आस मोहम्मद कैफ़।Twocircles.net
“तबलीग़ जमात के मरकज़ हज़रत निजामुद्दीन के ख़िलाफ़ मीडिया ट्रायल और एक बडे राजनीतिक षड्यंत्र के बीच जो सबसे बुरा हुआ वो था यहां जमात में दुनिया भर से आए विदेशी मेहमानों को चुन चुनकर गिरफ्तार करना और उसके बाद उन्हें अपमानित करते हुए जेल भेजना। यह नहीं होना चाहिए था बिल्कुल भी नही होना चाहिए था। इस मामले को समझने के लिए हम कुशीनगर के 20 अप्रैल के उसी दौरान का एक उदाहरण लेते हैं जब वहां 3 विदेशी नागरिकों को ससम्मान उनके घर पहुंचाया गया और उनको तमाम सुविधाए दी गई। इसके उलट देश भर से 916 विदेशी जमाती चुन-चुन कर पकड़ लिए गए।इन्हें खलनायक की तरह पेश किया गया। इनमे से 300 सिर्फ यूपी में गिरफ्तार किए और 57 मेरे शहर के चार थानों में। मैं एक वकील हूँ, यहां के लोग मेरी प्रोफेशलिज़्म के बारे में बात करते हैं। मेरी फ़ीस को लेकर चर्चा होती है। मगर मैंने तय किया है कि मैं एक रुपया नही लूंगा। बिना फ़ीस के मैं पहली बार कोई बड़ा केस लड़ रहा हूँ। यह हमारे मेहमान है। बतौर मुसलमान ही नही,बतौर इंसान भी इनके ख़िलाफ़ बेहद बुरा हुआ है। सरकार के लोगो को इतना बेदर्द नही होना चाहिए था।”
यह सहारनपुर के अधिवक्ता जाँनिसार अहमद कहते हैं। वो यहां की जेल में बंद 57 विदेशी जमातियों को रिहा कराने की लड़ाई लड़ रहे हैं। हाल ही में इन्हें किर्गिस्तान, सूडान, थाईलैंड और इंडोनेशिया की सरकारों ने उनके नागरिकों का अदालत में पक्ष रखने के लिए अधिकृत किया है। 56 साल के जाँनिसार इन मुकदमों को लेकर जितने चिंतित दिखाई है। उतना वो कभी नही रहे हैं। पिछले दिनों उनके घर किर्गिस्तान के राजदूत ऑस्लो पहुंचे और उसके बाद दोनों ने जेल में बंद इन जमातियों से मुलाक़ात की। सहारनपुर की जेल में 57 विदेशी जमाती बंद है। इनमे से 21 सिर्फ किर्गिस्तान से है।
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50 लाख की आबादी वाले चीन और रूस के करीबी मध्य एशिया की इस खूबसूरत पहाड़िया वाले देश में अपने नागरिकों के लिए अथाह चिंता दिखाई दी है। उनके राजदूत लगातार जेल में बंद आप अपने नागरिकों से मिलने आ रहे हैं। किर्गिस्तान की सरकार ने तय किया है कि वो अपने नागरिको की रिहाई के लिए हर संभव प्रयास करेगी। किर्गिस्तान के राजदूत सी अलजरीम के मुताबिक कोई भी देश अपने नागरिकों के लिए चिंतित होता है। हम भी है। उन्होंने कुछ ग़लत नही किया है। हम अपना कानूनी पक्ष रख रहे हैं। हम भारत सरकार से भी बात कर रहे हैं।उम्मीद है हमारे लोगो को रिहा कर दिया जायेगा।
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किर्गिस्तान की तरह मलेशिया, इंडोनेशिया, थाईलैंड की सरकारों ने भी यह नोटिस किया है और इन देशों के दूतावास अधिकारी भी जेल में बंद इन विदेशी जमातियों की खैर ख़बर ले रहे हैं। बता दें कि उत्तर प्रदेश के मेरठ जोन में ही 179 विदेशी जमाती जेल है। इन्हें जेल में ही 45 दिन हो चुके हैं। सहारनपुर जेल में इनसे मिलकर लौटे स्थानीय सांसद के एक क़रीबी बताते हैं, ‘सब खुश है,’अल्लाह अल्लाह’ कर रहे हैं। क़ैदी इज़्ज़त से पेश आते हैं। वो इन्हें मेहमान कहते हैं। इनका कहना है, ‘सब अल्लाह की रज़ा(मर्ज़ी) से हो रहा है, हमारा इम्तिहान चल रहा है। इन साथियों को अंग्रेजी भी नही आती सिर्फ़ 3 लोग बोल सकते हैं। एक अच्छी अंग्रेज़ी बोलते हैं। मगर इनकी एक बात सुकून देती है कि जेल में बंद कैदी और कर्मचारी उनकी बहुत इज्ज़त करते हैं और उनके साथ अच्छा व्यवहार होता है।‘
