फैसल फरीद Twocircles.net के लिए
अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के महिला कॉलेज का स्थापना दिवस 2 फरवरी को मनाया जाता है, जो शेख अब्दुल्ला और वहीद जहान की शादी की सालगिरह है। इस दिन को ही स्थापना दिवस चुनने की वजह यह है कि जहान ने इसी दिन से छात्रों को पढ़ाने की बराबर की जिम्मेदारी उठाई थी और इसके साथ ही बोर्डिंग के बच्चों की देखरेख तथा अपने भाषणों में महिला शिक्षा की महत्ता को शामिल किया था।
सबसे पहले शेख अब्दुल्ला के जीवन के कुछ पहलुओं पर नज़र डालते हैं जिन्होंने अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी में महिला कॉलेज की स्थापना की थी। 1875 में, जब सैयद अहमद खान ने अलीगढ़ में मदरसतुल उलूम की स्थापना कर मुस्लिम समुदाय के जीवन में प्रकाश भरने की शुरुआत की, उसी समय लगभग 1000 किलोमीटर दूर, कश्मीर के पूंछ जिले के भंटानी गाँव में कश्मीरी ब्राह्मण परिवार में ठाकुर दास का जन्म हुआ। दास मुस्लिम समुदाय के रूढ़िवादी रवैये को खत्म करते हुए ब्रिटिश भारत में महिला शिक्षा के अग्रणी बने।
मदरसतुल उलूम 1877 में मोहम्मडन एंग्लो ओरिएंटल कॉलेज बन गया जिसका नाम 1920 में जा कर अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय पड़ा। ठाकुर दास इस्लाम धर्म में परिवर्तित हो शेख अब्दुल्ला बन गए। इसके साथ ही ठाकुर दास द्वारा स्थापित किया गया महिला कॉलेज – एएमयू का एक पूर्ण भाग बन गया।
स्त्री शिक्षा और संघर्ष महिलाओं को शिक्षा दिलाने के लिए मुसलमान समुदाय को समझाना ज़रा भी आसान काम नहीं था। पर्दा का सख्त रूप से पालन, महिलाओं पर प्रतिबंध और निगरानी, और अन्य निम्न जाति की लड़कियों के साथ पढ़ाई करना, उनकी शिक्षा का विरोध करने के पर्याप्त कारण थे। यहां तक कि कथित बुद्धिजीवी वर्ग भी महिलाओं की शिक्षा के समर्थन में नहीं था। “जब शेख अब्दुल्ला की महिला शिक्षा के प्रस्ताव को पूर्ण सहमति नहीं मिली, तो शेख अब्दुल्ला ने अलीगढ़ में MAO कॉलेज से लगभग पाँच किलोमीटर दूर अपना ख़ुद का स्कूल शुरू किया।
ए वुमन ऑफ सब्सटेंस, खुर्शीद मिर्ज़ा के संस्मरण, जो कि अब्दुल्ला की पोती लुबना काज़िम द्वारा लिखी गई है, में उल्लेख किया गया है: “मुस्लिम महिलाओं की एक बैठक 1905 में अलीगढ़ में मुस्लिम शैक्षिक सम्मेलन के साथ हुई। वहाँ जो प्रदर्शनी लगाई गयी थी वो एक बड़ी सफलता थी। इसका विरोध भी बहुत बड़े पैमाने पर हुआ था और साथ ही परिसर में इमारतों में से एक का उपयोग करने की अनुमति से इनकार कर दिया गया था। अंतिम समय में, शेख अब्दुल्ला के एक समृद्ध पारसी मित्र ने अलीगढ़ शहर में (बैठक के लिए) अपने घर की पेशकश की। ”
शेख अब्दुल्ला इस फैसले की बारीकियों को अच्छी तरह से जानते थे। मोहम्मडन एजुकेशनल कॉन्फ्रेंस ने उन्हें अपने विचार साझा करने के लिए एक मंच प्रदान किया। वह 1902 में दिल्ली में अखिल भारतीय मोहम्मडन शिक्षा सम्मेलन की महिला शिक्षा अनुभाग के सचिव चुने गये। जबकि, इससे पहले केवल पुरुष ही थे जिन्होंने महिला शिक्षा के मुद्दे पर 1903 में अपने आदेश पर महिलाओं को वार्षिक समारोह में पर्दा का पालन करते हुए सिर्फ भाषण सुनने की अनुमति दी थी। शेख ने अपने विचारों का प्रचार करने के लिए देश भर में दौरा किया और यहां तक कि महिला शिक्षा के महत्व पर प्रकाश डालते हुए एक मासिक पत्रिका खातून (1904) प्रकाशित की। यह पत्रिका पूरे भारत में मुस्लिम महिलाओं के प्रगति में एक महत्वपूर्ण मोड़ साबित हुई – जिन महिलाओं को शिक्षा हासिल करने का विशेषाधिकार था, उन्होंने शेख को महिलाओं की शिक्षा के स्पोर्ट में खत लिखना शुरू किया।
