कैराना उपचुनाव जीत के बाद भाजपा के अधिकांश नेता जाट बहुल गांवों में प्रवेश की हिम्मत खो चुके है, गैर जाट भाजपाई नेता तो सामाजिक आयोजन में भी दिखाई नही देते,हालात यह है कि कवाल गांव में मारे गए गौरव के पिता रविंद्र अब लगातार मीडिया के सामने आकर अपने बेटे की हत्या पर की गई राजनीति से भाजपा से नाराज़ है. भाजपाई नेता अगर उतार-चढ़ाव की बात करते है तो जाट नाराज़ हो जाते है.जाट नोजवानों का पूरा झुकाव जयंत चौधरी की और हो चुका है.जाट मानता है कि दंगे ने उनकी सियासी और सामाजिक ज़मीन दरकाने का काम किया.
हाल फिलहाल की कहानी यह है पिछले महीने कांवड़ यात्रा के दौरान एक मुस्लिम संस्था द्वारा लगाएं गए कैम्प में भारतीय किसान यूनियन के राष्ट्रीय अध्यक्ष नरेश टिकैत ने शिरकत की और जमीयत उलेमा हिन्द के लोगों से गले मिले.यह वही नरेश टिकैत है जिन्होंने पांच साल पहले 7 सितंबर को हुई निर्णायक पंचायत का आयोजन किया था.
दंगे के एक साल बाद हुई परिस्थितियों के बाद अब हालात बिल्कुल बदल गए हैं,पहले साल दूरियां चरम पर पहुंच गई थी, उसके बाद वो कम होने लगी अब भाजपा के खिलाफ नाराजगी में बदल गई है.कवाल में मारे गए गौरव के पिता रविन्द्र(56)कहते है”जो कुछ भी हुआ ठीक नही था मेरा एक बेटा इससे पहले एक्सीडेंट में मर गया था दूसरा बाद में मार दिया गया,एक पिता होने के नाते इससे बुरा मेरे साथ कुछ और नही हो सकता था,मेरे बेटे की मौत पर सियासत हुई,खासतौर पर भाजपा के लोगो ने मेरे बेटे की मौत पर राजनीतिक रोटियां सेंकी”.
मुसलमानो में भी कमोबेश इसी तरह की स्थिति है,जाटों के साथ उनका दशकों का साथ है ‘डोल-डोल’ की यारी है,स्थानीय ज्यादातर मुस्लिम नेता जाटों की पार्टी से ही सदन में पहुंचे इनमे क़ादिर राणा, अमीर आलम,मुश्ताक़ चौधरी,राव वारिस,कोकब हमीद और मन्नवर हसन जैसे नाम है,यह सभी जाटों के दल से सदन में रह चुके है.हाल ही तब्बसुम हसन की रालोद प्रत्याशी की तौर पर जीत में भी जाटों ने ईमानदारी से प्रयास किया.पश्चिम उत्तर प्रदेश में जाट मुस्लिम एकता का डंका बजता रहा है यही कारण है कि एक समय मुजफ्फरनगर की सभी 9 विधानसभा पर एक समय मे (अब 6) सीटों पर रालोद के विधायक रह चुके हैं.जाट मुस्लिम एकता की राजनीति पूर्व प्रधानमंत्री और किसानों के मसीहा कहलाने वाले चौधरी चरण सिंह का पसंदीदा अमल रहा है.रालोद के सहारनपुर के जिलाध्यक्ष राव कैसर एडवोकेट कहते हैं”इसी एकता को तोड़ने के लिए पश्चिम उत्तर प्रदेश में दंगे की साज़िश की गई थी जिसका एक बार लाभ मिल गया अब जाट और मुस्लिम दोनों खुद को ठगा हुआ महसूस कर रहे हैं,जाटों को पूरा अहसास है कि उनके भोलेपन और भावुकता का बेहद गलत इस्तेमाल हुआ,साथ ही मुसलमानो को भी ऐसा लगता है कि जाटों के साथ के बिना उनकी ताक़त कम हो गई.”
जाटों और मुसलमानो के बीच इस कड़वाहट को दूर करने में चौधरी अजीत सिंह का बड़ा योगदान है,अपनी सियासी ज़मीन दरकती देख उन्होंने जाटों को मुसलमानो के क़रीब लाने के अपनी पूरी ताकत झोंक दी और दंगा प्रभावित मुजफ्फरनगर और शामली में लगातार दौरे और कैम्प किये, फिलहाल भी रालोद सुप्रीमो अजित सिंह मुजफ्फरनगर में इसी सप्ताह दो दिन कैम्प कर लौटे है.रालोद के प्रवक्ता अभिषेक चौधरी कहते है”चौधरी साहब ने जाटों और मुस्लिमो को करीब लाने में बेहद गंभीरता दिखाई है वो दंगा पीड़ितों से उनके घर-घर जाकर मिले है,उन्होंने खाप पंचायतों में शिरकत की है वो किसानों के ‘एका तोड़ने’के शरमायेदारो के षंड्यंत्र को दोनों समुदाय को समझाने में कामयाब हुए हैं अब दोनों समुदाय क़रीब आ रहे है कैराना की जीत ने भी एक बड़ा काम किया है.
