आलोक राजपूत
जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) विभिन्न राष्ट्रीय विवादों एवं गरमा-गरम बहसो का केंद्र बिंदु रहा हैं। हालांकि स्वयं जेएनयू के भीतर व्याप्त विभिन्न समस्याये, मुख्यतः प्रवेश परीक्षा संबंधी अनियमिततायें, कभी भी व्यापक राष्ट्रीय चर्चा का विषय नहीं बनी। इसी उद्देश्य की पूर्ति के लिये जेएनयू शिक्षक संघ ने जेएनयू मे चली आ रही प्रवेश परीक्षा संबंधी समस्याओ एवं अन्य अनियमितताओ को राष्ट्रीय पटल पर लाने के लिये प्रेस कॉन्फ्रेंस का आयोजन भी किया है। इसमें जेएनयू शिक्षक संघ ने यह आरोप लगाया कि जेएनयू के पिछले कुलपति जगदीश कुमार मामीडाला के समय उत्पन्न हुई प्रशासनिक समस्याओं, नई शिक्षा नीति के अंतर्गत लगभग सभी केंद्रीय विश्वविद्यालयों में एनटीए के द्वारा संचालित प्रवेश संबंधी परीक्षा लेने के लिये सीयूईटी को मान्यता एवं पिछले करीब छह वर्ष से चली आ रही यूजीसी के मनमर्जी पूर्ण दिशा निर्देशों के कारण ना सिर्फ विभिन्न विषयों में जेएनयू के निर्णय लेने की स्वायत्तता को भारी नुकसान हुआ है बल्कि जेएनयू के लगभग पचास प्रतिशत छात्र जो बारह हजार से कम आमदनी वाले परिवारों से आते है उन छात्रों को भी तमाम समस्याओं का सामना कर पड़ रहा है।
जेएनयू शिक्षक संघ ने उपरोक्त लिखित समस्त समस्याओं को प्रेस कांफ्रेंस के माध्यम से राष्ट्रीय पटल पर रखने का निर्णय इसलिये लिया क्योंकि हाशिये के समाज से संबंध रखने के बावजूद जेएनयू आकर पढ़ाई करने का स्वप्न देखने वाले छात्रों के लिए नई शिक्षा नीति से मान्यता प्राप्त केन्द्रीय विश्वविद्यालयों के लिये सामूहिक प्रवेश परीक्षा ने हालात बेहद गंभीर बना दिये हैं। जेएनयू शिक्षक संघ का तर्क ये है कि सीयूईटी ने जिस प्रकार से जेएनयू के अकादमिक पंचांग में अनियमितता पैदा की हैं वे किसी कोरोना त्रासदी से कम नहीं है।
जेएनयू का वार्षिक सत्र छह-छह महीने के दो सेमेस्टर, मानसून एवं विंटर, में विभाजित होता है, चूंकि स्नातक व परास्नातक कोर्सों के लिये सीयूईटी परीक्षा का आयोजन बहुत ही देर से कराया गया यूनिवर्सिटी के BA और MA कोर्सों की प्रवेश प्रक्रिया अभी तक पूर्ण होना बाकी है इसी कारण वश जून से प्रारम्भ हो जाने वाले मानसून सेमेस्टर को अभी तक शुरू होने का इंतज़ार है। इतना ही नहीं नेशनल टेस्टिंग ऐजेन्सी ने राष्ट्रीय स्तर पर केंन्द्रीय विश्वविद्यालयो के शोध कोर्सो के लिये, जिसमे जेएनयू के विश्व प्रसिद्ध शोध कार्यक्रम भी शामिल है, सामूहिक परीक्षा का आयोजन करने से भी अपना हाथ पीछे खींच लिया है। इसलिये यदि पीएचडी या अन्य कोर्सो के लिये तात्कालिक रूप से भी प्रवेश परीक्षा करा भी ली जाये यह तय है कि जेएनयू के प्रोफेसरो को नये छात्रों को पढ़ाने के लिये अगले चार से छह माह का इंतजार करना होगा। यह ना सिर्फ समय की घोर बर्बादी है बल्कि जेएनयू जैसी संस्था जो पहले से ही आर्थिक संसाधनों की कमी से जूझ रही उसके लिये बिना किसी फल के संसाधनों नष्टीकरण मात्र है।
