नरकंकालों पर खड़ा होता कनहर बांध – 2

By सिद्धान्त मोहन, TwoCircles.net,

दो सालों बाद होने वाले चुनावों के लिए बांध को रिपोर्ट कार्ड में शामिल करने के लिए समाजवादी पार्टी क्या नीति अपना रही है और दुद्धी, सोनभद्र के अस्पतालों में घायलों का आंखों-देखा हाल…


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[इस सीरीज़ की पिछली कहानियां – अकथ कहानी कनहर की और नरकंकालों पर खड़ा होता कनहर बांध – 1]

सोनभद्र: धरने के वक्त लोगों से हुई बातचीत में यह बात सामने आई थी कि वे दिहाड़ी मजदूर की तरह नहीं काम करना चाहते हैं. 1976 में इस परियोजना के उद्घाटित होने के दौरान ही एन.डी. तिवारी ने कहा था कि यहां के सभी विस्थापितों को सरकारी नौकरी दी जाएगी, आदिवासी नौकरी चाहते हैं इसलिए वे बांध पर मजदूरी नहीं कर रहे. मौजूदा तथ्य के उलट डीएम संजय कुमार कहते हैं कि बांध के निर्माण में स्किल्ड वर्कर बाहर से आते हैं, लेकिन निर्माण कार्य में लगा हुआ हरेक नॉन-स्किल्ड सुन्दरी और भीसुर गाँव का है. एसपी शिवशंकर यादव कहते हैं, ‘इस गाँव के मजदूर चाहे चार घण्टे काम करें, छः घण्टे करें या पूरा दिन….उन्हें हम हर हाल में 180 रूपए प्रतिदिन का मेहनताना देते हैं.’ हमने एक-दो बार पूछा कि क्या आप सच में 180 रूपए प्रतिदिन मेहनताना देते हैं? तो उन्होंने कहा कि हां. यहां यह बात जानने की है कि उत्तर प्रदेश में नॉन-स्किल्ड वर्कर के लिए प्रतिदिन का न्यूनतम मेहनताना 200 रूपए है. ऐसे में यहां दो बातें साफ़ हो जाती हैं, एक, गांव के बाशिंदों के बांध-निर्माण में संलिप्त होने की खबर संदिग्ध है क्योंकि गांव के लोग लाठियां खा रहे हैं और खुद इस बात से नकार रहे हैं; और दो, बांध निर्माण के लिए मजदूरों को दिया जाने वाला मेहनताना आधिकारिक न्यूनतम दर से भी कम है.


Police at project site
बांध निर्माण स्थल पर लगी पुलिस

14 अप्रैल के इस घटनाक्रम के बाद बांध निर्माण स्थल पर पुलिस-पीएसी की संख्या बढ़ा दी गयी. आदिवासियों का प्रदर्शन भी जारी रहा, जो अहिंसक था. 18 अप्रैल की सुबह पांच-छः बजे के बीच पुलिस ने वहां मौजूद लोगों पर लाठीचार्ज कर दिया. यहां यह बात ध्यान देने की है कि बिना किसी पूर्व चेतावनी और आदेश के यह लाठीचार्ज दुद्धी जिले के एसडीएम के आदेश पर किया गया. इस लाठीचार्ज में जब 18-19 आदिवासी घायल हो गए तो बाढ़ के डूब क्षेत्र में मौजूद आसपास के गाँवों जैसे भीसुर और कोरची के ग्रामीण भारी संख्या में घटनास्थल पर जमा होने लगे. इसे देखते हुए पुलिस ने आंसू गैस के गोले दागे और 500 राउंड रबड़ की गोलियां चलायीं. पुलिसिया अत्याचार का प्रताप इतना था कि जिस जगह पर डेढ़ हज़ार से भी अधिक आदिवासी प्रदर्शन कर रहे थे, वहां आधे घण्टे बाद रबड़ की गोलियां, टूटी चप्पलें, टूटी हुई लाठियां और कपड़े पड़े हुए थे. आदिवासियों को पीटने के बाद पुलिस ने उलटा 30 आदिवासियों के खिलाफ़ नामजद और 400 से भी ज़्यादा अज्ञात लोगों के खिलाफ़ केस दर्ज करा दिया.

