हमारे संवाददाता किशनगंज नेहाल अहमद ने बिहार के सबसे पिछड़े हुए इलाके के निवासियों से बात की और जानने की कोशिश की आखिर सीमांचल की समस्या की जड़ में क्या है ! सीमांचल के लोगों के ख्यालात उन्ही की ज़बान में पढ़िए –
हारीबिट्टा गाँव के अनवर हुसैन बताते हैं किशनगंज की आबादी लगभग 75 फीसदी मुसलमानों की है। यहाँ कांग्रेस, जदयू और राजद डेरा डालती रही है । यहां ये पार्टियों ने अपनी जगह बनाई है लेकिन काम क्या किया है ये यहां के लोग जानते हैं ! मेरे गाँव को मुख्य सड़क से जोड़ने वाला पूल करीब पिछले 7 वर्षों से टूटा हुआ है ! डाइवर्जन बनाया हुआ है जिसमें बारिश के दिनों में काफ़ी दिक्कतों का सामना कर नाव से आवागमन करना पड़ता है ! गाँव में तेज़ हवा के चलने एवं बारिश होने पर बहुत जल्द ही बिजली काट ली जाती है जो कि बाढ़ के समय कुछ दिनों के लंबे समय तक चला जाता है । पिछले दो-तीन साल पहले गाँव में घटी घटना का ज़िक्र करते हुए कहते हैं कि एक बच्चे की माँ खेत की मेढ़ पर बच्चा खेल रहा था, वो माँ खेत में मजदूरी कर रही थी तभी एक ट्रेक्टर के नीचे आ जाने से इस बच्चे की मौत हो गई तो भी पुलिस ने उस ट्रक्टर के चालक के ख़िलाफ़ कोई कारवाई नहीं की । इसकी वज़ह यह है कि ट्रेक्टर का मालिक मुखिया को पैसा खिला दिया था । यह भी कन्फ़र्म नहीं कहा जा सकता कि पुलिस में यक्त घटना रिकॉर्ड में है भी या नहीं । इलाके में आज भी सामंती एवं दमनकारी व्यवस्था फल-फूल रही है । उस औरत को आज भी इंसाफ़ नहीं मिला । यहाँ की जनता आपसी ताअल्लुक़ के आधार पर जनप्रतिनिधियों का चुनाव करती है । कई आयोजनों जैसे निकाह, शादी न अन्य सुख-दुःख में खुशी या सांत्वना ज़ाहिर कर देने भर से मनोवैज्ञानिक रूप से यहां की एक तबके की जनता का रुझान उन जनप्रतिनिधियों की तऱफ झुक जाता है । जनता में कोई ख़ास राजनीतिक चेतना नहीं आई है । कई लोग गाँव-परिवार एवं इलाके के प्रभावी लोगों की बातों में आकर वोट दे देते हैं । जनप्रतिनिधि दहेज प्रथा जैसी कुरीतियों के ख़िलाफ़ बोलने से कतराते हैं । जिस इलाके में जहां मुखिया खुद अपनी बेटी के शादी में लाखों देकर शादी करवाते हों वहां दहेज प्रथा के मुख़ालफ़त की बात कहां से होगी ! दहेज को लेकर बने कानून का ज़मीनी स्तर पर कोई ख़ास लाभ नहीं हो रहा । यहाँ से इंडो-नेपाल सीमा नज़दीक है । अवैध नशीले पदार्थों का नेपाल सीमा से भारत में प्रवेश बड़ी आसानी से हो रहा है जिसमें राजनीतिक दलों की कोई दिलचस्पी नहीं है। यह इंडो-नेपाल सीमा पर तैनात एसएसबी के मिलीभगत या लापरवाही के बिना यह संभव नहीं है । नशे की वजह से कई बच्चे ग़लत दिशा में जा रहा है । विधायक इन सब मामलों पर संज्ञान नहीं लेते जिस कारण ऐसे धंधे फलफूल रहे हैं।
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सरकार में रहते हुए दो जदयू विधायकों ने एक डिग्री कॉलेज तक नहीं खुलवाया है तो उनसे कई व्यवसायिक कोर्सों को खुलवाने की बात करना उम्मीद से बाहर की बात है। यहाँ के स्थानीय कॉलेजों में पढ़ने वाले छात्र बाद में स्थानीय दुकानों में सहायक के तौर पर लग जाते हैं, अस्पतालों में कम्पाउंडर के तौर पर लग जाते हैं । बहादुरगंज एवं किशनगंज विधानसभा में दशकों से कांग्रेस के विधायक रहने के बाद भी ज़्यादा विकास की ज्योति नहीं जली है ।
शिक्षा पूरी तरह व्यवसाय में तब्दील हो गया है । भ्रष्टाचार कॉलेजों एवं बाबुओं के दफ़्तर में खूब हो रहा है । प्राइवेट स्कूल में कोरोनाकाल में नाम काटने की धमकी देकर फ़ीस मांगी गई । किशनगंज के अधिकतर स्कूल’ कम्प्यूटर लैब, साइंस की लेबोरेटरी के नाम पर आनन-फानन में पैसे ऐंठता रहते है।
