हसन अकरम, TwoCircles.net के लिए
नई दिल्ली : “घरोंदे बनाना, बनाकर मिटाना” यही भाग्य है दिल्ली के श्रम विहार क्षेत्र में रह रहे कुछ रोहिंग्या मुसलमानों का.
यहां 80 रोहिंग्या परिवार रहते हैं. ये 2014 से यहां के ज़मींदारों को साधारण किराया देकर रहते आ रहे हैं. लेकिन पिछले दिनों एक ज़मींदार मोहम्मद वसीम सैफ़ी ने वह ज़मीन जिस पर 24 रोहिंग्या परिवार झुग्गी बनाकर रह रहे हैं, को बेच दिया.
यहां रहने वाले लोगों के मुताबिक़ वसीम के लड़के फैसल ने शुक्रवार को अचानक आकर कहा “आज जुम्मा के बाद यहां से खाली कर दो.”
अगले दिन ही शनिवार को 12 परिवारों को यह ज़मीन छोड़ना पड़ा. अब ये यहीं सड़क के किनारे तम्बुओं में रह रहे हैं. जबकि दूसरे 12 परिवारों ने अभी तक इस जगह को खाली नहीं किया है. वो अभी तक यहीं अपनी झुग्गियों में रह रहे हैं.
इस कंपकंपी वाले ठंड की रात में इन तंबुओं में रह रहे लोगों की हालत क्या होती होगी, इसका अंदाज़ा आप खुद ही लगा सकते हैं.
इनके सर के ऊपर बस एक तिरपाल होता है जिस पर ओस पड़ने के बाद उस में से पानी रिस कर टपकने लगता है. ठंड के कारण इनके बच्चे व बूढ़े बीमार हो रहे हैं.
अब्दुल रहीम दमा के मरीज़ हैं और अब इस ख़राब परिस्थिति की वजह से उनकी बीमारी और बढ़ गई है. वह अब चनले-फिरने से भी मजबूर हैं. इनकी पत्नी नरगिस कहती हैं, “कभी-कभी इनकी सांस बंद हो जाती है.”
हाफ़िज़ अम्माद अपनी दो बच्चियों के बारे में बताते हैं कि, कल रात को उन्हें तेज़ बुखार आया तो वह उनको अलशिफ़ा हॉस्पीटल ले कर गए. डॉक्टर ने कहा कि ठंड ज़्यादा लग गई है.
हाफ़िज़ अम्माद बताते हैं कि, जहां से उनको खाली कराया गया है, वहां पहले पानी और कचड़ा भरा हुआ था. उन सबको साफ़ करके हमने न सिर्फ़ अपनी झुग्गी बनाई थी, बल्कि हर झुग्गी का 500 रूपये हर महीने वसीम सैफ़ी को किराया भी देते थे.
वसीम सैफ़ी से जब इस बारे में पुछा गया तो उन्होंने कहा, “हमने ये कहकर इन्हें ये जगह दिया था कि हम जब चाहें यहां से खाली करा सकते हैं.”
वसीम सैफ़ी अब भारतीय जनता पार्टी के सदस्य हैं और इससे पहले कांग्रेस और आम आदमी पार्टी में भी रह चुके हैं.
वो इन रोहिंग्या परिवारों को वहीं पीछे की तरफ़ खाली पड़ी अपनी ज़मीन पर जाकर रहने को कह रहे हैं. परन्तु, सैफ़ी ने उनसे यह भी कहा है कि वहां से भी किसी भी समय खाली कराया जा सकता है. हालांकि सैफ़ी के ख़ास आदमी चौधरी मुस्लिम ने कहा कि वह उस स्थान पर एक साल तक रह सकते हैं.
लेकिन ये रोहिंग्या परिवार उस नए जगह पर अब जाना नहीं चाहते. अब्दुल रशीद का कहना है कि एक झुग्गी बनाने में कम से कम 10 हज़ार रूपये का खर्च आता है. हमारे पास बार-बार झुग्गी बनाने के लिए इतना पैसा कहाँ से आएगा.
हाफ़िज़ अम्माद ने बताया कि शरणार्थियों को सहायता देने के लिए संयुक्त राष्ट्र द्वारा गठित की गई संगठन ‘यूनाइटेड नेशंस हाई कमिश्नर फॉर रिफ़्यूजी’ (यूएनएचसीआर) के दफ्तर में उन्होंने रहने के लिए ज़मीन दिलाने की मांग की है. उन्होंने इस संबंध में जल्द ही जवाब देने की बात कही है. ऐसे में हम लोग अब यूएनएचसीआर से सहायता की उम्मीद लगाए बठे हैं.