हम 19 अप्रैल की शाम सुन्दरी गाँव से सटे गाँव भीसुर पहुंचे. अँधेरा हो चुका था और चारों ओर वह पूरी हरियाली, पहाड़ और घना जंगल मौजूद थे, जो 2016 में बांध के पूरा होने के बाद पानी के नीचे होंगे. यहां आदिवासियों से बातचीत में पता चला कि पुलिस वालों ने लोगों को दौड़ा-दौड़ाकर पहाड़ियों के पीछे धकेल दिया. आदिवासी बताते हैं, ‘सिंचाई की सारी मशीनों को कुओं में फेंक दिया गया. पुलिस और पीएसी के सिपाही घरों से बकरियां और मुर्गे पकड़-पकड़कर ले गए और उन्हें पका-खा लिया. गाँव के कई कच्चे घर तोड़े गए हैं. लोगों को बेतरह पीटा गया है. आदिवासी महिलाओं के साथ अश्लील हरक़तें की गयी हैं. सारी कार्रवाई में एक महिला कॉन्स्टेबल तक मौजूद नहीं थी.’ वे आगे बताते हैं कि कुछ लोगों ने आपत्ति भी की कि महिलाओं और बच्चों को छोड़ दें, लेकिन लाठियां बरपा रही पुलिस किसी की भी सुनने को तैयार नहीं थी. पुलिस दिन में एक-दो बार आ-आकर पूछताछ करती है. सुन्दरी गाँव को दुद्धी से जोड़ती मुख्य सड़क पर पुलिस का कड़ा पहरा है. आलम यह है कि न तो कोई गाँव से बाहर जा सकता है और न भीतर. 19 अप्रैल को राजकुमारी नाम की आदिवासी महिला अपने बच्चे के साथ बाहर निकली तो पुलिस ने उसे बच्चे के साथ गिरफ्तार कर लिया. इसका कारण पूछने पर एसपी शिवशंकर यादव कहते हैं कि राजकुमारी गाँव की शान्ति भंग कर रही थी. कई ग्रामीणों को अपने रिश्तेदारों की कोई खोजखबर नहीं है. उन्हें डर है कि या तो उन्हें मार दिया गया है या जेल में बंद कर दिया गया है.

पुलिसिया बर्बरता से अलग बात करें तब भी इन महुआ बीनने, तेंदूपत्ता और लकड़ी बटोरने और किसानी करने वाले आदिवासियों को बांध निर्माण से सबसे बड़ी समस्या सही मुआवज़े और ज़मीन की है. उनका कहना साफ़ है कि हम और हमारी पीढ़ियाँ बांध निर्माण के बाद भी यदि ठीक से खाती-कमाती रहें तो क्या दिक्कत है? लेकिन नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) के स्टे ऑर्डर के बावजूद हो रहे बांध निर्माण में प्रशासन और प्रदेश सरकार की भूमिका को देखते हुए भविष्य और काला होता जाता है.

लाठीचार्ज के बाद पुलिस ने 19 घायल लोगों में से 15 को दुद्धी के सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र में भर्ती करा दिया. बाक़ी के बारे में पुलिस का कहना है कि वे किसी और अस्पताल में भर्ती कराए गए हैं. सामुदायिक केन्द्र में की गयी भर्ती को देखकर अंदेशा होने लगता है कि पुलिस कोई ज़रूरी बात छिपा रही है. सभी घायलों को उनके परिजनों से नहीं मिलने दिया जा रहा है. सामुदायिक केन्द्र के दरवाज़े पर पुलिस का कड़ा पहरा है. न किसी मीडियाकर्मी को घुसने की इजाज़त है और न ही किसी आम आदमी को. हम लोगों से कहा गया कि इस समय यहां धारा 144A लागू है, इसलिए आप भीतर नहीं जा सकते हैं. किसी भांति हम सीएचसी के भीतर घुस पाने में सफल हुए. अन्दर भर्ती गांव वालों की हालत देखकर आपका समाज की ऐसी सचाई से सामना होता है, जो हर हाल में अकल्पनीय है. पुलिस भी साथ-साथ अंदर घुसती है.


