बिहार के सीवान में पत्रकार की गोली मारकर हत्या

TwoCircles.net Staff Reporter

सीवान(बिहार): बिहार में दिनोंदिन घट रही आपराधिक घटनाओं ने राज्य के विपक्षी दलों को आलोचना का मुद्दा दे दिया है. ताजा मामला कुख्यात रहे सीवान का है, जहां शुक्रवार की रात अपराधियों ने दैनिक हिन्दुस्तान के सीवान ब्यूरो चीफ राजदेव रंजन की कार्यालय से वापस लौटने के दौरान गोली मारकर हत्या कर दी.


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घटना घटने के साथ ही बिहार में पत्रकार की हत्या पर बयानबाजियों का दौर शुरू हो गया है. विपक्षी दलों ने साफ़-साफ़ नीतिश-लालू के गठजोड़ पर आरोप लगाने शुरू कर दिए हैं.

सीवान के पुलिस अधीक्षक सौरभ कुमार साह से मिली जानकारी के अनुसार एक रेलवे पुल के पास राजदेव रंजन को दो गोलियां मारी गयीं. इसके चलते उनकी मौके पर ही मौत हो गई.

बिहार के सीवान में पत्रकार की गोली मारकर ह त्या

पुलिस अधीक्षक ने बताया, ‘हमलावर मोटरसाइकिल पर आए थे. उनकी संख्या अभी स्पष्ट नहीं है लेकिन हम ये मान कर चल रहे हैं कि हमलावर दो या तीन हो सकते हैं.’

मृतक पत्रकार राजदेव रंजन के परिजन अभी कोई भी बयान देने की स्थिति में नहीं थे. पुलिस की कार्रवाई भी परिजनों के बयान के बाद ही आगे बढ़ सकेगी. फिलहाल पुलिस हत्यारों की तलाश में जुटी है और राजदेव रंजन के सूत्रों की तलाश कर रही है, जिनसे हत्यारों तक पहुंचा जा सके.

घटना घटने के साथ ही भाजपा के राष्ट्रीय प्रवक्ता और बिहार के नेता शाहनवाज़ हुसैन ने ट्वीट किया, ‘राजदेव रंजन निर्भीक होकर लिखने वाले पत्रकार थे. बहुत दुख हुआ सुनकर कि उनकी हत्या कर दी गई.’

इसके बाद शाहनवाज़ हुसैन ने जो ट्वीट किए उनमें लिखा था, ‘यह जंगलराज नहीं, महाजंगलराज है.’

उन्होंने नीतिश कुमार के बनारस दौरे पर सवाल उठाते हुए आगे लिखा है, ‘सिवान के हिन्दुस्तान अखबार के ब्यूरो चीफ राजदेव रंजन की हत्या. नीतिश बनारस घूम रहे हैं और बिहार में लोकतंत्र का चौथा स्तंभ खतरे में है.’

देश में पत्रकारिता लोकतंत्र के चौथे स्तम्भ की तरह गिनी जाती है. लेकिन पत्रकारों और साथ-साथ लेखकों पर हो रहे हमले इस पूरी बनावट को ध्वस्त करते जा रहे हैं. पत्रकारो के हित और सुरक्षा में न तो कदम उठाए जा रहे हैं और न ही सुरक्षा के कानून बनाने के लिए आवाज़ उठाई जा रही है.

आज ही झारखंड के चतरा में भी एक पत्रकार की ह्त्या कर दी गयी है. इसके अलावा बस्तर में जिस तरह से पत्रकारों को गिरफ्तार किया जा रहा था, उसे भी लोकतंत्र में अभिव्यक्ति की आज़ादी पर हमले की तरह देखा गया.

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