अदालत का फैसला —आरटीआई के तहत प्रश्न-पत्र और आंसर शीट देना होगा

अफ़रोज़ आलम साहिल, TwoCircles.net


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देश के प्रतियोगी परीक्षाओं में भाग लेने वाले तमाम छात्रों के लिए अच्छी ख़बर है. अब वो किसी भी प्रतियोगी परीक्षाओं के प्रश्न-पत्र व आंसर-की सूचना के अधिकार (आरटीआई) के तहत हासिल कर सकते हैं. वहीं अपने  स्कूल-कॉलेजों या बोर्ड का परीक्षा दे रहे छात्रों को ये अधिकार पहले से प्राप्त है.

दिल्ली हाई कोर्ट के विभू बाखरू ने हाल ही में दिए केन्द्रीय सूचना आयोग यानी सीआईसी के ज़रिए दिए फ़ैसले के ख़िलाफ़ एम्स की अपील को आधारहीन बताते हुए खारिज कर दिया है और स्पष्ट तौर पर कहा है कि आरटीआई क़ानून के तहत एम्स को एमबीबीएस प्रवेश परीक्षा के प्रश्न-पत्र व आंसर-की छात्रों को उपलब्ध कराना होगा.

बता दें कि एम्स ने साक्षी माथुर नाम की एक छात्रा को एमबीबीएस प्रवेश परीक्षा का प्रश्न-पत्र और आंसर-की देने से मना कर दिया था कि यह जनहित में नहीं है. तब साक्षी माथुर ने एम्स के इस जवाब के ख़िलाफ़ सीआईसी में सेकेंड अपील दाख़िल की. इस अपील में सीआईसी ने साक्षी के हक़ में फैसला सुनाया, लेकिन एम्स सीआईसी के इस फ़ैसले के ख़िलाफ़ हाई कोर्ट चली गई थी. साक्षी माथुर 2013 के एमबीबीएस प्रवेश-परीक्षा में शामिल हुई थी.

अब हाई कोर्ट ने एम्स के उन दलीलों को भी सिरे से ख़ारिज कर दिया है, जिसमें उन्होंने कहा था कि प्रश्न-पत्र और आंसर-की हमारे क्वैश्चन बैंक का हिस्सा है और यह किसी को नहीं दिया जा सकता.

हाई कोर्ट ने एम्स के इस दलील को ख़ारिज कर दिया है, जिसमें एम्स का कहना है कि, छात्र ने प्रवेश-परीक्षा के आवेदन में इस बात का स्वघोषित हलफ़नामा दिया था कि वह प्रश्न-पत्र बाहर नहीं ले जाएगा.

कोर्ट ने सीआईसी के 2015 के फ़ैसले को बरक़रार रखते हुए एम्स से कहा है कि वह याचिकाकर्ता को प्रश्न-पत्र और आंसर-की मुहैया कराए.

ग़ौरतलब रहे कि इससे पहले इसी साल जनवरी महीने में सुप्रीम कोर्ट भी हरियाणा पब्लिक सर्विस कमीशन की पिछले कई सालों से चल रही एक याचिका को डिसमिस कर दिया है. यानी अब हरियाणा सिविल सर्विसेस समेत सभी प्रथम व द्वितीय पद की नौकरियों के लिए परीक्षा देने वाले परीक्षार्थी रिजल्ट के बाद अपनी आंसर शीट आरटीआई दाख़िल कर देख सकते हैं.

2011 में भी सुप्रीम कोर्ट अपने एक ऐतिहासिक फ़ैसले में कह चुकी है कि, सभी तरह की परीक्षाओं की उत्‍तर पुस्तिकाएं आरटीआई के तहत आएंगी. अब कोई भी आरटीआई दाख़िल करके किसी के भी मार्क्‍स या एग्‍ज़ाम के नतीजे जान सकता है.

अक्टूबर 2017 में भी सीआईसी अपने एक आदेश में कह चुकी है कि, ऐसे एजुकेशनल इंस्टीट्यूट जो पब्लिक अथॉरिटी हैं, वे आरटीआई के तहत एग्ज़ाम आन्सर कॉपी देने से मना नहीं कर सकते हैं.

सीआईसी का ये आदेश गुरु गोबिन्द सिंह इंद्रप्रस्थ यूनिवर्सिटी की छात्रा स्वाति बब्बर के मामले में आया था. आर्किटेक्चर की इस छात्रा ने 2016 में दिए एक एग्ज़ाम की आन्सर कॉपी देखने के लिए आरटीआई दाख़िल की थी. लेकिन यूनिवर्सिटी के जन सूचना अधिकारी ने इन्हें एक हज़ार रुपये की फ़ीस देकर अपनी आन्सर कॉपी देखने के लिए कहा था.

इससे पहले भी सीआईसी अपने एक ऐतिहासिक निर्णय में सरकारी स्कूलों के छात्रों की उत्तर पुस्तिका दिखाने का निर्देश दे चुकी है. छात्र मोहसिन द्वारा दायर एक आरटीआई अर्ज़ी के जवाब में सूचना आयुक्त ओ.पी. केजरीवाल ने यह निर्णय दिया था.

दिलशाद गार्डन के गवर्नमेंट सीनियर सेकेन्डरी स्कूल में पढ़ने वाला मोहसिन 9वीं कक्षा की वार्षिक परीक्षा में फेल हो गया था. उसे अंग्रेज़ी, गणित और सामाजिक विज्ञान विषय में फेल बताया गया. मोहसिन ने अपने सभी विषयों की उत्तर पुस्तिका देखने के लिए आरटीआई के तहत आवेदन किया. इसमें उन्होंने उत्तर-पुस्तिका जांचने वाले शिक्षक का नाम भी पूछा. इसके अलावा मोहसिन ने अपनी कक्षा में पास छात्रों का प्रतिशत, ग्रेस अंक के नियम और इसका लाभ उठाने वाले छात्रों का विवरण भी मांगा था.

इस मामले में सीआईसी ने न सिर्फ़ मोहसिन बल्कि उसके सहपाठियों की उत्तर पुस्तिका भी दिखाने का निर्देश दिया था.

विद्यार्थियों पर बढ़ते तनाव को कम करने के लिए ज़रूरी है कि परीक्षा प्रणाली को पारदर्शी बनाया जाए, और वैसे भी भारतीय लोकतंत्र में जब युवाओं विशेषकर विद्यार्थियों की अग्रणी भूमिका से इनकार नहीं किया जा सकता है, तो फिर इनके हितों की अनदेखी कैसे की जा सकती है? छात्रों द्वारा हो रही आत्महत्या और विरोध की घटना को कैसे नकारा जा सकता है? ऐसे में हाई कोर्ट का ये फ़ैसला छात्रों के लिए किसी खुशख़बरी से कम नहीं है. छात्रों को भी इस ओर ध्यान देने की ज़रूरत है, क्योंकि परीक्षा में मिलने वाले अंक ही छात्रों के जीवन की दशा और दिशा तय करते हैं.

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