कौन जिम्मेदार है समाजवादी पार्टी में कलह के लिए?

सिद्धांत मोहन, TwoCircles.net

वाराणसी/लखनऊ: उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव की नजदीकियां जैसे-जैसे बढती जा रही हैं, वैसे-वैसे समाजवादी पार्टी के मुखिया मुलायम सिंह यादव के कुनबे में मनमुटाव और गतिरोध भी बढ़ता जा रहा है. चूंकि अखिलेश यादव के परिवार में इतने ज्यादा मुखर नेत्तृत्व के ध्रुवों के होने के कारण सरकार और पार्टी के किसी भी निर्णय के बीच भयंकर दोफाड़ दिखाई दे रहा है. यदि पिछले दो महीनों के घटनाक्रम को देखें तो पता चलता है कि यादव परिवार में छवि बनाने वाले लोग हैं तो चुनावी समीकरण साधने के लिए छवि को कुछ नहीं समझने वाले लोग भी शामिल हैं.


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इस कड़ी में सबसे बड़ा नाम शिवपाल सिंह यादव का है, जो पार्टी मुखिया मुलायम सिंह यादव के भाई और सूबे के मुखिया अखिलेश यादव के चाचा हैं. यह नाम इसलिए भी प्रमुख है क्योंकि शिवपाल सिंह यादव का नाम एक बीच की कड़ी के रूप में देखा जाता है. शिवपाल पार्टी के सांगठनिक स्वरुप और पार्टी के प्रशासनिक स्वरुप में एक पुल का काम करते हैं. लेकिन ठीक-ठीक इन्हीं वजहों से शिवपाल सिंह यादव खुद के परिवार में विवाद की सबसे बड़ी वजह बने हुए हैं. बीते दिनों में जब बाहुबली माफिया मुख्तार अंसारी और अफजाल अंसारी की पार्टी कौमी एकता दल का सपा में एक असफल विलय हुआ था, तो इस डील को मूर्तरूप देने में शिवपाल सिंह यादव का नाम सामने आया था.

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कौमी एकता दल से हुए इस विलय के बाद अखिलेश यादव की बौखलाहट भी हर जगह ज़ाहिर हो गयी. अखिलेश यादव ने इस समझौते से खफा होकर अपने एक मंत्री को पार्टी और पदों से निष्कासित कर दिया. फिर मुलायम सिंह यादव के हस्तक्षेप के बाद से कौमी एकता दल का विलय ख़त्म हुआ और पार्टी में मंत्री जी की वापसी भी हुई.

जिस तरीके से शिवपाल सिंह यादव ने प्रदेश के मुख्यमंत्री को भरोसे में लिए बिना एक आपराधिक छवि वाले नेता के साथ विलय को अंजाम दिया था, और उसके ठीक बाद जिस तरह से मुलायम सिंह यादव के आदेश पर उनके समझौते को पलट दिया गया, इससे यह साफ़ ज़ाहिर हुआ कि कहीं न कहीं पार्टी और परिवार में फैसलों के आड़े आने वाले सबसे पहले आदमी शिवपाल सिंह यादव ही हैं.

मुलायम सिंह यादव की हाल के दिनों की राजनीतिक सक्रियता भी संदिग्धता के घेरे में है. एक तरफ उन्होंने समाजवादी महागठबंधन में शामिल होने के बाद अपने पैर वापिस खींच लिए और दूसरी तरफ बीते बिहार चुनावों के दौरान मोदी की प्रशंसा के पुल बांध दिए. ठीक इसी समय से बतौर पार्टी प्रमुख मुलायम सिंह यादव के क्रिया कलापों पर प्रश्न उठने लगे. उत्तर प्रदेश के राजनीतिक परिदृश्य में यह चर्चा आम हो गयी है कि यादव परिवार पर आय से अधिक संपत्ति का मामला चलने के बाद भारतीय जनता पार्टी मुलायम सिंह यादव का बतौर कठपुतली इस्तेमाल कर रही है.