Hajimuddin
अजीबुद्दीन, जो हमें देखते ही फूट-फूटकर रोने लगे


Yogi with wounds in shoulder
योगी के कन्धों पर पुलिस लाठीचार्ज के निशान साफ़ देखे जा सकते हैं


Moin with head injuries
मोईन के सिर पर चोट आई है. मोईन के घाव को ध्यान से देखने पर अस्पताल में सफ़ाई की असलियत पता चल जाती है


Faujdar
सिर की चोट से जूझ रहे फौजदार, जिनके लड़के की पांच दिनों बाद शादी है

पुलिसवालों को हमारे साथ मौजूद देखकर घायल आदिवासी कुछ भी बोलने से बचते हैं. हम उन्हें भरोसा दिलाते हैं कि किसी से डरने की ज़रूरत नहीं है और खुलकर अपनी बात रखने का यही मौक़ा है, इसका लाभ उठाइये. भीसुर गाँव के 55 साल के उदय का 18 अप्रैल को हुए पुलिस लाठीचार्ज में दाहिना हाथ टूट चुका है और कूल्हे पर भी चोट के निशान मौजूद हैं. सुन्दरी गाँव के 65 वर्षीय अजीबुद्दीन हमें देखते ही फूट-फूटकर रोने लगते हैं. अजीबुद्दीन के सिर पर चोट के निशान हैं. उनके बाएँ हाथ की कुहनी खून से लथपथ है. उनके कूल्हे डंडों की चोट से नीले पड़ गए हैं. वे बताते हैं कि उन्हें दर्द इतना है कि वे पीठ के घाव नहीं दिखा सकते हैं. सुन्दरी गाँव के ही मोहम्मद जहूर बताते हैं कि लाठीचार्ज और आंसू गैस के गोले एक साथ छोड़े गए. कोई पहले या बाद में नहीं हुआ. सत्तर वर्षीय जहूर का सिर फूट चुका है और कूल्हों पर चोट के निशान हैं. जहूर रोते हुए बताते हैं कि एक बार डंडा खाकर ज़मीन पर गिर गए तो कितने पुलिस वालों ने मिलकर मारा, इसकी कोई याद नहीं है. सुन्दरी गाँव में रहने वाले 65 साल के योगी का सिर डंडे की चोट से फूट चुका है. वे भी कहते हैं कि हम चोट खाकर गिर गए, फ़िर भी पुलिस वाले हमें पीटते रहे. सुन्दरी गांव के रहने वाले फौजदार का भी सिर फूट चुका है. फौजदार बताते हैं कि दो दिनों बाद उनके बेटे का तिलक चढ़ना है और हफ़्ते भर बाद उनके बेटे की शादी है. वे कह रहे हैं कि पुलिस वाले निकलने ही नहीं दे रहे हैं, शादी का काम कैसे होगा? सुन्दरी गाँव के मोईन का भी सिर फूट चुका है और इनके भी कूल्हों पर चोट के निशान हैं. महिलाओं के वार्ड में भर्ती औरतें कहती हैं कि इनके कूल्हों में डंडे घुसाए गए और उसी जगह पर पुलिस ने डंडों से पीटा भी. हमने डंडे से सिर पर और महिलाओं के कूल्हों पर लगी चोटों के बारे में एसपी शिवशंकर यादव से पूछा कि ये बर्ताव तो मानवाधिकार का उल्लंघन है और सिर पर डंडे मारने पर सीधे-सीधे पुलिस के खिलाफ़ धारा 307 का मुकदमा दर्ज होता है. तो शिवशंकर यादव ने कहा, ‘ऐसा नहीं है कि सिपाहियों ने ऐसा जान-बूझकर किया होगा. हो गया होगा.’ हमने पूछा कि जिन चार लोगों को सिर पर चोट आई है, क्या उन सभी के साथ ऐसा हुआ होगा? इस पर एसपी शिवशंकर यादव ने कहा, ‘अब क्या कहें? हो जाता है.’