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शहर के बीचोबीच एक रमज़ान नदी गुज़रती है जिसका मुद्दा केवल बाढ़ के दिनों में उठता है । इस नदी की गहराई को बढ़ाया जाना चाहिए साथ ही इसके चौड़ीकरण पर भी बल देना चाहिए । घाट की नियमित सफाई ज़रूरी है एवं मार्केट वाले इलाके में इस नदी पर पूल के होने और उस पूल के दोनों बगल की रेलिंग बहुत ज़्यादा टूट गई है जिस पर काम नहीं हो रहा है जिससे किसी दुर्घटना के होने का खतरा बना रहता है । शहरी इलाकों में जुट, चाय उद्योग पर बल देने की ज़रूरत है । अगर प्रोसेसिंग प्लांट लगता है तो स्थानीय लोगों को काफ़ी फ़ायदा होगा । राजद के वक़्त में ठाकुरगंज विधानसभा में जुट के कारखाने लगे थे जो बंद कर दिये गए । कालीन, चटाई का काम हस्तकरघा मशीनों से होता था । नीतीश कुमार के वादों के बावजूद वो शुरू नहीं हो पाया । नीतीश के दावे एवं वादे इस संदर्भ में फेल रहे । एएमयू किशनगंज का मुद्दा बड़ा, पुराना और नासूर सा बन गया मुद्दा है । यह मुद्दा केवल किशनगंज नहीं बल्कि पूरे सीमांचल का मुद्दा है जो राजनीति एवं संबंधित लोगों की उदासीनता की चपेट में आकर अपने बुरे दौर में है । पहली बात तो यह कि बाकी एएमयू सेंटर की तरह किशनगंज सेंटर में एमबीए, बीए- एलएलबी, बीएड खुलना चाहिए था लेकिन एक समय तक बीएड होने के बाद NCTE की मान्यता न होने पर वो अब नहीं हो रहा । केवल एमबीए ही चल रहा है । बीए-एलएलबी को लेकर भी उदासीनता बरती गई है । अगर बीए-एलएलबी के लिए बार काउंसिल ऑफ इंडिया में प्रयास किया गया होता तो शायद कुछ बेहतर नतीजे इस संबंध में देखने को मिल सकते थे।
किशनगंज विधानसभा क्षेत्र के अम्बर शहज़ाद ने कहा कि हमारे विधानसभा क्षेत्र में कुछ महीने उपचुनाव जीतने के बाद एआईएमआईएम के एमएलए थे । उनका काम कहीं दिखा ना ही उनसे पहले जो कांग्रेस से थे उनका दिखा । कोई ज़्यादा योगदान रहा नहीं इससे ये पता चलता है कि आप पार्टी बदल देते है फिर भी काम नहीं हो पाता है । स्थानीय राजनीति में सुधार की आवश्यकता है। अभी के समीकरण के मुताबिक़ मुझे लगता है कि किशनगंज में एआईएमआईएम और कांग्रेस के बीच मुक़ाबला काटे का होगा । बाकी रही एनडीए की बात तो उनका किशनगंज से सीट निकालना बहुत मुश्किल है । हम विधायक को उनके काम काज के बुनियाद पर वोट करेंगे । भाषण से नहीं काम से वोट मिलेगा । जो चुनाव में आएगा उनका पिछला रिकॉर्ड चेक किया जाएगा कि ये आदमी जब किसी पद पर था तो वो वहां कितना समाज के लिए कितना काम किया। भारत एक धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र है। कोई हिन्दू जीते या मुसलमान इससे कोई फर्क नहीं पड़ता । जैसे हमारे विधानसभा में सभी मुस्लिम जीतते है लेकिन मुसलमानों को हालात में कोई सुधार नहीं, बस भरम है कि वो मुस्लिम हैं तो मुसलमानों के लिए कुछ करेंगे।
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कोचाधामन प्रखण्ड सामाजिक कार्यकर्ता सद्दाम अलीग कहते है कि सीमांचल सहित किशनगंज में बदहाली के स्तर में जल्द सुधार होता नहीं दिख रहा । आज जिस तरह जिस तेज़ी के साथ दुनियां बदल रही है उस हिसाब से इस क्षेत्र की रफ़्तार बहुत धीमी है । इंटर, ग्रेजुएशन स्तर पर कॉलेजों की संख्या को बढ़ाकर सत्र को नियमित रूप से चलाना चाहिए और ग्रेजुएशन एवं पोस्ट ग्रेजुएट वाली कॉलेजों की संख्या बढ़े ताकि स्थानीय इलाकों में साथ में कोई रोज़गार में लगे युवा एवं घर में रह कर पढ़ाई करने वाली युवतियों के बीच कोई बाधा उत्पन्न न हो । एएमयू किशनगंज सेंटर की हालत को बेहतर किया जाना चाहिए और साथ ही कृषि क्षेत्र को बढ़ावा दिया जाना चाहिए ।