अफ़रोज़ आलम साहिल, TwoCircles.net
तू पंख काट ले, मुझे सिर्फ़ हौसला दे दे
फिर आंधियों को मेरा नाम व पता दे दे…
गुजरात के 22 साल के हसन सफ़ीन में ये हौसला बचपन से रहा है. सफ़ीन ने पहली ही कोशिश में यूपीएससी में 570 और जीपीएससी में 34वां रैंक लाया है. जीपीएससी में डिस्ट्रिक रजिस्ट्रार का पद मिला है.
सफ़ीन गुजरात के बनासकांठा ज़िले के कानोदर गांव में रहते हैं. इन्होंने अपनी दसवीं तक की पढ़ाई अपने गांव के ही एक सरकारी स्कूल से गुजराती मीडियम में की है. बारहवीं के लिए ज़िला मुख्यालय पालनपुर का रूख़ किया. और फिर उसके बाद सूरत के एनआईटी से इलेक्ट्रॉनिक्स एंड कम्यूनिकेशन्स में बी.टेक की डिग्री हासिल की.
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सफ़ीन कहते हैं कि,जब मैं पांचवी क्लास में था तभी मेरे गांव के एक फंक्शन में हमारे ज़िला के कलेक्टर साहब आए थे. उनका रूतबा, उनका एटीट्यूड और उनकी पर्सनालिटी देखकर मुझे लगा कि यार ये कोई अलग ही इंसान है. तब मैंने अपनी एक आंटी से पूछा कि ये कौन है? उन्होंने कहा —बेटा! ये इस ज़िले का राजा है. मैंने पूछा कि कैसे बनते हैं? उन्होंने बोला —एक एग्ज़ाम देना होता है. फिर मैंने पूछा कि कौन दे सकता है? उनका कहना था कि कोई भी दे सकता है. तो उसी वक़्त मैंने तय किया था कि मुझे बड़ा होकर ‘राजा’ ही बनना है. फिर मैं जैसे-जैसे बड़ा होता गया, वैसे-वैसे सूचना भी एकत्रित करता रहा कि कैसे क्या करना है.
वो कहते हैं कि, मुझे कभी इंजीनियर नहीं बनना था. लेकिन बी.टेक में मैंने दाख़िला इसलिए लिया क्योंकि इंजीनियरिंग के लिए एक एनालिटिकल माईंड चाहिए होता है. बी.टेक आपको लॉजिकल और प्रैक्टिकल बनाता है.
वो आगे कहते हैं, मैंने तय कर रखा था कि बनना तो आईएएस ही है. इसलिए मैं कॉलेज के प्लेसमेंट के लिए भी नहीं बैठा. जबकि मैं कॉलेज में अपने डिपार्टमेंट का प्लेसमेंट को-ऑर्डिनेटर था.
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सफ़ीन कहते हैं कि, मेरी पहली च्वाईस आईएएस है. ओबीसी कैटेगरी से होने के कारण मुझे इस रैंक पर शायद आईपीएस मिलेगी, इसलिए मैं दुबारा से आईएसएस के लिए मेहनत करूंगा. क्योंकि बनना तो सिर्फ़ और सिर्फ़ आईएएस ही है.
बता दें कि सफ़ीन के पिता मुस्तफ़ा अली गांव में इलेक्ट्रिशियन हैं. वहीं इनकी अम्मी नसीम बानो गांव में कॉन्ट्रेक्ट पर रोटियां बनाने का काम करती हैं. घर में एक छोटा भाई है, जो इन दिनों बारहवीं में पढ़ रहा है.
सफ़ीन बताते हैं कि, मेरी आर्थिक स्थिति दिल्ली आने के लायक़ थी ही नहीं. अम्मी-पापा की कमाई से घर भी बहुत मुश्किल से ही चल पाता है. अम्मी पहले डायमंड फैक्ट्री में थीं. 13-14 साल उन्होंने वहां काम किया. और अब वो शादी वगैरह में रोटियां पकाती हैं.
सफ़ीन की आर्थिक मदद गांव के ही एक परिवार ने की. वो बताते हैं कि, मेरे गांव में एक हुसैन भाई पोलरा हैं. इनके ही परिवार ने मुझे दिल्ली जाने का खर्चा दिया. सारा सपोर्ट इन्हीं का रहा. बस इन्हीं की वजह से मैं पहली कोशिश में यूपीएससी क्लियर कर पाया. मेरी ज़िन्दगी में इनका रोल सबसे बड़ा है.
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गौरतलब रहे कि सफ़ीन ने हमेशा सेल्फ़ स्टडी पर ही ध्यान दिया. बावजूद इसके उन्होंने जून 2016 में दिल्ली आकर एक प्राईवेट कोचिंग में 11 महीने की क्लास की और फिर जून 2017 में यूपीएससी और जीपीएससी दोनों का ही प्रीलिम्स दिया और कामयाब रहे. इसके बाद वो वापस गुजरात लौट गए. यहां इन्होंने SPIPA से मेन्स के लिए तैयारी की.