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उत्तर प्रदेश का कोई भी अफ़सर इस मुद्दे पर बोलने के लिए तैयार नहीं है। वो कहते हैं मामला अदालत में है। दबी ज़ुबान में वो बस इतना बता देते हैं कि इनको जेल में रखने का फ़ैसला बहुत ऊपर से लिया गया। उत्तर प्रदेश में राजनीतिक मामलों के लखनऊ के एक्सपर्ट वहीद सिद्दीकी कहते हैं इतना बड़ा फसला सिर्फ मुख्यमंत्री ही ले सकते हैं। मगर पूरे देश मे गिरफ्तारी हुई है इसलिए गृह मंत्रालय से मॉनिटरिंग भी की गई होगी।
मीडिया में मरकज़ (तबलीग़ केंद्र)के ख़िलाफ़ खड़ी की गई नफ़रत की दीवार के बाद उत्तर प्रदेश के बहराइच में सबसे पहले 17 विदेशी जमातियों को जेल भेजा गया। इसके बाद प्रयागराज, कुशीनगर, मेरठ, सहारनपुर, हापुड़, शामली, बुलंदशहर और बागपत में विदेशी जमातियों को क्वारनटीन कराया गया और उसके बाद जेल भेज दिया गया। स्थानीय अख़बारों ने इस दौरान बेहद अपमानजनक भाषा लिखी और लोगों मे भय पैदा किया।
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इनमें केन्या, सूडान, इंडोनेशिया,मलेशिया, कज़ाकिस्तान, थाईलैंड, सऊदी अरब, किरिगिस्तान के जमाती शामिल थे। 30 मार्च के बाद सरकारी अमला इनकी धरपकड़ में जुट गया था। 20 अप्रैल के बाद इन्हें जेल भेजा जाने लगा था। जैसे मेरठ से 20, बिजनोर से 16, हापुड़ से 9, शामली से 22, बुलंदशहर से 16, बागपत से 28 और सहारनपुर से 57 सिर्फ विदेशी जमाती महामारी कानून, विदेशी अधिनियम, टूरिस्ट वीज़ा पर धर्म प्रचार करने, आदि मामलों में गिरफ्तार कर लिए गए। इनके पासपोर्ट ज़ब्त हो गए। प्रयागराज से लेकर सहारनपुर की शहर कोतवाली के विवेचक दरोगा तक समस्त विवेचना में एक ही भाषा लिखी हुई है। जिससे पता चलता है कि मॉनिटर केंद्र एक ही है।
21 अप्रैल को ही उत्तर प्रदेश के स्वास्थ्य मंत्री सिद्धार्थ नाथ सिंह ने कहा था इन सभी जमातियों के विरुद्ध हत्या के प्रयास का मुकदमा दर्ज किया जाए। हत्या के प्रयास का मुक़दमा तो दर्ज नहीं हुआ मगर इन मामलों में 45 दिन से अधिक समय तक जेल में रखे जाने पर जाँनिसार एडवोकेट कहते हैं, “मैंने अपनी जिंदगी में हत्या के मामलों में एक महीने से कम समय मे ज़मानत होती हुई अनगिनत बार देखी है। सिर्फ राजनीतिक मामलों में ही ग़ैरज़रूरी देरी होती है। इनमें सरकार जो चाहती है वो होता है। वो बताते हैं कि इसी सहारनपुर जेल में जब भीम आर्मी के चंद्रशेखर रावण बंद थे तो जैसे ही वो छूटने वाले होते थे तो उनपर तत्काल एक नया मामला बना दिया जाता था। ऐसा ही बुलंदशहर में हुआ। यहां के माजीद ग़ाज़ी इन विदेशी जमातियों के मामलों को देख रहे हैं वो कह रहे हैं स्थानीय मुसलमानों में भावनाओं का खु़मार हैं। मगर जमातियों को हमने हमेशा मुस्कराते देखा है। इनकीं पेशी वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से कराई जाती है।
तबलीग़ जमात से पिछले 20 सालों से जुड़े हाजी महबूब कहते हैं, ‘यह ही वो हालात है जिसे अत्याचार कहा जाता है। कम से कम बेरुन(विदेशी) के लोगों को जेल नही भेजना चाहिए था। उन्हें क्वारनटीन करते, केस ना बनाता। इसके अलावा देशभर में 22 हजार दूसरे तबलीग़ के साथी या तो जेल भेज दिए गए अथवा क्वारनटिन किए गए। अब डेढ़ लाख कोरोना के मरीज़ है। इनकी तबलीग़ से कोई हिस्ट्री नहीं मिलती। क्या हम ‘नमस्ते ट्रम्प’ के कार्यक्रम के दौरान हुई चूक को नहीं समझ रहे हैं या तमाम विफलता का ठीकरा सिर्फ एक समुदाय के सर फोड़ कर बचा जाएगा! हमारा यक़ीन अल्लाह सब देख रहा है। हम सिर्फ सब्र कर सकते हैं कर रहे हैं।‘
