एक बात पर गौर कीजिए। रविवार को पंजाब के पटियाला में लॉकडाउन के दौरान गाड़ी में बैठे निहंग सिख ने एक पुलिसकर्मी के कर्फ्यू पास मांगने पर तलवार मार के उसकी कलाई काट दी। उसके बाद वह अपने साथियों समेत गुरुद्वारे में छिप गया। बहुत बड़ी घटना है। लेकिन, इस घटना को हम ज़रा भी घृणा की दृष्टि से नही देख रहे हैं। लेकिन अगर ऐसी ही घटना में कोई मुस्लिम शामिल होता तो हम इस घटना से कितनी आसानी से ‘कनेक्ट’ कर जाते!
ये होता है मीडिया का रोल। आप कहेंगे ‘कनेक्ट’ शब्द का इस्तेमाल क्योंं किया? सीधे सीधे बोल देते। ये गहरी बात है। मनोविज्ञान की बात है। ज़रा समझने की कोशिश कीजिए। हिटलर का प्रचार मंत्री गोयबल्स का बहुत मशहूर वाक्य है। कोई झूठ अगर बार-बार दोहराया जाए तो लोग धीरे-धीरे उसे सच मानने लगते हैं। बात झूठ को सच बताने की नहींं है। दअरसल बात है झूठ को दोहराए जाने की। यानि उसे बार बार बताए जाने की, उसकी आवृत्ति की। मनोविज्ञान में इसे रिपीट मेथड या रीइनफोर्समेंट मेथड कहते हैं। किसी बात को बार-बार दोहराना।
एक प्रयोग कर लेते हैं। जब आप ये पढ़ रहे हैं तब अगर मैं अचानक अभी आपसे कहूँ कि बिना विचारे तुंरत किसी टूथपेस्ट का नाम लीजिए तो अधिकतर लोग कोलगेट का नाम लेंगे। कुछ लोग पेप्सोडेंट का भी नाम लेंगे। ऐसा क्यों है! ऐसा इसलिए है कि इन दोनों प्रोडक्ट के टीवी और अख़बार आदि में इतने अधिक विज्ञापन आते हैं कि हम अचानक इससे इतर सोच नही पाते। कोलगेट हमारे अवचेतन में धँस चुका है।
अच्छा, ऐसे ही मैं यदि ग़द्दार या देशद्रोही कह दूं तो आधे लोग के मन मे टोपी पहने सफेद कुर्ता पहने मुसलमान की छवि उभरेगी। आधे लोगो के मन मे खद्दर के कपड़े पहने झोला लटकाए हुए वामपंथी टाईप के आज़ादी-आज़ादी के नारे लगाते हुए शख़्स की छवि उभरेगी। ये इसलिए है कि पिछले कई साल से यह परसेप्शन क्रिएट किया जा रहा है। ये काम मीडिया बहुत सटीकता के साथ कर रहा है।
गोयबल्स भी झूठ को सच बताने के किसी ‘चमत्कार’ की बात नहींं कर रहा है। वो प्रोसेस की बात कर रहा है। गोयबल्स बार-बार दोहराने की इसी क्रिया का लाभ उठाने की बात कह रहा है। वो कह रहा है कि सत्य महत्वपूर्ण नहीं है। तथ्य भी महत्वपूर्ण नही है। महत्वपूर्ण यह है कि राज्य या सरकार अपनी जनता को क्या बताना चाहती है! जनता का सत्य वही है जो स्टेट उसे बता रहा है। इसलिए वह सत्य तैयार करो, जिसकी स्टेट को ज़रूरत है। और फिर उसे बार-बार दोहराओ। तब तक दोहराते रहो, जब तक जनता उसे सच नहीं मान लेती। सफलता ज़रूरी नही है असफलता के दोषी खोजना ज्यादा ज़रूरी है। यह ज़्यादा आसान भी है।
गोयबल्स आज अगर होता तो वह बहुत खुश होता। क्योंकि आज संचार के माध्यम बहुत ज़्यादा हैं और पहले के मुक़ाबले ज़्यादा ताकतवर हैंं। सिर्फ न्यूज़ चैनल, अख़बार ही नहीं बल्कि फिल्में भी आज बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहीं हैं। सोशल मीडिया में फेसबुक, ट्विटर वॉट्सअप के अलावा टिक टॉक जैसे फोरम भी आज बहुत प्रभावी रूप से काम कर रहे हैं। पिछले कुछ साल में इनके ज़रिए फैलाए जा रहे संदेशों को ग़ौर से देखें। बहुत साफ़ नज़र आता है। किस तरह कुछ बातें सुनियोजित ढंग से गढ़ी गईं है और इन्हें स्प्रेड आउट किया गया है। नफ़रत के डोज़ को धीरे धीरे करके लगातार बढ़ाया गया है। आज दरसअल ट्रिगर दबा दिया गया है अब ये लोग जोम्बियों में बदल गए हैं।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)