By TwoCircles.net staff reporter,
क्यों मोदी का किसानों को दिया जाने वाला मुआवज़ा मछली फंसाने के चारे सरीखा है, कश्मीरी पंडितों से भाजपा क्या हासिल करना चाह रही है, क्यों नाराज़ वी.के.सिंह, ओवैसी की उद्धव को ललकार और अरुणाचल में अफस्पा क्यों बढ़ाया गया?…..आज के पांच
1. मोदी के मुआवज़ा ऐलान के पीछे का सच क्या?
जानकारी से सामना कराने का कायदा निभाते हुए बताना ज़रूरी है कि नरेन्द्र मोदी ने ऐलान किया है कि फसल बर्बाद होने पर किसानों को पहले से ज़्यादा मुआवज़ा मिलेगा. नई दिल्ली में मुद्रा बैंक के लौन्चिंग के अवसर पर प्रधानमंत्री ने कहा कि पहले किसानों को 50 प्रतिशत या उससे ज़्यादा फसल बर्बाद होने पर मुआवज़ा मिला करता था, लेकिन सरकार ने अब फ़ैसला किया है कि अब 33 प्रतिशत या उससे ज़्यादा का नुकसान होने के बाद भी किसानों को बर्बाद फसल का मुआवज़ा मिलेगा. इसके साथ प्रधानमंत्री ने यह भी घोषणा की कि मुआवज़े की राशि अब पहले से डेढ़ गुना ज़्यादा होगी. बकौल मोदी, बैंकों को कहा गया गया है कि बेमौसमी उथल-पुथल से प्रभावित किसानों के लिए ऋण का पुनर्गठन करें ताकि उन्हें असुविधा न हो. नरेन्द्र मोदी ने कहा कि उनकी सरकार किसानों के अच्छे के लिए हरसंभव प्रयास कर रही है. प्रधानमंत्री के बयान को सिर्फ़ ऐलान की तरह नहीं देखा जाना चाहिए. भूमि अधिग्रहण को लेकर सरकार हर ओर से किसानों का विरोध झेल रही है. सरकार अपने कदम भी पीछे खींचने की दिशा में कोई विचार कर रही है. सरकार का लक्ष्य है कि वह मौजूदा ड्राफ्ट को ही सदनों में पास करवाए. इसके लिए नरेन्द्र मोदी ने किसानों से ‘मन की बात’ भी की थी. इन सभी तथ्यों को ध्यान में रखकर प्रधानमंत्री के हालिया बयान की पड़ताल करते वक्त एक ही बात ज़ेहन में आती है कि यह किसानों को लुभाने का एक प्रयास है. संभवतः सरकार किसानों को यह भरोसा दिलाना चाहती है कि वह किसानों की रहमतगार है, उनके भले के लिए सोचती है, ताकि भूमि अधिग्रहण के लिए रास्ता और सुगम हो सके. विपक्षी सरकार के बयान का माखौल उड़ाते हुए कह रहे हैं कि जब किसानों के पास ज़मीन ही नहीं रहेगी तो वह मुआवज़ा किस चीज़ का लेंगे.
2. सामने आया भाजपा का ‘कश्मीरी पंडित कार्ड’
केन्द्र सरकार कश्मीरी पंडितों के लिए रिहायशी टाउनशिप बसाने पर विचार कर रही है. इसके लिए सरकार ने जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री मुफ़्ती मोहम्मद सईद से ज़मीन मुहैया कराने के लिए भी कहा है. सूत्रों की मानें तो मुख्यमंत्री सईद ने जमीन देने के लिए आश्वासन दे दिया है. इसके बाद जल्द ही सरकार जमीन का अधिग्रहण कर घाटी में टाउनशिप बसाने के लिये तैयारी शुरू कर देगी. इस सम्बन्ध में केन्द्रीय गृहमंत्री राजनाथ सिंह और घाटी के मुख्यमंत्री के बीच बुधवार को मुलाक़ात भी हुई. भाजपा एक लम्बे समय से कश्मीरी पंडितों को लेकर रोना रोती रही है. कश्मीर के गिने-चुने मुद्दे भाजपा के लिए चिंता का सबब बनते मालूम होते हैं. जिस तरह से कश्मीर में दक्षिणपंथी ताकतों के प्रभाव में कश्मीरी पंडितों और मुस्लिमों के बीच ध्रुवीकरण हुआ है, वह चिंता का विषय है. लेकिन बजाय उस चिंता को समझने के, भाजपा अपना ‘कश्मीरी पंडित कार्ड’ खेल रही है. मुस्लिम समुदाय के बीच भरोसा खो रही भाजपा अब कश्मीरी पंडितों के साथ भावनात्मक स्तर का जुड़ाव हासिल करना चाह रही है.
