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आज 31 साल बाद दिल्ली हाई कोर्ट द्वारा हाशिमपुरा कांड में 42 मुस्लिम नौजवानों की हत्या के मामले में सभी 16 PAC जवानों को उम्रकैद की सजा सुनाई गई। जहाँ इन पर हत्या,अपहरण,सबूतों को मिटाने का दोषी करार देते हुए सजा सुनाई गई।
हाशिमपुरा पर आए फैसले ने लोकतंत्र को तो जरुर मजबूत किया पर लोकतांत्रिक पार्टियों के ऊपर लगा गहरा दाग भी उजागर किया है। वहीँ इस पुरे घटनाक्रम को कोर्ट ने टारगेट किलिंग करार दिया।
PAC द्वारा हाशिमपुरा के मुस्लिम नौजवानों के जनसंहार पर उच्च न्यायालय दिल्ली के फैसले का रिहाई मंच के अध्यक्ष मुहम्मद शुऐब अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा कि ट्रायल कोर्ट द्वारा नजरअंदाज किए गए साक्ष्य को पर्याप्त मानकर सजा दिया जाना न्यायसंगत है।
उन्होंने हाशिमपुरा घटना का ज़िर्क करते हुए बताया कि पीएसी ने ट्रक में मुस्लिम नौजवानों को भरा था और वही नौजवान गंग नहर और हिंडन नहर में गोलियों से घायल होने के बाद मरे पाए गए थे। इस निर्मम हत्या के साक्षी जो गोली खाकर भी जीवित रहे जुल्फिकार नासिर, मोहम्मद नईम, मोहम्मद उस्मान और मुजीबुर्रहमान द्वारा दिया गया साक्ष्य पीएसी को गुनहगार बनाने के लिए पर्याप्त थे।
रिहाई मंच नेता गुफरान सिद्दीकी ने इस मामले में कहा कि हाशिमपुरा के नौजवानों को मारने के तीन दिन पहले तत्कालीन केन्द्रीय गृह राज्य मंत्री पी चिदंबरम, यूपी के मुख्यमंत्री वीर बहादुर सिंह, कांग्रेस की कृपा पात्र सांसद मोहसिना किदवई तथा प्रदेश के गृहमंत्री गोपीनाथ दीक्षित मेरठ पहुंचे थे और अधिकारियों से गोपनीय बैठक की थी।
उन्होंने आगे कहा कि इस घटना में सेना की भी आपराधिक भूमिका थी पर आज तक हाशिमपुरा-मलियाना कांड के आयोगों की रपटों को दबाकर रखा गया है। जाहिर है कि मुस्लिम नौजवानों की नृशंस हत्या के लिए जिम्मेदार कांग्रेस थी। आज तक उसने कभी इस घटना के लिए माफी तो दूर अफसोस तक जाहिर नहीं किया।
दरअसल 1987 में रिजर्व पुलिस बल प्रोविंशियल आर्म्ड कॉन्स्टेबुलरी (PAC) के जवानों ने 42 मुस्लिम युवकों को कथित तौर पर उनके घरों से उठाया और पास ही ले जाकर उनकी हत्या कर दी। सबसे पहले ये मामला उत्तर प्रदेश के ग़ाज़ियाबाद में चल रहा था लेकिन सुनवाई में देरी की वजह से मारे गए लोगों के परिजनों ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया।
बाद में दिल्ली की तीस हज़ारी कोर्ट ने साल 2015 में आरोपी में सभी 19 PAC जवानों को बरी कर दिया गया। जिसमे तीन की मौत हो चुकी। गौरतलब है कि दिल्ली हाईकोर्ट में मारे गए मुस्लिम युवकों के परिवारों की तरफ से, उत्तर प्रदेश सरकार और अन्य के तरफ याचिका दायर की गयी थी।