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अपने किसी एक नागरिक को लेकर सरकारें कितनी गंभीर होती है यह भी सहारनपुर के इसी मामले की एक तह से मिलता है। यहां स्पेन, इजराइल और फ्रांस के भी एक-एक जमाती जेल में बंद है। एडवोकेट जाँनिसार के मुताबिक़ इनके अधिकारी बात करते हैं। इन्होंने वकालत नामे पर हस्ताक्षर भी किये है। मुझे ‘नो ऑब्जएक्शन सर्टिफिकेट’ भी मिल गया है। अब इंशाल्लाह ये जमाती ज्यादा दिन जेल में नही रह पाएंगे। हालांकि इसके बाद ट्रायल होने की बात आएगी। ज़मानत होने के बाद इन जमातियों की वतन वापसी हो पाए। यह पूरी तरह नहीं कहा जा सकता है। भारत मे इनके विरुद्ध सबसे गंभीर मामला टूरिस्ट वीज़ा पर आकर धर्मप्रचार का बनाया गया है।
मेरठ के धार्मिक मामलों के एक्सपर्ट अताउररहमान ख़ान बताते हैं, ‘इसे धर्म प्रचार कहना सही नहीं है। क्योंकि वो किसी अन्य धर्म के लोगों के पास जाकर उन्हें धर्म बदलने के लिए प्रेरित नही करते। बल्कि मुसलमानों से ही अपने मज़हब के मुताबिक नमाज़ पढ़ने और ज़कात देने जैसी बेसिक अपील करते है। यह ईसाई मिशनरी जैसा काम नही है।‘
फ़िलहाल इन जमातियों को छुड़ाने के लिए सभी देशों के दूतावास काफी एक्टिव है। वो अदालत के साथ–साथ सरकार से भी अपना पक्ष रख रहे हैं। इनके रिहा होने की संभावनाओं को हरियाणा की नूह अदालत के फैसले से समझा जा सकता है। हरियाणा में 107 विदेशी जमातियों के विरुद्ध भी इसी तरह का मामला बनाया गया था। वहां जमातियों के वकील के तौर असीमा मंडल लड़ रही थी। नूह की अदालत ने महामारी एक्ट में इन पर एक हजार रुपये जुर्माना किया और जमानत दे दी। साथ ही हरियाणा सरकार को इन सभी जमातियों को उनके घर भेजने का भी हुक्म दिया। स्थानीय विद्यायक आफ़ताब अहमद मेवाती ने तत्काल वो जुर्माना अपने पास से अदा कर दिया।
जाँनिसार कहते हैं घूम फिरकर बात सरकार की नीयत पर आ जाती है। मगर वो एक सीमा तक ही दख़ल दे सकती है। हम पूरी शिद्दत से जुटे हैं। जल्द ही तबलीग़ के लोगों को अच्छी ख़बर मिलने वाली है। बिजनोर के जेल अधीक्षक हमें बताते हैं कि विदेशी जमाती बेहद सहयोग करते हैं। हमारे यहां 16 लोग है। ये इंडोनेशिया के है। प्रदेश भर में यह अस्थाई जेलों में रखे गए है। इनके दूतावास से अधिकारी आए थे। वो हमसे संतुष्ट हुए। हमने जेलों की हालात को मेडिकली बेहतर किया है। हम रोज़ाना सेनिटेशन कर रहे हैं। मास्क और पीपीई किट बना रहे हैं। हमसे जमातियों को और उनको हमसे कोई शिकायत नही है।
जमीयत उलेमा ए हिन्द ने भी हाल के दिनों में जमातियों को रिहा करवाने में सक्रियता दिखाई है।
हालांकि यह सक्रियता विदेशी जमातियों को लेकर नहीं है। जमीयत के प्रवक्ता मौलाना अज़ीमुल्लाह बताते हैं, ‘हमारी पहली प्राथमिकता देश के लोग हैं। हमने पहले मदरसे के फंस चुके बच्चों को उनके घर पहुंचाया है। इसके अलावा मुल्क के ही तबलीग़ के 22 हजार जमातियों को उनके घर भिजवा दिया है। अब वो इन विदेशी जमातियों की मदद करेगी। इसके लिए भी हमने कोशिश करनी शुरू कर दी है। वज़ीराबाद से 300 विदेशी जमातियों को बेहतर जगह भेज दिया गया है।
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जमातियों के इस प्रकरण पर तमाम मुस्लिम नेताओं और संगठनों की चुप्पी भी हैरत में डालती है। लखनऊ के ख़ालिद सिद्दीकी कहते है, ‘मुसलमानों में अब नेता अपना वुजूद खो चुके हैं। संगठनों की हिम्मत टूट चुकी है! क़ौम अब अपाहिज दिखाई देती है उसे बैसाखियों की परवाह छोड़ अपने दम पर खड़ा होना होगा। उसे नए नेतृत्व की आवश्यकता है!‘