3. अरुणाचल प्रदेश में अफस्पा के अधिकार बढ़ाए गए
केन्द्र सरकार ने पूर्वोत्तर के राज्य अरुणाचल प्रदेश में आर्म्ड फोर्सेज़ स्पेशल पॉवर्स एक्ट (अफस्पा) के अधिकार बढ़ाकर गोली चलाकर जान से मार देने (शूट टू किल) तक बढ़ा दिए हैं. इसके पहले पूर्वोत्तर के अन्य राज्यों में स्थानीय लोगों, अलगाववादी ताकतों के साथ-साथ माओवादियों के साथ निबटने के लिए अफस्पा का इस्तेमाल किया जाता था. अरुणाचल प्रदेश इस मामले में अब तक एक शान्त प्रदेश था. लेकिन अब अरुणाचल प्रदेश भी इस फ़ेहरिस्त में आ गया है, जहां अफस्पा को इस कदर लागू किया गया है. मूलतः अफस्पा सैन्य बलों को बिना किसी वारंट के सर्च ऑपरेशन करने की छूट देता है. पूर्वोत्तर के राज्यों में भाजपा की पहुंच है नहीं, कश्मीर में है तो पीडीपी के साथ मिलकर घाटी में अफस्पा धीरे-धीरे हटाने की बात हो रही है. इसका पूरा फायदा राज्य सरकार को मिलेगा. वहीं इसके उलट शान्त अरुणाचल प्रदेश में अफस्पा लागू करने से सेना की अराजकता बढ़ेगी, जिससे प्रदेश की सरकार आलोचना झेलेगी. उस स्थिति में भाजपा कश्मीर और पूर्वोत्तर की तुलना का कार्ड खेल सकती है.
4. वी.के. सिंह की मीडिया से नाराज़गी
गठन के बाद मोदी सरकार के मंत्रियों, घटकों और जुड़े हुए अन्य दक्षिणपंथी संगठनों के लोगों के विवादित बयानों की एक बयार-सी चली है. इस बयार में अब विदेश राज्यमंत्री जनरल वी.के. सिंह कूद पड़े हैं और मीडिया को वेश्यालय कह दिया है. अब जनरल सिंह ने जो कहा है, उसका किसी भाषा में कोई अनुवाद मुमकिन नहीं है. उन्होंने मीडिया को ‘प्रेस्टीट्यूट’ – जो वेश्यालय की अंग्रेज़ी ‘प्रौस्टीट्यूट’ से बनाया हुआ लगता है – कहा है. दरअसल यमन के जिबूती शहर में जनरल सिंह ने कहा था कि, ‘यहां आकर भारतीयों को बचाना उतना रोमांचक नहीं था, जितना पाकिस्तान दिवस के कार्यक्रम में शामिल होना था.’ इस बयान की खूब निंदा हुई तो उन्होंने ट्वीट कर दिया कि दोस्तों, आप प्रेस्टीट्यूट से क्या आशा कर सकते हैं? वी.के. सिंह की खीज भी साफ़ है. वे पिछले एक महीने से मीडिया के निशाने पर हैं. मीडिया में ही उनके एक बयान के ज़रिए उठे बवाल के बाद जनरल सिंह को माफ़ी भी मांगना पड़ा. धीरे-धीरे वी.के. सिंह का समय और ज़्यादा कठिन होता जा रहा है.
5. ओवैसी की उद्धव को ललकार
एमआईएम (ऑल इंडिया मजलिस ए इत्तेहादुल मुसलिमीन) के सांसद अकबरुद्दीन ओवैसी ने शिवसेना अध्यक्ष उद्धव ठाकरे को ‘घर का शेर’ करार देते हुए हैदराबाद आने की चुनौती दे दी है. मुम्बई की बांद्रा ईस्ट सीट पर 11 अप्रैल को होने वाले उपचुनाव के लिए बीती रात एक चुनाव रैली को संबोधित करते हुए ओवैसी ने कहा कि यदि आप (उद्धव ठाकरे) शेर हैं तो यह कैसा शेर है जो बाहर नहीं निकल रहा? यह किस तरह का शेर है जो अपने घर मुंबई और महाराष्ट्र में ही रहता है. ओवैसी ने कहा कि उद्धव ठाकरे कहा करते हैं कि हम ‘हैदराबाद वाले’ हैं. लेकिन हमने तो मुम्बई में भी अपनी जगह बना ली है. शिवसेना ने भी अपना जवाब दे दिया. शिवसेना ने कहा कि हमने हैदराबाद के निजाम को भगा दिया, ये ओवैसी कौन है? ओवैसी के बयान को सिर्फ़ एक प्रोपगेंडा की तरह नहीं देखा जाना चाहिए. एमआईएम के अब तक एक इतिहास को गौर से देखें तो साफ़ नज़र आता है कि एमआईएम ने ओवैसी के बयानों के बल पर जगह बनायी है. इन बयानों में मुस्लिम समुदाय को अपनी बढ़त का कोई रास्ता दिखता है तभी नगर निगम चुनावों में एमआईएम ने 11 सीटों पर कब्ज़ा कर लिया था. अब देखने की बात यह होगी कि शिवसेना और कांग्रेस की रणनीति क्या होगी?