट हाथ में ले लिया है.
ख़ास बात यह है कि वो क्रिकेट में भी प्रदेश का प्रतिनिधित्व कर चुकी हैं. उत्तर प्रदेश की अंडर-19 में उनका प्रदर्शन शानदार रहा है.
नग़मा भारत की उदयीमान हॉकी प्लयेर रही हैं. उनके साथ की कई खिलाड़ी भारतीय हॉकी टीम की सदस्य हैं. एक समय नग़मा को भविष्य की बेहतरीन सेन्टर फारवर्ड कहा जाता था. लेकिन नग़मा का करियर अब लगभग ख़त्म हो चुका है.
Twocircles.net के साथ बातचीत में नग़मा बताती हैं कि, बिजनौर में 9वीं में पढ़ती थी तो उसने हॉकी खेलनी लगीं. इंटर-स्कूल चैंपियनशिप में मेरी परफॉर्मंस बहुत बढ़िया थी. मेरठ में हुए इस टूर्नामेंट में मैं लाइमलाइट में रही. वहां हॉकी इंडिया व साईं के अधिकारी आए हुए थे. मेरा चयन साईं होस्टल के लिए कर लिया गया. वहां सभी बड़े खिलाड़ी आते थे. उसके बाद में लगभग सभी बड़े टूर्नामेंट और राष्ट्रीय स्तर पर खेलती रही. कई बार मैंने वर्तमान महिला हॉकी कप्तान रामपाल को चौंकाते हुए गोल किया.
वो कहती हैं कि, मैं सबा अंजुम बनना चाहती थी. सब कहते थे कि तुम उससे भी अच्छा खेलती हो. एक बार अंतर्राष्ट्रीय के चयन पक्का था. तगड़ी दावेदारी थी, मगर मैं डिमांड पूरी नहीं कर सकी.
नग़मा अब स्टेडियम में हॉकी खेल रही लड़कियों को टिप्स बताने आती हैं. नग़मा मानती हैं कि उसकी प्रतिभा को कई कारणों से दफ़न किया गया.
वो बताती हैं, हमको कोच ने इशारा दिया कुछ कॉम्प्रोमाइज करना पड़ेगा. बस इस कोम्प्रोमाइज़्ड शब्द ने हमसे किनारा करवा दिया.
शीरीन और नग़मा में गहरी दोस्ती है. नग़मा शीरीन की सीनियर भी रही हैं. शीरीन के पिता बिजनौर के बड़े ट्रांसपोर्टर हैं. नग़मा को जहां अपना पेशा खुद चुनने की आज़ादी है तो शीरीन का आधुनिक परिवार उसको ऊंचाई पर देखना चाहता है. लेकिन राष्ट्रीय स्तर पर नग़मा की प्रतिभा के साथ किए गए बर्ताव को देखकर शीरीन ने राह बदल ली. उसने हॉकी स्टिक रख दी और क्रिकेट खेलने लगी हैं.
शीरीन राज्य स्तर पर हॉकी खेल चुकी हैं और वो एक बेहतरीन फारवर्ड प्लेयर थी. अब वो मध्यम तेज़ गति से गेंदबाज़ी करती हैं और आक्रामक बल्लेबाजी भी करती हैं.
हॉकी छोड़कर क्रिकेट खेलने के अपने फैसले पर वो कहती है कि क्रिकेट में 2 साल में वहां पहुंच गई हूं, जहां हॉकी में 10 साल लगे थे. हॉकी प्लेयर जल्दी रिटायर हो जाता है , लेकिन क्रिकेट वाला देर तक खेलता रहता है.
हालांकि क्रिकेट खेलने के पीछे शीरीन एक और वजह बताती हैं. वो कहती हैं, 2013 के मुज़फ्फ़रनगर दंगो के बाद मेरा चयन लगभग तय था. मगर अंतिम समय पर मेरा नाम काट दिया गया. मुझे किसी ने बताया कि मेरे मुसलमान होने की वजह से ऐसा किया गया. मुझे बहुत बुरा लगा.
नग़मा और शीरीन दोनों के साथ अच्छी बात यह है कि दोनों के परिवारों ने उन्हें पूरा समर्थन दिया है. अगर लड़कियों के खेल को लेकर किसी तरह की कोई टिप्पणियां हुई तो परिवार उनके साथ खड़ा रहा.
शीरीन बताती हैं कि, घर वालों को कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता कि कौन क्या कह रहा है. हमें हमारी तरह से जीने की आज़ादी है और अपना अच्छा बुरा हम समझते हैं.
नग़मा बताती हैं कि खेल के लिए बहुत से त्याग की ज़रूरत पड़ती है. जैसे आम लड़कियों की तरह हम बनते संवरते नहीं और लड़कों जैसे कपड़े पहनते हैं. पहले अपने घर में विरोध से जूझते हैं. जैसे मेरे चाचा मेरे खेल के हमेशा ख़िलाफ़ थे और फिर कुछ मज़हब के ठेकेदारों से हमें मुसलमान होने की भी सज़ा मिलती है.
शीरीन कहती हैं, “इतना आसान नहीं है सानिया मिर्ज़ा होना…”