हालांकि ये तर्क भी देना उचित नहीं होगा कि चूँकि सीयूईटी की सम्पूर्ण प्रक्रिया अभी नई है इसलिये आने वाले समय में धीरे-धीरे चीजें खुद व खुद पटरी पर आ जायेंगी। जेएनयू शिक्षक संघ का तर्क ये है कि सीयूईटी की परीक्षा बहुविकल्पीय प्रश्नों पर आधारित हैं जिससे अभ्यर्थियों की तर्क बुद्धि का मूल्यांकन करना लगभग असंभव है। जेएनयू जैसे ख्याति प्राप्त कोर्सो की पूरी उपयोगिता इस बात पर टिकी है अभ्यर्थी को तार्किक लेख लिखना आता हो जो क्षमता सीयूईटी के बहुविकल्पीय प्रश्नों से मूल्यांकित नहीं की जा सकती। इसलिये जेएनयू शिक्षक संघ ने मांग की कि जेएनयू की प्रवेश परीक्षा को वर्तमान व्यवस्था से इतर जेएनयू की पहले की व्याख्या पूर्ण लेखन आधारित प्रवेश परीक्षा पर वापस लौट जाना चाहिये। हालांकि इस प्रकार की लेखन आधारित सब्जेक्टिव प्रवेश परीक्षा का विरोध इस आधार पर होता रहा है कि ये व्यवस्था प्रोफेसरो को विभिन्न अभ्यर्थियों को समान उत्तर के लिए भी भिन्न- भिन्न अंक देने की स्वायत्तता देती थी जो भेदभाव पूर्ण था। जेएनयू शिक्षक संघ की प्रेस कांफ्रेंस में उपस्थित समाजशास्त्र की प्रोफेसर वी. सुजाता इस तर्क का जबाब मोटे मोटे तौर पर कुछ इस प्रकार से देती है कि सीयूईटी बहुविकल्पीय प्रश्नों पर आधारित परीक्षा हैं और इस प्रकार के प्रश्न घुमा फिरा कर साल दर साल पूछे जाते है जिससे कोचिंग संस्थानों को यह सुविधा हो जाती है कि वे अपने छात्रों को ये प्रश्न रटा कर परीक्षा पास करा दे और इस बात का दिखावा करें कि उनके छात्रों ने सबसे ज्यादा प्रवेश परीक्षा पास की जिससे उनका कोचिंग उद्योग फल- फूल सके। उदाहरण के लिए बहुविकल्पीय प्रश्नों पर आधारित परीक्षा व्यवस्था का विरोध इस प्रकार समझा जा सकता है कि समाजशास्त्र जैसा विषय जो कि नित बदलने वाले तर्क- वितर्क पर आधारित है उसके संदर्भ में किसी अभ्यर्थी का ज्ञान बहुविकल्पीय प्रश्नों के आधार पर पुष्टता से कैसे जांचा जा सकता है! उदाहरण के लिए यह प्रश्न पूछते समय की भारत में वैवाहिक रिश्ते कमजोर क्यों हुए हैं अभ्यर्थी को मात्र चार में से एक सही विकल्प चुनने को कैसे कहा जा सकता है क्योंकि वैवाहिक रिश्तों के कमजोर होने के विभिन्न सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक एवं कानूनी कारण है और इनमें से कोई भी कारण कम या ज्यादा नहीं है बल्कि इन सभी कारणों का वैवाहिक रिश्तों पर सामूहिक प्रभाव पड़ा है! जेएनयू शिक्षक संघ ने बहुविकल्पीय प्रश्न आधारित सीयूईटी प्रवेश परीक्षा का विद्रोह करते हुए इस बात के आंकड़े भी दिये कि अमेरिका या यूरोप महाद्वीप के सभी देशों में स्थापित लगभग सभी विश्वविद्यालय में कोई भी ऐसा विश्वविद्यालय नहीं है जो अपने पीएचडी के शोधार्थियों का चयन मात्र बहुविकल्पीय प्रश्न आधारित व्यवस्था पर करता हो।
