By TwoCircles.net staff reporter,
पंच-नामा में आज….क्यों सही है कांग्रेस की मोदी को नसीहत, क्यों जायज़ हैं शिवसेना के सवाल? किसके दखल से परेशान हैं राज्यसभा सांसद, क्यों स्मृति ईरानी के दिन बुरे होते जा रहे हैं और आलम फ़िर से गिरफ्त में.
1. कांग्रेस की मोदी को नसीहत
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कनाडा में जमकर भाषणबाजी की. उस भाषणबाजी में उन्होंने पूर्ववर्ती सरकारों के राज को ‘स्कैमयुक्त’ करार दे दिया और अपने शासनकाल को स्वर्णिम. अब इसके जवाब में कांग्रेस हमले पर उतर आई. कांग्रेस ने कहा कि विदेशी मिट्टी पर नरेन्द्र मोदी जिस तरह से पिछली सरकारों की आलोचना कर रहे हैं, उससे कुछ और ही सन्देश जा रहा है. मोदी को देश के प्रधानमंत्री की तरह बर्ताव करना चाहिए, न कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रचारक के रूप में. कांग्रेस ने नसीहत दी है कि मोदी बाहर जाते हैं तो वे देश के प्रतिनिधि हैं, न कि भाजपा या कांग्रेस के. कांग्रेस प्रवक्ता आनंद शर्मा ने पत्रकारों से बात करते हुए कहा कि वे भूल जाते हैं कि वे पार्टी के नहीं देश के प्रतिनिधि हैं. अब आगे कभी भी वे इस कदर देश को बदनाम करेंगे, उसका तुरंत जवाब देने के लिए हम वहां मौजूद होंगे. ज्ञात हो कि मोदी ने कहा था, ‘जिनको गन्दगी करनी थी, करके चले गए. अब हम सफ़ाई करेंगे.’ आनंद शर्मा का यह कहना सही भी है, क्योंकि जिस तरह से भाजपा मौजूदा प्रधानमंत्री के विदेश सम्बन्धों को लेकर दुष्प्रचार कर रही है, उसमें यह बात साफ़ हो जा रही है कि प्रोजेक्शन और एक्स्पोज़र की राजनीति को लेकर भाजपा कहीं ज़्यादा गलत कदम उठा रही है.
Masrat Alam (TCN file photo)
2. जनता परिवार पर शिवसेना के सवाल
कई दिनों से जनता परिवार के विलय को लेकर जो खींचातानी चल रही थी. बीते कल को उस खींचातानी का परिणाम भी सामने आ गया. जनता परिवार के सभी घटकों का विलय भी हुआ और मुलायम सिंह यादव को कमान भी सौंप दी गयी. अब शिवसेना ने जनता परिवार के अस्तित्व पर प्रश्न उठाया है. शिवसेना ने कहा है कि इस सम्भावना बेहद कम है कि जनता परिवार के नेता एक-दूसरे की पीठ में छुरा नहीं घोपेंगे. ‘सामना’ में कहा गया है कि हालांकि लालू यादव और मुलायम एक दूसरे के रिश्तेदार हैं, लेकिन देखना होगा कि दो लोग एक ही चादर के भीतर कब तक रह सकते हैं. ‘सामना’ में यह भी कहा गया है कि बिहार विधानसभा की तारीखों की घोषणा होने के बाद देखना होगा कि अभी एक-दूसरे की पीठ थपथपा रहे ये नेता कैसा बर्ताव करते हैं. शिवसेना के इन प्रश्नों का जनता परिवार को उत्तर देना होगा क्योंकि बीते वक्त में जब भी जनता परिवार बिखरा है, हर बार इन नेताओं के निजी राजनीतिक हितों के कारण ही बिखरा है. ज़ाहिर है कि जनता समर्थन देने के पहले भी इन प्रश्नों पर विचार करे. ऐसे में इन घटक दलों के नेताओं को अपने-अपने क्षेत्रों में इन प्रश्नों का मजबूती से उत्तर देना होगा.
