एक के बाद एक ग़लती करके मोदी खो रहे हैं देश की जनता के बीच भरोसा

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संजय तिवारी

सोमवार शाम को जब यह ख़बर आई कि मोदी मंगलवार की सुबह 10:00 बजे देश के नाम संदेश देंगे तू लोगों को उम्मीद थी कि किस दिन के लॉक डाउन से शायद थोड़ी बहुत राहत मिलेगी लेकिन क़रीब 20 मिनट के भाषण के बाद यह उम्मीद काफूर हो गई। लोगों के सब्र का बांध अब टूटने लगा। मुंबई में अचानक हज़ारों की तादाद में मज़दूरों का बांद्रा रेलवे स्टेशन पर पहुंचना इसी का सबूत है।


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दरअसल कोरोना वायरस के महामारी का रूप धारण करने के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनकी सरकार की यरफध से एक के बाद एक कई ग़ल्तियां हुईं हैं। इन्हीं ग़ल्तियों की वजह से देश में आज अफ़रा तफ़री का माहौल है। देश की जनता सरकार पर भरोसा नहीं कर पा रही हैंं। पीएम मोदी और उनकी सरकार की तरफ़ से हुईं कुछ ग़ल्तियां इस तरह हैं

पहली गलती: प्रधानमंत्री का पहला संबोधन कि “यह लॉकडाउन २१ दिन का होगा। कोरोना की चेन तोड़ने के लिए २१ दिन का लॉकडाउन ज़रूरी है।”

दूसरी गलती: गृह सचिव का बयान कि लॉकडाउन २१ दिन से आगे नहीं बढ़ेगा। लोग अफवाह फैला रहे हैं।

तीसरी गलती: १५ अप्रैल से ट्रेन और एयरलाइंस के टिकटों की बुकिंग।

चौथी गलती: १५ तारीख से थोड़ी राहत की उम्मीद में बैठे लोगों की आशाओं पर यह कहकर पानी फेर देना कि लॉकडाउन का पालन और सख्ती से किया जाएगा।

हो सकता है मोदी जनता के हित के लिए ये सब कड़े फैसले ले रहे हैं लेकिन अनुनय विनय और मजबूरी की जगह उनका तरीका अहंकार और जबर्दस्ती वाला है। वह भी तब जब बीमारी से ज्यादा बीमारी का भय फैलाया गया हो। धैर्य की एक सीमा होती है और एक सीमा के बाद मौत का भय भी आदमी को रिस्क लेने से नहीं रोक पाता।

मनुष्य का मनोविज्ञान समझिए। केरल में मानसून आने की खबर आती है तो दिल्ली की तपती गर्मी में लोग राहत महसूस करने लगते हैं जबकि उन्हें पता है कि केरल से दिल्ली पहुंचने में मानसून को पूरा महीना लगता है।

इसी तरह थोड़ी मात्रा में ही सही जिन जिलों में अभी तक कोरोना का कोई केस नहीं आया है वहां १५ अप्रैल से छूट दे देनी चाहिए थी। इससे शहरी इलाकों में अपने घरों में बंद लोगों में भरोसा जगता कि स्थितियां सामान्य हो रही हैं। कल हमारा भी नंबर आयेगा। लेकिन उम्मीद जगाने की बजाय राष्ट्र के नाम अपने संबोधन में बड़ी कठोरता से मोदी नाउम्मीद कर गये।

उम्मीद धैर्य को बढ़ाता है जबकि नाउम्मीदी व्यक्ति को अधैर्य करती है। मोदी के आज के संबोधन के बाद कौन भरोसा करेगा कि तीन मई के बाद सब सामान्य होना शुरु ही हो जाएगा? लोगों के मन में सहज सवाल उपजेगा कि इन्हीं मोदी ने तो २१ दिन वाली बात की थी। वह झूठ हो गयी। तो फिर १९ दिन बाद सब सामान्य होने लगेगा, यह भरोसे से कौन कह सकता है?

१३५ करोड़ लोगों के देश में मोदी पर बड़ी जनसंख्या को भरोसा है इसमें दो राय नहीं। लेकिन इस बार वो अपना भरोसा स्वयं खो रहे हैं।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)

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