भले ही सरकार में मुलायम सिंह की कोई बहुत पुख्ता पहुंच न हो लेकिन पार्टी में वे अभी भी ‘नेताजी’ हैं. प्रशासनिक फैसलों पर भले ही उनका कोई नियंत्रण न हो, लेकिन पार्टी के फैसलों पर है. मुलायम ने यूं ही नहीं इस स्वतंत्रता दिवस के दिन अपने भाषण में अखिलेश यादव की क्लास लगा दी थी.

दरअसल कुछ दिनों पहले शिवपाल सिंह यादव ने एक संबोधन में कहा था कि सरकार और पार्टी के कुछ लोग धीरे-धीरे पूरी पार्टी पर कब्ज़ा जमाना चाहते हैं. उन्होंने आगे कहा कि यदि ऐसा चलता रहा तो वे पार्टी से इस्तीफा दे देंगे. इसके बाद स्वतंत्रता दिवस के दिन मुलायम सिंह यादव ने मंच से ही अखिलेश यादव से कहा कि वे माफी मांगकर शिवपाल सिंह यादव को इस्तीफा देने से रोकें. जब मुलायम सिंह यादव को किसी ने ध्यान दिलाया कि यहां मीडिया भी मौजूद है, तो मुलायम सिंह यादव आगबबूला हो गए और कहा कि मीडिया को सुनने दो.

मुलायम सिंह यादव के इस तेवर के बाद से यह तय हो गया कि वे अपने भाई के भविष्य और पार्टी में उनके कद को लेकर खासे चिंतित हैं. उन्हें बगल में बैठकर सुनते अखिलेश यादव उस दौरान न कुछ कह पाए न कुछ ज़ाहिर कर पाए. मुलायम सिंह यादव को बस यह तेवर ही दिखाना था कि अब कौमी एकता दल के सपा में विलय की सुगबुगाहट फिर से तेज़ हो गयी है. इस बार का विलय और पुख्ता माना जा रहा है क्योंकि इस बार फैसले में से अखिलेश यादव को लगभग बाहर रखा गया है.

इस पूरे विवाद के आखिरी छोर पर अखिलेश यादव मौजूद हैं, जो अपनी सरकार की छवि को लेकर खासे चिंतित हैं. समाजवादी विचारक नरेंद्र नीरव इस बारे में कहते हैं, ‘अखिलेश यादव यंग हैं. उनका एक ख़ास तरह की साफ़-सुथरी छवि में यकीन है. लेकिन पार्टी में जो अभी की परिस्थितियां हैं, उन्हें देखकर ऐसा लग रहा है कि अखिलेश यादव सरकार की छवि को लाख कोशिशों के बावजूद साफ़ नहीं रख पा रहे हैं.’

नरेंद्र नीरव आगे कहते हैं, ‘इसमें सबसे बड़ी बाधा उनकी पार्टी की पारिवारिक संरचना है. यहां एक किस्म के पूरक मूल्य है. जैसे अखिलेश यादव उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री तो हैं, लेकिन अपने परिवार की राजनीतिक दावेदारी में उम्र में सबसे छोटे हैं. और सपा का स्वरुप यह है कि वह एक परिवार से ही चलने वाली पार्टी रह गयी है.’

अखिलेश यादव के साथ यह सच भी है. वे मुख्यमंत्री तो हैं, लेकिन वे दूसरी तरफ सरकार के साथ-साथ पार्टी की छवि पर भी कोई समझौता करने को नहीं तैयार हैं. वहीँ इस बारे में सबसे बड़ा सच तो यही है कि पार्टी उनके नियंत्रण से बाहर है, सरकार भले ही उनकी हो.

कुल मिलाकर तथ्यों से यही पता चलता है कि समाजवादी पार्टी के फैसलों में जहां भी सरकार और संगठन के तबकों में संघर्ष हुआ है, वहां कहीं न कहीं शिवपाल सिंह यादव बीच में हमेशा मौजूद रहे हैं. शिवपाल सिंह यादव ने फिलहाल अंसारी बंधों का विलय सुनिश्चित करवा लिया है, लेकिन मौजूदा हालात बताते हैं कि पार्टी को लेकर उनके हर निर्णय में मुलायम के पार्टी वाले स्वरुप और अखिलेश के सरकारी स्वरुप में गतिरोध जारी रहेगा.

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