सफ़ीन के लिए मेन्स और इंटरव्यू देना इतना आसान नहीं था. मेन्स के पहले ही दिन एक हादसे ने तो इनका सपना चकनाचूर करने की पूरी कोशिश की.
वो बताते हैं कि, मैं जब अहमदाबाद में मेन्स का पहला पेपर देने जा रहा था तो रास्ते में मेरा एक्सीडेन्ट हो गया. हाथ-पैर में भारी चोट लगी. सर और बदन के कई हिस्सों से खून बह रहा था. सब मुझे डॉक्टर के पास ले जाना चाह रहे थे, लेकिन मैं इसी हालत में एग्ज़ाम देने गया. बाक़ी के छ: पेपर्स भी ऐसे ही दिया. उसके बाद ही डॉक्टर को दिखाया. डॉक्टर ने डेढ़ महीने बेड रेस्ट के लिए कह दिया. इस चक्कर में मैं इंटरव्यू की तैयारी भी नहीं कर सका.
फिर वो आगे बताते हैं कि, बावजूद इसके हिम्मत करके इंटरव्यू के लिए गया. मैं बहुत घबराया हुआ था. लेकिन अल्लाह का शुक्र है कि मुझसे ज़्यादातर सवाल इस्लाम और गुजरात को लेकर ही पूछे गए थे. इस इंटरव्यू में काफ़ी मज़ा आया.
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वो यह भी बताते हैं कि महाराष्ट्र के अंसार शेख़ ने इस तैयारी में काफ़ी मदद की थी. मैं काफ़ी सारे आईएएस और आईपीएस के सम्पर्क में था.
सफ़ीन ने इस परीक्षा में गुजराती भाषा बतौर विषय लिया था. वो कहते हैं कि, लोग मानते हैं कि लिट्रेचर में कम्पीटिशन थोड़ा कम होता है. लेकिन अब ऐसा नहीं है. लोग अब लिट्रेचर खूब लेने लगे हैं.
यूपीएससी की तैयारी करने वालों को क्या संदेश देना चाहेंगे? इस सवाल पर सफ़ीन कहते हैं कि, ये समझने की कोशिश कीजिए कि यूपीएससी को क्या चाहिए न कि हमें क्या बनना है. अगर ये बात समझ में आ जाए कि वो लोग क्या चाहते हैं और हमने उनके हिसाब से तैयारी कर ली तो फिर आपके कामयाब होने से कोई नहीं रोक सकता. उन्हें आपको लेना ही पड़ेगा.
तैयारी के साथ-साथ आपके अंदर समर्पण, धैर्य और आत्मविश्वास इन तीनों बातों का होना बहुत ज़रूरी है. अगर मैंने ये सोचा होता कि एक महीने की तैयारी में मेरा कुछ नहीं हो सकता तो शायद मैं यहां नहीं होता. मैंने इंटरव्यू देने जाते वक़्त सिर्फ़ यही सोचा था कि ये मेरे लिए सिर्फ़ एक पर्सनालिटी टेस्ट है. मैंने यही सोचा था कि बस सीखने जा रहा हूं. इसलिए मैं पूरे कांफिडेंस के साथ गया था और मेरा इंटरव्यू काफ़ी अच्छा रहा.
सफ़ीन अपने क़ौम के नौजवानों को संदेश देते हुए कहते हैं कि, किसी पर आपको भरोसा हो न हो, लेकिन इस देश के क़ानून व संविधान पर भरोसा रखिए. इसकी नज़र में सब बराबर हैं. मतलब जहां टैलेन्ट है, वहां मौक़ा मिलना ही मिलना है. आपने अगर एक बार सोच लिया कि ये करना है तो फिर आपको कोई नहीं रोक सकता.
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सफ़ीन कॉलेज के दिनों से ही पढ़ाई के साथ-साथ सामाजिक कार्यों में लगे रहे हैं. वो बताते हैं ‘कॉलेज के दौरान मैं चार साल तक स्लम के बच्चों को निशुल्क पढ़ाने जाता था. गांव में भी ये काम किया है. बाद में अपने दोस्तों के साथ एक ‘प्रोजेक्ट निर्माण’ नाम की एक एनजीओ भी बनाई. मैंने ये काम दिल से किया था.’ सफ़ीन को इसके साथ-साथ पब्लिक स्पीकिंग का भी शौक़ रहा है. आप इनके वीडियो यू-ट्यूब पर अभी भी देख सकते हैं.
सफ़ीन की कहानी इस देश के हज़ारों नौजवानों को हौसला देने के लिए काफ़ी है. उनका कभी हार न मानना और घायल होकर भी एग्ज़ाम में बैठना ये हौसले से ही मुमकिन था. जहां युवा 22 साल की उम्र में इस बात को लेकर कन्फ़्यूज़ रहते हैं कि उन्हें आगे करना क्या है, सफ़ीन ने ये इम्तेहान न सिर्फ़ दिया, बल्कि कामयाब भी रहे.