सिद्धांत मोहन, TwoCircles.net
गुड़गांव: दिल्ली से सटे हरियाणा के गुड़गांव में मुस्लिमों के घर तोड़े जाने का नया मामला सामने आया है. गुड़गांव में बसे सराय अलावर्दी गांव में मुस्लिमों की एक बेहद छोटी आबादी के खिलाफ हरियाणा का पूरा सियासी अमला उतर आया है.
गुड़गांव में आज से करीब 600 साल पहले एक मस्जिद का निर्माण अलाउद्दीन खिलजी ने करवाया था. मस्जिद के नाम पर गांव का नाम ‘सराय अलावर्दी’ पड़ गया. कई सालों तक गांव में कोई मुस्लिम आबादी नहीं थी. तकरीबन 30 साल पहले हरियाणा वक्फ़ बोर्ड ने मस्जिद की निगरानी और देखभाल के लिए कुछ लोगों को ज़मीनें दीं. 30 सालों के दरम्यान अभी सराय अलावर्दी में अब 100 घरों में 500-600 मुस्लिम आबादी रहती है. सराय अलावर्दी के बीचोंबीच बसी इस छोटी आबादी के चारों ओर जाट और गुर्जर समुदाय के लोगों की रिहाइश है.
कुछ समय पहले गुड़गांव की एक कंस्ट्रक्शन कंपनी ‘मिलेनियम कंस्ट्रक्शन’ ने इस आबादी के आसपास एक रिहायशी अपार्टमेन्ट बनाने के लिए ज़मीन की खरीद-फ़रोख्त शुरू की. गांव की आबादी के स्थान पर पार्क बनाने की प्लानिंग थी. इसको लेकर गांव के बाशिंदों ने पंजाब व हरियाणा उच्च न्यायालय में मुकदमा दायर कर दिया जिस पर फैसला 10 सितम्बर को आने वाला है. इसके पहले फैसला आए, अचानक प्रशासन के साथ मिलकर मिलेनियम कंस्ट्रक्शन ने दो दिनों पहले इन घरों को गिराना शुरू कर दिया.
मामले से लम्बे वक़्त से जुड़े सलमान का कहना है, ‘दरअसल वे लोग जानते हैं कि फैसला उनके पक्ष में नहीं होगा. इसलिए उन्होंने ऊपर से लेकर नीचे तक सभी को पैसे खिलाए और 1000 पुलिस वालों के साथ धीरे-धीरे अपनी कार्रवाई को अंजाम देने लगे. हल्ला न हो, इसके लिए पहले दिन 5 घर गिराए गए, अगले दिन 35. धीरे-धीरे सारे घर गिरा दिए जाएंगे.’
मामले के भुक्तभोगी अकील अहमद कहते हैं, ‘हमारे सामने हमारे घरों पर बुल्डोज़र चला दिए गए. हममें से कई बस इतने खुशकिस्मत थे कि उन्होंने चेतावनी पर अपना सामान बाहर निकाल लिया था. जो नहीं निकाल पाए उनका सारा सामान भी मटियामेट हो गया.’ अकील बताते हैं, ‘हममें से कई लोगों के पास भूमि आवंटन से जुड़ी वक्फ़ बोर्ड की रसीद है लेकिन बुल्डोज़र के आगे रसीद कौन देखता है?’
शमशाद अहमद भी अपना आशियाना गंवा चुके हैं. शमशाद अहमद बताते हैं, ‘हम चाहकर भी विरोध नहीं कर सकते थे. हमारी संख्या 500 से भी कम थी और उनके पास हज़ार से अधिक तो पुलिसवाले थे. विरोध करते तो लाठियां पड़ने लगतीं, कोई क्यों विरोध करने जाएगा?’ शमशाद बताते हैं कि उन्होंने अपना सारा सामान खुले आसमान के नीचे रखा है. ‘कमिश्नर ने कहा कि सारा सामान सामुदायिक केंद्र में रख दीजिये, और वहां जाकर रहिये. सामुदायिक केंद्र भी अभी निर्माणाधीन है, वहाँ बिजली-पानी या कोई भी सुविधा नहीं है, कैसे चले जाएं?’
एक भुक्तभोगी ने नाम न प्रकाशित करने की शर्त पर जानकारी दी कि यह कंस्ट्रक्शन कंपनी भाजपा अध्यक्ष अमित शाह के किसी रिश्तेदार की है, वे संसद में भी सदस्य हैं. इस बात की तस्दीक़ करने के लिए जब हमने कंपनी के ऑफिस में फोन मिलाया तो दो बार फोन खराब होने का बहाना करके फोन काट दिया गया. बात होने पर हमने घटना से जुड़े सवाल किए, जिसे नकार दिया गया. फिर हमने पूछा कि बस इतना बता दीजिए कि कंपनी के मालिक का नाम क्या है, नंबर भले ही मत दीजिए? तो उधर से जवाब आया कि ऑफिस में पूछकर आपको बता देंगे. हमने कहा कि एक नाम बताने के लिए आपको पूछना पड़ेगा? तो उधर से आया जवाब रोचक था. जवाब मिला, ‘जिस एक नाम की आप जानकारी चाह रहे हैं, उस एक नाम के लिए तो पूछना ही पड़ेगा.’
हालांकि बात न हो सकी और नाम न मिल सका कि पत्रकारीय कर्म को सही दिशा देते हुए कार्य किया जाए. हरियाणा पुलिस ने भी पैसे खाने से इन्कार कर दिया. लेकिन फर्स्ट रिपोर्ट के हिसाब से थ्योरी डेवलप की जाए तो एक बड़े राजनीतिक नेक्सस का खेल मालूम होता है. ज़ाहिर है कि पीड़ितों की संख्या में अभी और इज़ाफा होगा लेकिन इस मुकरने और इनकार के बीच वे सारे लोग हैं, जो या तो खुले आसमानों के नीचे या तो किराए-रहम पर दो रातों से ज़िन्दगी काट रहे हैं.