शेख अब्दुल्ला के मिशन ने गति प्राप्त करना शुरू कर दिया, लेकिन उन्होंने इस बात को समझा कि मुस्लिम महिलाओं की इसमे भागीदारी होनी चाहिए। 1905 में मुस्लिम महिलाओं द्वारा बनाए गए उत्पादों की शिल्प प्रदर्शनी शुरू करने का उन्होंने विचार बनाया। उत्पादों में कढ़ाई का काम, पेंटिंग और अन्य सामान शामिल थे। इन प्रदर्शनियों के सफलता के स्वरूप में कुछ पैसों का मुनाफा भी हुआ।
इसी बीच, भोपाल की बेगम सुल्तान जहान से बहुत जरूरी प्रोत्साहन मिला। वह उस समय भारत की एकमात्र मुस्लिम महिला शासक थीं, और इसके साथ ही महिला शिक्षा की कट्टर समर्थक थीं। शेख अब्दुल्ला ने उन्हें एक पत्र लिखा, जिसके उत्तर में, 21 दिसंबर, 1904 को उन्होंने उस दिन से 100 रुपये के मासिक वजीफे का आश्वासन दिया, जिस दिन से स्कूल ने काम करना शुरू किया था।
अलीगढ़ गर्ल्स स्कूल की स्थापना 1906 में की गई थी, जिसमें सिर्फ कुछ छात्र थे, जिनमें से ज्यादातर उनके परिवार से ही थे। छात्रों को पालकी में बांधकर स्कूल लाना एक बहुत ही कठिन कार्य था। 1914 तक, एक छात्रावास बनाने के लिए पर्याप्त पैसा हो चुका था। शुरुआती बाधाओं के बाद, स्कूल 1926 में एक इंटरमीडिएट कॉलेज बन गया और बाद में एएमयू के महिला कॉलेज के तौर पर उसका एक हिस्सा बन गया। कॉलेज की आधारशिला 7 नवंबर, 1911 को तत्कालीन उपराज्यपाल की पत्नी ‘लेडी पॉटर’ ने रखी थी। लेकिन, स्थापना दिवस 2 फरवरी, जो शेख अब्दुल्ला और वहीद जहान की शादी की सालगिरह है, को मनाया जाता है, ।
शेख अब्दुल्ला के स्त्री शिक्षा के संघर्ष में उनकी पत्नी की भूमिका बहुत अहम है। उन्होंने शुरू में छात्रों को पढ़ाने की समान जिम्मेदारी साझा की। उन्होंने अपने पति के साथ पांच बेटियों और एक बेटे की परवरिश की। ऐसा कहा जाता है कि शेख अब्दुल्ला का महिलाओं की शिक्षा के लिए जिहाद वहीद जहान के बिना अधूरा होता। लुबना काज़िम ने अपनी किताब में एक अन्य उदाहरण में कहा है, “महिलाओं की शिक्षा के समर्थन में मुस्लिम महिलाओं की एक सभा में, उन्होंने (वहीद जहान) उल्लेख किया कि तुर्की और मिस्र में महिलाओं को शिक्षित किया जा रहा था और यह उनके समाज लिए फायदेमंद था।” यह भाषण, जनवरी 1906 खातून में प्रकाशित हुआ था।
शेख अब्दुल्ला 1965 में अपनी मृत्यु तक अलीगढ़ में रहे। उन्हें 1964 में पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया। उन्होंने यूपी विधान परिषद के सदस्य के रूप में भी कार्य किया।
( यह लेख मुख्य तौर पर अंग्रेजी में ‘इंडियन एक्सप्रेस’ में पब्लिश हुआ है। लेखक फैसल फरीद की सहमति से हम इसे यहां हिंदी में प्रकाशित कर रहे हैं। लेखक और पत्रकार फैसल फरीद टीसीएन के महत्वपूर्ण स्तंभ रहे हैं )
हिंदी रूपातरण – तन्वी सुमन