चौधरी अजित सिंह पिछले 2 साल से लगातार मुजफ्फरनगर में दंगा पीड़ितों और खाप चौधरियों से मुलाक़ात कर रहे हैं और उनसे एक हो जाने की अपील कर रहे थे,शामली के जितेंद्र हुड्डा के अनुसार 80 साल की आयु वाला एक नेता जिसकी जिंदगी में आरामतलबी ज्यादा रही है इंसानियत को जिंदा रखने के लिए घर-घर गया,उसने आलोचनायें सुनी,उसका घर छीन लिया गया मगर वो जाट मुस्लिम एकता के लिए अड़िग रहा तो जनता पर असर होना ही था”.
स्थानीय राजनीति के जानकार लोग मानते है इस क़वायद की वजह सियासी भी रही 2014 में मुजफ्फरनगर दंगे के बाद पश्चिमी उत्तर प्रदेश का इतिहास बदल गया,रालोद के प्रभुत्व वाले क्षेत्र में भाजपा का वर्चस्व हो गया.जाटों की एक और बड़ी ताकत भारतीय किसान यूनियन में तीन फाड़ हो गई, मुसलमानो और ठाकुरों ने अपना अलग संगठन बना लिया.सरकार को पंजे में रखने की आदत वाले किसान हाशिये पर आ गए.गांव-गांव पंचायत चुनाव में जाट प्रत्याशी चुनाव हारने लगे.भारतीय किसान मजदूर संगठन के राष्ट्रीय अध्यक्ष ग़ुलाम मोहम्मद जौला कभी भाकियू के संस्थापक बड़े किसान नेता चौधरी महेंद्र सिंह टिकैत के बगलगीर थे,यूनियन के मंचो से हर हर महादेव और अल्लाह हो अकबर के नारे एक साथ लगते थे. हालात इतने खराब हो गए कि यूनियन की राजधानी सिसौली में एक पंचायत के दौरान जब एक जाट नेता ने जाट मुस्लिम एकता की बात की तो उसके हाथ से माइक छीन लिया और बेहद अपमानित तऱीके से मंच से उतार दिया गया.
भारतीय किसान मजदूर मंच के राष्ट्रीय अध्यक्ष ग़ुलाम मोहम्मद जौला कहते हैं”यही वजह थी कि हमें अपना रास्ता बदलना पड़ा वो बुरा वक़्त था अब सबकी गलतफहमियां दूर हो गई है, दंगे में सभी जाट लोग शामिल नही थे बहुत सारे जाटों ने मुसलमानो की जान भी बचाई थी.”
कैराना उपचुनाव में तबस्सुम हसन की जीत के बाद सबसे सकारात्मक बदलाव आया,पिछले सप्ताह जब चौधरी अजित सिंह दंगो की पांचवीं बरसी पर मुजफ्फरनगर पहुंचे तो मुसलमानो के एक प्रतिनिधिमंडल ने उनसे मुलाक़ात की इसमें तमाम बड़े मुस्लिम चेहरे थे,इन्होंने चौधरी साहब से मुजफ्फरनगर से चुनाव लड़ने का आग्रह किया,प्रतिनिधिमंडल में शामिल आसिफ राही के मुताबिक हमने उनसे कहा हम उन्हें रिटर्न गिफ्ट देना चाहते है,जिस तरह जाटों ने कैराना में तब्बसुम हसन को चुनाव जिताया इसी तरह यहां मुसलमान आपको चुनाव जिताने का ख्वाईशमंद है.
अजित सिंह पिछले 2 साल से लगातार जद्दोजहद में जुटे थे मगर बात नहीं बन रही थी इसकी वजह जाटों के नोजवानों में भाजपा के प्रति झुकाव थी.इस झुकाव का रुख जयंत चौधरी ने पलट दिया.देसी अंदाज और अपने दादा जैसे दिखने वाले जयंत दो टूक बात करते थे कांधला में एक सभा मे उन्होंने खुलेआम कहा “नोजवानों मोदी -मोदी मत करने लगना तुम्हारा अस्तित्व खतरे में है”.जयंत के ही नारे यहाँ “जिन्ना नही गन्ना चलेगा” यहां की तस्वीर बदल दी.
रालोद में वापसी करने वाले पूर्व सांसद अमीर आलम के मुताबिक कैराना की इस जीत ने दोनों समुदाय के बीच की खाई को पाट दी और पुल का काम किया.
अब एक बार फिर जाट और मुस्लिम साथ साथ दिखाई देते हैं.दंगों के मुकदमों में दोनों पक्षों में समझौते की कवायद चल रही है.फ़िज़ा फिर बदल गई है.जाट और मुसलमान सिर्फ सियासी नही बल्कि मिलजुलकर कारोबार भी कर
रहे हैं, चौधरी अजीत सिंह ने जाटों से मुस्लिमो के त्यौहार शादी जैसे आयोजनों में शिरकत करने की अपील की थी जिसका असर हुआ है,ईद-दिवाली और शादी-ब्याह,ख़ुशी-ग़मी जैसे अवसरों पर दोनों फिर साथ-साथ दिखाई देते हैं.