आकिल हुसैन। Twocircles.net
हरियाणा सरकार ने फरीदाबाद में सरकारी अस्पताल बादशाह खान के नाम से पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेई के नाम पर किये जाने का फैसला किया है।
हरियाणा के फरीदाबाद स्थित सात दशक पुराने सरकारी अस्पताल जिसका नाम बादशाह खान के नाम पर था। 200 बिस्तर की क्षमता वाले इस अस्पताल को बीके अस्पताल कहा जाता था। हरियाणा के स्वास्थ्य महानिदेशक की तरफ़ से 3 दिसंबर 2020 को जारी एक अधिसूचना में सरकार ने बादशाह खान अस्पताल का नाम बदलकर पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेई के नाम पर रख दिया। नाम बदलने का प्रचलन उत्तर प्रदेश से शुरू होकर हरियाणा पहुंच गया हैं, विशेषकर उर्दू नाम वाले चीजों का नाम बदला जा रहा है फिर चाहे उत्तर प्रदेश में मुगलसराय हो या हरियाणा में बादशाह खान। यह कहीं न कहीं भाजपा सरकारों की सांप्रदायिक सोच को जाहिर करता हैं।
बादशाह ख़ान अस्पताल का अपना इतिहास है। 1947 में देश के विभाजन के समय फ़रीदाबाद में बड़ी संख्या में पाकिस्तान से शरणार्थी आए, तब प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने उनके लिए अस्पताल बनवायाा और 5 जून 1951 को उसका उद्धाटन किया। महात्मा गांधी के दोस्त और महान स्वतंत्रता सेनानी ख़ान अब्दुल गफ़्फ़ार ख़ान के नाम पर इस अस्पताल का नाम रखा गया था। खान अब्दुल गफ्फार खान स्वतंत्रता सेनानी रहे थे और उन्होंने महात्मा गांधी के साथ स्वतंत्रता आंदोलन में अपनी अहम भूमिका निभाई थी। अंग्रेज़ी हुक़ूमत के अत्याचार भी उन्हें कमज़ोर नहीं कर पाए। उन्हें सीमान्त गांधी या फ्रंटियर गांधी के नाम से भी जाना जाता है, ने भारत के बँटवारे का पुरजोर विरोध किया था। वे हिन्दू-मुस्लिम भाईचारे के बड़े प्रतीक थे।1987 में उन्हें भारत रत्न से नवाज़ गया था।
ब्रिटिश गुलामी के खिलाफ लड़ने वाले बादशाह खान महात्मा गांधी के हम सफर थे। पूरा जीवन अपने साथ एक पोटली में बंधे सामानों पर आश्रित रहा था। बादशाह खां उस दौर के राष्ट्रवादी थे,जिस समय आरएसएस के लोग आजादी की लड़ाई में शामिल होने से बचते थे। उस दौर के हिसाब से बादशाह खान राष्ट्रवादी थे परंतु आज हरियाणा की खट्टर सरकार की नाम बदलने की मंशा के अनुसार आज के दौर के राष्ट्रवादियों में बादशाह खान शामिल नहीं हैं। आखिर भाजपा सरकारों के अनुसार राष्ट्रवाद का पैमाना क्या हैं।एक मुसलमान स्वतंत्रता सेनानी के नाम से अस्पताल का नाम बदलना यहीं कहता हैं कि सरकार की नजरों में मुसलमान अब राष्ट्रवादी रहा नहीं। सरकार ने नाम बदलकर यह जाहिर कर दिया कि बादशाह खान मुसलमान थे, इसलिए नाम बदल दिया। यह भाजपा की संप्रदायिक संकीर्ण मानसिकता के चलते किया गया है जो जग जाहिर है। आखिर क्यों चुन चुन कर मुस्लिम विरासतों का नाम बदला जा रहा है।
देश में मुस्लिम विरासतों का लगातार नाम बदला जा रहा है। इसके द्वारा इतिहास में रहे मुसलमानों के प्रभाव और महत्व को कम करने की कोशिश है। फिर चाहे उत्तर प्रदेश की योगी सरकार द्वारा ‘इलाहाबाद’ से ‘प्रयागराज’, ‘मुगलसराय’ से ‘पंडित दीनदयाल उपाध्याय’, ‘फैजाबाद’ से ‘अयोध्या’ का नामकरण हो या हरियाणा में खट्टर सरकार द्वारा बादशाह खान अस्पताल का नाम अटल बिहारी वाजपेई के नाम पर बदलना हो। अटल बिहारी वाजपेई के नाम से दिक्कत नहीं हैं। दिक्कत है तो इस बात से होनी चाहिए कि एक स्वतंत्रता सेनानी जिसने अंग्रेज़ी हुकूमत से लोहा लिया, गांधी के साथ मिलकर स्वतंत्रता आंदोलन में अहम भूमिका निभाई,जिसने बंटवारे का विरोध भी किया उस बादशाह खान का नाम मिटाया गया। अगर अटल बिहारी वाजपेई के नाम पर रखना था तो एक अलग अस्पताल बनाकर अटल बिहारी वाजपेई के नाम पर रख दिया जाता किंतु एक मुसलमान स्वतंत्रता सेनानी के नाम को हटाया गया। सवाल उठता हैं क्या अटल बिहारी वाजपेई के राष्ट्रवाद के आगे बादशाह खान का राष्ट्रवाद कमजोर पड़ गया।
ऐसा प्रतीत होता हैं भाजपा शासित राज्यों में नाम बदलने को ही विकास की अवधारणा दी जाती हो। आखिर क्यों भाजपा को उर्दू नाम से दिक्कत हैं,कि हर उर्दू नाम वाली जगह का नाम बदला जा रहा है। आखिर क्यों सीमांत गांधी बादशाह खान का नाम क्यों मिटाया जा रहा है! आखिर क्यों मुस्लिम विरासतों को मिटाने की कोशिश करी जा रही है।
खुदाई खिदमतगार सीमांत गांधी खान अब्दुल गफ्फार खान का संगठन हैं जिसने आजादी की लड़ाई में हिस्सा लिया था। खुदाई खिदमतगार समाजिक संगठन के प्रवक्ता पवन यादव ने TwoCircles.Net से बात करते हुए कहा कि,’यह जो नाम परिवर्तन किया गया है, यह अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण है। बादशाह खान, हिंदुस्तान की आज़ादी की लड़ाई के शीर्ष नेताओं में शुमार थे। स्वयं बापू उनका बहुत सम्मान करते थे और सभी उन्हें प्यार से “सीमांत गांधी” कहते थे। बादशाह खान से जुड़ी हज़ारों स्मृतियाँ अपने मुल्क में मौजूद हैं। भारत सरकार ने उन्हें “भारत रत्न” की उपाधि दी थी इसलिए उनके नाम पर बने अस्पताल का नाम बदलना कहीं से भी उचित नहीं कहा जा सकता। भारत के मौजूदा प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी स्वयं बादशाह खान का बहुत सम्मान करते हैं, कुछ रोज पहले अहमदाबाद में एक कार्यक्रम में उन्होंने बताया था कि जब खान साहब भारत आए थे तो मोदी जी ने उनके पैर छूकर उनका आशीर्वाद लिया था। दूसरी ओर अटल जी स्वयं विद्वान प्रधानमंत्री रहे। हम सभी उनका बहुत सम्मान करते हैं, वह भी “भारत रत्न” हैं। हमें यक़ीन है अटल जी स्वयं ऐसी कोशिशों को गलत ठहराते’। खुदाई खिदमतगार संगठन ने हरियाणा सरकार से इस मामले में पुनर्विचार की भी मांग करी हैं।