3. क्या कहा है राज्यसभा सांसदों ने राष्ट्रपति से
चार राज्यसभा सांसदों ने राष्ट्रपति से स्मृति ईरानी द्वारा नीत मानव संसाधन एवं विकास मंत्रालय को लेकर शिकायत की है. समाजवादी पार्टी के केसी त्यागी, सीपीआई के डी राजा, कांग्रेस के राजीव शुक्ल और एनसीपी के डीपी त्रिपाठी ने आरोप लगाया है कि स्मृति ईरानी देश के शिक्षण संस्थानों की कार्यप्रणाली में अवरोध पैदा कर रही हैं. इन्होनें कहा है कि स्मृति ईरानी और स्वयंसेवक संघ देश के विश्वविद्यालयों और आईआईटी के साथ खिलवाड़ कर रहे हैं. राष्ट्रपति से इन लोगों का आग्रह है कि वे यथाशीघ्र इस मामले में हस्तक्षेप करें. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के दखल को लेकर पहले भी काफी विवाद हो चुका है. इसके पहले एचआरडी मंत्रालय की कार्यप्रणाली और फैसलों में भी विवाद की कोई न कोई जड़ ज़रूर मौजूद रही है. यूजीसी को खत्म करने की बात बेहद प्रमुखता से उठ ही चुकी है. जानकारों का मानना है कि इन बातों और तथ्यों को ध्यान में रखते हुए माननीय राष्ट्रपति को यथाशीघ्र इस मामले का संज्ञान लेते हुए उचित हस्तक्षेप करना चाहिए.
4. स्मृति ईरानी को पीएमओ का झटका
नरेन्द्र मोदी ने पदभार ग्रहण करते वक्त ही कहा था कि सभी मंत्रियों के सचिवों की नियुक्ति पीएमओ की सहमति से ही होगी. ज़्यादा बवाल नहीं हुआ लेकिन अब स्मृति ईरानी के ओएसडी की नियुक्ति को लेकर पीएमओ के तेवर स्मृति के पक्ष में नहीं दिख रहे हैं. पीएमओ ने स्मृति ईरानी के ओएसडी संजय कचरू की नियुक्ति पर रोक लगा दी है. संजय कचरू अब मंत्रालय भी नहीं आ रहे हैं. प्रधानमंत्री के हालिया विदेश दौरों के पहले ही पीएमओ ने स्मृति ईरानी के ओएसडी के रूप में कचरू की नियुक्ति से जुड़ी फाइल मंगाई थी. कचरू की कार्यप्रणाली पर सोशल मीडिया में हुई चर्चा से मोदी खुश नहीं थे, इसलिए ऐसा कदम उठाना पड़ा है. इसके अलावा यह भी सुगबुगाहट है कि कचरू के खिलाफ़ सबूत मिले हैं कि वे अभी भी अपनी पुरानी कम्पनी से जुड़े हुए हैं. भाजपा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी में स्मृति ईरानी को शामिल कराने को लेकर भाजपा पहले ही बवाल काट चुकी है, अब पीएमओ से भी झटका मिल रहा है. कई सांसदों ने भी स्मृति के खिलाफ़ मोदी से शिक़ायत की है, ऐसी खबरें हैं. अब संजय कचरू की नियुक्ति को लेकर जो भी बवाल होना है, होता रहेगा. लेकिन यह भी याद रहना चाहिए कि खुद के सचिव नृपेन्द्र मिश्र की नियुक्ति के लिए मोदी ने कानून तक में बदलाव कर दिया था.
5. और आलम गिरफ्त में
अब सवाल है कि शान्त पड़े तालाब में पत्थर फेंकने की क्या ज़रूरत थी पीडीपी को कि उसने मसरत आलम को रिहा कर दिया? मसरत आलम को भी अपनी रिहाई का आनंद उठाने के बजाय फ़िर से पुराने राग अलापने की जल्दी पड़ी थी, जिसकी भरपाई अब वे कर रहे हैं. गिलानी के घर तक गए हुजूम में पाकिस्तान के झंडे फहराए गए तो मसरत के आज़ादी के दिन खत्म हो गए. उन्हें पहले नज़रबंद किया गया और अब खबर है कि उन्हें गिरफ़्तार कर लिया गया है. अब मामले की गर्मी इतनी बढ़ गयी है कि पाकिस्तान में बसे हाफ़िज़ सईद ने भी मसरत आलम के समर्थन में आवाज़ बुलंद कर दी है. हाफ़िज़ ने कहा है कि मसरत की गिरफ़्तारी पाकिस्तान का अपमान है. आलम की गिरफ़्तारी के बाद उनके समर्थकों ने फ़िर से बवाल करना शुरू कर दिया है. हर तरह प्रदर्शन और नारेबाजी का दौर चल रहा है. अब पीडीपी सरकार खुद ही अपने किए का फल भुगत रही है.