Zahur with head injury and stains
ज़हूर, जिनकी कमीज़ और चादर पर खून के धब्बे साफ़ देखे जा सकते हैं


Wounds on women
महिलाओं पर प्रशासनिक बर्बरता के साक्ष्य, जो दिखाते हैं कि पुलिस ने अंधाधुंध लाठीचार्ज किया है

अपने-अपने बयानों के अलावा ये सभी लोग एक आम बात का ज़िक्र करते हैं, और वह ये कि इन्हें इनके किसी भी परिजन से मिलने नहीं दिया जा रहा है. घायल आदिवासियों के हाथों में चोट है, उन्हें दवाई और मरहम दिया गया है. वे कहते हैं कि परिवार के व्यक्ति के न होने से वे घावों पर मरहम भी नहीं लगा पा रहे हैं. इन्हें खाना दिया जाने का कोई निश्चित नियम नहीं है. कभी दिन में एक बार तो कभी दो बार खाना दिया जाता है, जो इनकी खुराक से बेहद कम होता है. हमारी मौजूदगी में सुबह साढ़े नौ बजे तक इन्होंने नाश्ता तक नहीं किया था. 18 अप्रैल को भर्ती होने के बाद से न इनके बिस्तरों की चादर बदली गयी है, न इनके कपड़े ही. कपड़ों और चादरों पर खून के दाग मौजूद हैं, जो तस्वीरों में साफ़ देखे जा सकते हैं. अस्पताल में जिस समय हम पहुंचे उस समय न कोई पंखा चल रहा था, न ही कोई ट्यूबलाईट जल रही थी. घायलों के घावों पर मक्खियाँ भिनभिना रही थीं. वे पसीने से लथपथ थे. इस बाबत पूछने पर चीफ सुपरिटेंडेंट डा. यू.पी. पाण्डेय ने कहा कि लाईट नहीं है. हमने कहा कि बिजली न रहने पर जेनरेटर और उसके तेल का खर्च अलग से मिलता है, डा. पाण्डेय कोई जवाब न दे सके. इसके बाद किसी अज्ञात व्यक्ति ने हमारे सामने ही जाकर अस्पताल का मेन स्विच ऑन किया तो वार्डों मंद लाईट आ गयी. हमने पूछा कि घायलों के कपड़े और उनके बिस्तरों की चादर तक नहीं बदली गयी है, इस पर चीफ सुपरिटेंडेंट डा. पाण्डेय ने कहा कि तीन दिन पर चादर बदली जाती है, आज बदली जाएगी. हमने पूछा कि क्या खून से लिपटी चादर भी तीन दिनों पर बदली जाती है, इस पर भी डा. पाण्डेय कोई जवाब नहीं दे सके. घायल महिला आदिवासियों ने कहा कि उन्हें पीने का पानी नहीं मिल रहा है, उन्हें मजबूरन अस्पताल के शौचालय का पानी पीना पड़ रहा है. इसके बाबत जब हमने डा. पाण्डेय से पूछा तो वे एकदम से भड़क गए और कहने लगे, ‘शौचालय नहीं, बाथरूम का पानी है. हम लोग भी पीते हैं, वह एकदम साफ़ है. कहिए तो आपके सामने पीकर दिखाऊं.’ यह बात काफी समय से चली आ रही है कि पूरे सोनभद्र में पानी बेहद ज़हरीला हो चुका है, इसमें विषैले तत्वों और केमिकलों की मात्र बेहद ज़्यादा है. ऐसे में लोग या तो टैंकरों या खनिज जल का प्रयोग करते हैं.