जेएनयू में समाजशास्त्र के लिए विख्यात सेंटर फार द स्टडी ऑफ द सोशल सिस्टम (The Centre for the study of social systems) में परास्नातक स्तर के छात्र जेएनयू शिक्षक संघ के शब्दों को सही साबित करते हुए बताते हैं कि उन्होंने जेएनयू मे 2020-2022 के सत्र में दाखिला लिया और उस भीषण कोरोना महामारी के दौर में उनके अधिकांश सहपाठी वो ही छात्र थे जिन्होंने ऑनलाइन एजुकेशन प्लेटफार्म अनएकेडमी से समाजशास्त्र (NTA-NET) की कोचिंग करी थी। पिछले कुछ वर्षों में बहुत से छात्रों के लिए जेएनयू तक पहुँचना इसलिए संभव हो पाया क्योंकि वे अनएकेडमी पर कोचिंग किया करते थे। विभिन्न सोशल साइंस विभाग के छात्र इस बात को मानते है कि जिन छात्रों के पास उनकी भांति इंटरनेट, लैपटॉप या फिर अनएकेडमी का खर्चा वहन करने की सुविधा नहीं थी वे जेएनयू तक नहीं पहुंच पाये और बिहार, उत्तर प्रदेश या झारखण्ड में पीछे ही छूट गये।
जेएनयू के प्रोफेसरो का कहना है कि 2020-2022 के शैक्षणिक सत्र में सेमेस्टरो का समय काल छह माह से कम किया गया जिससे सभी चालू कोर्सो को समय पर खत्म किया जा सके। लेकिन 2020-2022 के सत्र से उलट वर्तमान समय में कोरोना महामारी की कोई समस्या नहीं है लेकिन नई शिक्षा नीति को जोर जबरन लागू करने के प्रयास में केन्द्रीय विश्वविद्यालयों के शैक्षणिक सत्र में जानबूझकर विलम्ब कराया जा रहा है जो कि भारत की शिक्षा व्यवस्था के साथ किया गया मूर्खता पूर्ण कृत्य है।
जेएनयू शिक्षक संघ ने सीयूईटी के कारण उत्पन्न हुई समस्याओं एवं सम्पूर्ण परीक्षा प्रणाली में गड़बड़ी के अतिरिक्त इस बात की भी जानकारी दी कि पिछले कुछ वर्षों में जेएनयू की पीएचडी सीटो की संख्या अत्यंत कम क्यों हो गयी हैं ! विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के नियमों के अनुसार एक असिस्टेंट प्रोफेसर चार शोधार्थियों का गाइड बन सकता है, ऐसोशियेट प्रोफेसर छह और प्रोफेसर को एक समय पर कुल आठ शोधार्थियों को गाइड करने का नियम है। चूकि पिछले कुछ समय से विभिन्न प्रोफेसरो का आगे के पद, जैसे असिस्टेंट से एसोशियेट या एसोशियेट का पूर्णकालिक प्रोफेसर, पर प्रमोशन नहीं हुआ है इसलिये जो व्यक्ति वर्तमान में असिस्टेंट प्रोफेसर के पद पर कार्यरत हैं और मात्र चार शोधार्थियों को प्रशिक्षण दे रहा है उसे नियमानुसार एसोशियेट प्रोफेसर होना चाहिये था और छह शोधार्थियों को प्रशिक्षित कर रहें होना चाहिये था। इसी प्रकार प्रोन्नति नहीं पाने वाले अन्य प्रोफेसरो के पास गाइड करने के लिए उससे अधिक छात्र होने चाहिए थे जितने छात्रों को वे आजकल गाइड कर रहे है। जेएनयू शिक्षक संघ के अनुसार इस प्रमोशन की समस्या से मात्र 2021-2022 के जेएनयू के अकादमिक सत्र में कुल 378 पीएचडी सीटो की कमी आयी हैं, जो कि बहुत दुर्भाग्य पूर्ण हैं।
जेयनयू मे पॉलिटिकल थ्योरी के छात्र प्रतीक विजयवर्गीय शोध के लिये पीएचडी सीट की कमी को शिक्षा के निजीकरण से जोड़ते हुये देखते है कि गत कुछ वर्षों से या आजकल भी बहुत से छात्र जो जेएनयू सरीखे केन्द्रीय विश्वविद्यालय में शोध करना चाहते है परन्तु सीट कट की वजह से कर नहीं पाते वे या तो खर्चीले प्राइवेट विश्वविद्यालयो का रुख करते या फिर विदेशी संस्थानों में प्रवेश पाने की कोशिश करते है। यह मात्र सार्वजनिक शिक्षा के तेजी से हो रहे निजीकरण का विषय नहीं है, बल्कि अगले कुछ वर्षो मे खुद को विश्व गुरु के रूप में स्थापित करने की चाह रखने वाले देश से प्रत्येक अकादमिक वर्ष मे इतनी ज्यादा मात्रा मे प्रतिभा पलायन भी चिंतनीय है।