आस मुहम्मद कैफ़, TwoCircles.net
मुज़फ़्फ़रनगर : उत्तर प्रदेश सरकार के माध्यम से दंगों में बीजेपी नेताओं के मुक़दमा वापसी की हलचल के बीच जाट और मुसलमान दोनों पक्षों मे गहरी नाराज़गी है.
मुसलमानों का कहना है कि यह उन पर एक अलग प्रहार है, जबकि जाटों का कहना है कि इसका मतलब दंगा वोट के लिए कराया गया था.
“उत्तर प्रदेश सरकार मुक़दमा वापसी की सियासत कर रही है. यह बेहद अफ़सोसनाक है. क्या अब दंगा पीड़ितों को न्याय की उम्मीद छोड़ देनी चाहिए. यह मुक़दमे वापस होते हैं या नहीं, यह बहुत महत्वपूर्ण बात है, मगर शर्मनाक बात यह है कि सरकार ने ऐसा करने मे रुचि दिखाई है. ये दंगा पीड़ितों के ज़ख़्मों पर नमक छिड़कने जैसा है. यहां इंसाफ़ सिसक रहा है…” 65 साल के अजमल उर्रहमान जब ये बात कहते हैं तो उनके चेहरे पर आई निराशा आसानी से पढ़ी जा सकती है.
बता दें कि उत्तर प्रदेश सरकार के माध्यम से मुज़फ़्फ़रनगर दंगों के दौरान अभियुक्त बनाए गए पूर्व केन्द्रीय मंत्री व सांसद संजीव बालियान और दंगे के दौरान सबसे अधिक प्रभावित बेल्ट बुढ़ाना के विधायक उमेश मलिक के विरुद्ध दर्ज हुए मुक़दमों में आख्या मांगी गई है.
आख्या एक स्टेटस रिपोर्ट होती है और इसमें अपराध की धाराएं, न्यायालय का नाम और वर्तमान स्थिति की जानकारी मांगी गई है. जानकारों के मुताबिक़ इसे मुक़दमा वापसी की प्राथमिक कार्रवाई मानी जाती है.
सरकार की ओर से इस हलचल पर बीजेपी नेता और उनके समर्थकों में जश्न का माहौल है. एक स्थानीय अख़बार में दिए गए भाजपा सांसद संजीव बालियान के बयान के अनुसार, सरकार मुक़दमे वापस ले रही है. हालांकि एडीएम हरीश चंद्र ने अभी इस तथ्य से इंकार किया है. जबकि एसपी सिटी ओमवीर सिंह का कहना है कि पत्र मिलते ही कार्रवाई की जाएगी.
ग़ौरतलब रहे कि पिछले 5 जनवरी को इस संबंध में एक पत्र जारी किया गया था. इसे न्याय विभाग के सचिव राजेश सिंह ने भेजा था और 12 जनवरी को यह डीएम कार्यालय में प्राप्त हुआ है. इसमें डीएम से जनहित में राय भी मांगी गई है.
इस पत्र में कुल 9 मुक़दमों के ताल्लुक़ से जानकारी मांगी गई है. इनमें चार मुक़दमें फुगाना थाने के हैं. एक मुक़दमा शाहपुर थाने से संबंधित है. यह कुटबा गांव का है. कुटबा वही गांव है, जहां अल्पसंख्यकों के विरुद्ध सबसे पहले सामूहिक हिंसा हुई थी. इसमें आठ लोगों की हत्या की गई थी. संजीव बालियान इन मुक़दमों में एक ही मामले में आरोपी हैं, मगर यहां से मुक़दमे वापस होते हैं तो वो सबसे ज्यादा लाभ पाएंगे. जानकारों का मानना है यह कार्रवाई मुख्यतः इन्हीं को लाभ पहुंचाने के लिए की जा रही है.
यह प्रकिया ऐसे समय पर सामने आई है, जब अदालत लगातार इन नेताओं को नोटिस जारी कर रही थी और इन्हें अदालत में पेशी देनी पड़ रही थी. अब अगर मुक़दमा वापस हो जाता है तो इनको अदालती सलामी से निजात मिल जाएगी.
देवबंद के पूर्व विधायक माविया अली कहते हैं, उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने तो अपने ख़िलाफ़ दर्ज हुए मुक़दमे को ख़त्म करने का काम कर दिया है. अब अपने भाजपा नेताओं को बचाने की क़वायद में जुटे हैं.
वो आगे बताते हैं कि, मुज़फ़्फ़रनगर दंगा लोकसभा चुनाव जिताने के लिए किया गया खूनी षड्यंत्र था.
मुक़दमा वापसी की चर्चाओं के बीच दंगा पीड़ित खुद को ठगा सा महसूस कर रहे हैं. सपा युवजन सभा के पूर्व ज़िला अध्यक्ष शमशेर मलिक कहते हैं, दंगा पीड़ितों को इंसाफ़ मिलना चाहिए. मुक़दमे वापसी की यह कोशिश एकदम ग़लत है. इससे तो दंगा पीड़ितों को एक और चोट लगेगी.
दंगे में दूसरे पक्ष से आरोपी बनाए गए एडवोकेट असद जमा कहते हैं, फ़ैसला न्यायालय पर छोड़ देना चाहिए, वरना लोगों का क़ानून से विश्वास उठ जाएगा.
हालांकि डीजीसी क्रिमिनल दुष्यंत त्यागी का कहना है कि, सरकार अपनी ओर से दर्ज कराए गए मुक़दमों को वापस ले सकती है, मगर यह भी बहुत मुश्किल है. अदालत बहुत सारे मुद्दों पर गौर करती है. पहले भी ऐसे कुछ मामले आए, जिनका नकारात्मक जवाब मिला. इसलिए हो सकता है कि इनको भी लाभ ना मिले.
डीजीसी की बात में इसलिए भी दम लगता है, क्योंकि पूर्व में अखिलेश सरकार ने कुछ मुक़दमे वापस करने की कोशिश की थी, जिन्हें अदालत से रोक दिया गया था.