U.P. Pandey
चीफ सुपरिटेंडेंट डॉ. यू.पी. पाण्डेय

अब तक बांध निर्माण के समर्थक 100 से ऊपर के संख्या में सीएचसी के दरवाज़े पर पहुंच गए. वे ‘विकास-विरोधी वापस जाओ’, ‘एनजीओ-कर्मी वापिस जाओ’, ‘मारो जूता तान के’ और साथ-साथ ‘भारत-माता की जय’ के नारे लगा रहे थे. रोचक बात यह नहीं कि वे प्रदर्शन कर रहे थे, रोचक बात यह है कि इस बांध समर्थक हुजूम को सीओ(कमांडिंग ऑफिसर) देवेश शर्मा खुद अपनी अगुआई में लेकर आए थे. हमारे पास इसके पुख्ता सबूत भी मौजूद हैं. जब सीएचसी के भीतर एसडीएम दुद्धी के सामने हमने देवेश शर्मा को पकड़ा और एसडीएम से पूछा कि क्या आपने देखा कि ये किस तरह से भीड़ लेकर चले आ रहे हैं, एसडीएम ने साफ़-साफ़ इनकार कर दिया. देवेश शर्मा की तस्वीरें लेने का प्रयास होने लगा, तो वे नज़र बचाकर निकलने का और भागने का प्रयास करने लगे. किसी भी सूरत में वे सवालों का जवाब नहीं देना चाह रहे थे. वहीं मौजूद एक अन्य पुलिस इन्स्पेक्टर संदीप कुमार राय से हमने पूछा कि क्या अब जिले में धारा 144 प्रभाव में नहीं है, इस पर उनका जवाब चौंका देने वाला था. उन्होंने कहा, ‘सबका समय आता है. अभी तक आपका समय चल रहा था, अब हम लोगों का है.’ हमने संदीप राय से पूछा कि ‘आपके समय का मतलब क्या है’, तो उन्होंने कहा कि इस बारे में ‘बैठकर’ बात करेंगे. धारा 144A के बारे में आधिकारिक रूप से पता चला कि जिस जगह पर यह सब तमाशा हो रहा था, वहां किसी भी किस्म की धारा 144 प्रभाव में नहीं थी.


Protest outside CHC
दुद्धी के सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र के बाहर बांध समर्थक प्रदर्शनकारियों की भीड़

एसडीएम दुद्धी के हस्तक्षेप के बाद पुलिस द्वारा प्रायोजित धरना सीएचसी के भर्ती वार्ड के दरवाज़े से हटकर मुख्य द्वार तक पहुंच गया. इसके बाद एसडीएम की गाड़ी से हमें अपनी गाड़ी तक छोड़ा गया, जिस पर भी रास्ते में जूते-चप्पल और कुछेक पत्थर भी फेंके गए. सूत्र बताते हैं कि प्रदर्शन कर रहे सारे लोग दुद्धी में स्थित ठेकेदार और व्यापारी हैं. किसी न किसी तरीके से बांध निर्माण के ज़रिए इनकी कमाई हो रही है. किसी की जेसीबी मशीन लगी है तो किसी का ट्रक या ट्रैक्टर. ऐसे में साफ़ ज़ाहिर है कि जो भी बांध निर्माण से कमाई पैदा कर रहा है, वह हर हाल में बांध का समर्थन ही करेगा.

कनहर बांध विरोधी आन्दोलन के नेता गंभीरा प्रसाद को कल पुलिस ने इलाहाबाद से उठा लिया. गंभीरा प्रसाद को पुलिस ने पुलिस से झड़प के मामलों में मुख्य अभियुक्त बनाया था. गंभीरा इलाहाबाद हाईकोर्ट के सीनियर वकील रविकिरन जैन के पास कनहर बांध के विरोध में दाखिल रिट का मामला देखने आये थे. वे किसी ज़रूरी कागज़ का फोटोस्टेट कराने बाहर आए तभी स्कॉर्पियो गाड़ी से सादे कपड़ों में 8 लोग उतर कर आए और गंभीरा को उठाकर ले जाने लगे. आसपास मौजूद लोगों ने दौड़कर तीन लोगों को पकड़ लिया, लेकिन बाक़ी पांच लोग गंभीरा को ले जाने में सफल रहे. इन लोगों ने खुद को सोनभद्र पुलिस का आदमी बताया लेकिन कोई भी साक्ष्य नहीं दिखा सके, साथ में गंभीरा की लोकेशन के बारे में कोई जानकारी साझा करने से मना कर दिया. कुछ उठापटक के बाद गंभीरा को लेकर वे सोनभद्र की ओर रवाना हो गए. पुलिस गंभीरा की गिरफ्तारी के लिए लगातार प्रयास कर रही थी, लेकिन गंभीरा मानते हैं कि उन्होंने कोई भी ऐसी दंडात्मक कार्रवाई नहीं की. वे केवल अपनी आवाज़ उठा रहे थे. उलटा पुलिस ने उनके खिलाफ़ झूठे आरोप मढ़े हैं. एसपी शिवशंकर यादव कहते हैं, ‘गंभीरा ने हमारे एसडीएम पर हमला किया. उन्हें स्लिप डिस्क हो गया. उन्होंने 10 लाख अपनी जेब से लगाकर इलाज कराया, फ़िर भी हमने गंभीरा को गिरफ़्तार नहीं किया.’ जबकि गंभीरा समेत सभी आदिवासियों का कहना है कि प्रशासनिक दल भागने में नदी के पत्थरों के बीच गिर गया था, इसके बाद उलटकर हमारे ही खिलाफ़ मुकदमा दर्ज करा दिया गया. ज्ञात हो गंभीरा के खिलाफ़ दुद्धी थाने में धारा 147/149/307/325/323/352/353 और 504 के तहत मामला दर्ज किया गया था.


Gambhira Prasad
गंभीरा प्रसाद

20 अप्रैल की दोपहर को जिलाधिकारी संजय कुमार ने सुन्दरी, भीसुर और कोरची गाँव के लोगों के साथ चौपाल लगाकर बातचीत की. अब इस बैठक के रुख का पता इसी बात से लगाया जा सकता है कि इस मीटिंग को रखवाने वाले सपा के नेता इश्तियाक अहमद थे. डीएम ने ऐलान किया कि जिन भी लोगों को मुआवजा नहीं मिला है, उनके घर तक जाकर चेक द्वारा मुआवज़ा दिया जाएगा. इसके साथ डीएम ने यह भी कहा कि उत्तर प्रदेश के सभी 11 गाँवों के विस्थापितों की तीन पीढ़ियों के नाम लाभार्थियों की सूची में शामिल कराने को लेकर सर्वे कराया जाएगा और उनकी हरसंभव तरीके से मदद की जाएगी. इसके साथ राशन कार्ड और आय व जाति प्रमाण-पत्र के साथ-साथ पेंशन की भी घोषणा जिलाधिकारी संजय कुमार ने की है. जिलाधिकारी की ओर से जारी प्रेस नोट में जिक्र है कि एसपी शिवशंकर यादव ने दावा किया कि ‘पुलिस ने विस्थापितों के साथ पूरी हमदर्दी’ का परिचय दिया है. इस सभा में यह भी कहा गया कि जो लोग भोले-भाले विस्थापितों को बहकाकर आंदोलन चला रहे हैं, उन्हें किसी भी हाल में माफ़ नहीं किया जाएगा. इसका सीधा-सीधा निशाना ‘कनहर बचाओ आंदोलन’ से जुड़े हुए गंभीरा प्रसाद और महेशानंद हैं. कनहर बचाओ आंदोलन के विश्वनाथ खरवार गांव में ही मौजूद हैं. महेशानंद कहीं बाहर हैं. और गंभीरा के खिलाफ़ 23 दिसंबर 2014 को ही ‘राज्य बनाम गंभीरा’ का फर्जी मुकदमा दर्ज है, जिसके तहत पुलिस उनकी गिरफ्तारी के लिए लगातार दबिश दे रही थी और गाँव वालों पर अत्याचार कर रही थी.

यह बात ध्यान में लाना ज़रूरी है कि आदिवासियों के साथ हुई इस बैठक में जिलाधिकारी संजय कुमार और एसपी शिवशंकर यादव के अलावा मौजूद सभी लोग समाजवादी पार्टी की पदाधिकारी थे. यानी मामला हर बार की तरह सरकारी तंत्र का न रहकर उस राजनीतिक दल का भी बन चुका है, जो सत्ता पर काबिज़ है. प्रशासन की दलील है कि उत्तर प्रदेश के सिर्फ़ 11 गाँव डूबेंगे. लेकिन लोग बताते हैं कि संख्या इससे ज़्यादा है. कोई भी व्यक्ति इससे सहमत होने को तैयार नहीं है कि उत्तर प्रदेश के लोग यदि मुआवज़ा पा भी जाते हैं तो छत्तीसगढ़ के सरगुजा और झारखंड के सीमावर्ती गांवों में कौन-सी ज़मीन बंटेगी और कौन-सा मुआवज़ा मिलेगा? यह बांध है, जो किसी की खुराक़ बनता है तो किसी की छीनता है.

[जारी…]

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