समय पूरा होने के बाद भी आधे-अधूरे विकास से जूझ रहा है प्रधानमंत्री का आदर्श गांव जयापुर
सिद्धांत मोहन, TwoCircles.net
जयापुर/वाराणसी: मोदी के गोद लिए गए गांव जयापुर के आदर्श ग्राम बने रहने की सीमा पूरी हो चुकी है. नियमशुदा तरीके से प्रधानमंत्री को अब एक दूसरा गांव गोद लेना होगा और अगले एक साल तक फिर उसे आदर्श ग्राम योजना के तहत विकसित करना होगा. लेकिन प्रधानमंत्री द्वारा गोद लिए जाने के बाद उत्साहित जयापुर की प्रधान दुर्गावती देवी कहती हैं, ‘नहीं! मोदी जी का हमारे देवर से बात होता रहता है. ऊ कहें हैं कि पूरा पांच साल तक हम इस गांव को देखेंगे.’ प्रधान की बात पर भरोसा करें तो साफ़ पता चलता है कि मोदी इस साल जिस गांव को गोद लेंगे उसे चार साल, उसके अगले साल लिए गये गांव को तीन साल, उसके अगले साल लिए गए को दो और फिर यही सिलसिला चलेगा.
बनारस से तीस किलोमीटर दूर स्थित जयापुर गांव में हवाई बातें बेहद तेज़ी से उड़ती हैं. लोग कहते हैं मोदी जी ने यह किया और वह किया. लेकिन दलितों के लिए बनाए गए रिहाईश ‘मोदी जी का अटल नगर’ को छोड़कर कहीं और परफेक्शन नहीं दीखता है.
पूरे गांव में इंटरलॉकिंग ईंटें बिछाई जा रही हैं. ईंटों को कहीं भी एक दूसरे से जोड़ा नहीं गया है. उन्हें बालू पर यूं ही रख दिया गया है. ईंटें कई जगहों पर टूट गयी हैं, खिसक गयी हैं. दुपहिया वाहन चलाने में पहिए सरक जाते हैं, गांव के बीचोंबीच एक जनरल स्टोर पर बैठे लोग कहते हैं, ‘हम लोगों ने ये ईंट बिछाने का बहुत विरोध किया था. लेकिन प्रधान ने सुना नहीं. वे बिछ्वाते गये. अब फिर से पूरा ईंट हटाकर नयी ईंट बिछाई जाएगी.’
नरेंद्र मोदी के आदर्श ग्राम जयापुर में सार्वजनिक बायो-टॉयलेट लगाए गए हैं. बाकी सभी घरो को एक-एक निजी टॉयलेट दिए गए हैं. निजी टायलेट की स्थिति और उनकी सफाई की बात नहीं की जानी चाहिए क्योंकि वे निजी हैं और उनकी सफाई का जिम्मा गृहस्वामी के पास है. लेकिन सार्वजनिक बायो-टॉयलेट की कहानी अजीब है. गांव में कुल आठ बायो-टॉयलेट लगे हैं, जबकि ऐसे आठ बायो-टॉयलेट गांव के किसी मास्टर साहब के अहाते में पिछले कई महीनों से खड़े हैं. गांव में लग चुके बायो-टॉयलेट में से कई में बाहर से ताले बंद हैं. ताले की चाभी किसी जनरल स्टोर पर तो किसी के आँगन में टंगी मिलती है. ऐसे ही एक सार्वजनिक शौचालय के बारे में पूछने पर जनरल स्टोर पर ताश खेल रहे लोग बताते हैं, ‘चाभी हमारे ही पास है. दरअसल गांव में बाहर के लोग आते हैं तो गन्दा कर देते हैं. पानी नहीं डालते. इसीलिए गांव में जिसको भी जाना होता है, वह हमारे यहां से ताली लेकर जाता है.’ जनरल स्टोर के पास ही बंद हो चुका आंगनबाड़ी केंद्र है और चल रहा सिलाई प्रशिक्षण केंद्र है. सिलाई केंद्र की लड़कियां पहले तो बंद शौचालयों के बारे में कोई जानकारी नहीं होने का बहाना करती हैं, फिर बाद में गांव के किसी और हिस्से में मिलने पर बताती हैं कि लोगों ने सार्वजनिक शौचालय को भी अपना निजी बना लिया है, इसीलिए हमेशा ताला बंद रहता है.
ताला बंद शौचालय(लाल घेरे में)
एक छोटी बच्ची रिया सिंह मिलती हैं. रिया सिंह की समस्या बेहद गंभीर है. रिया का कहना है मोदी जी के दौरे की वजह से उनका स्कूल बंद हो गया. अब उन्हें पढ़ाई करने दूर जाना पड़ता है. लगभग 5 किलोमीटर रोज़. रिया सिंह की मोदी जी से फ़रियाद है कि उनके गांव में एक स्कूल खुलवा दिया जाए. लेकिन मज़े की बात है कि एक राजकीय आदर्श कन्या विद्यालय खोल दिया गया है. इस विद्यालय के सभी कमरों में ताला बंद है, अभी कक्षाएं नहीं चल रही हैं. हालांकि हरसिमरत कौर बादल ने ज़रूर इस विद्यालय का उद्घाटन कर दिया है. मोदी के आदर्श गांव जयापुर से 5 किलोमीटर की दूर स्थित जक्खिनी गांव में एक मॉडल स्कूल तैयार किया गया है. यह स्कूल भी अभी बंद है. स्कूल के निर्माण के वक़्त प्रमुख सचिव से लगायत नगर प्रशासन रोज़ दौरे करता था कि जल्द से जल्द स्कूल का निर्माण पूरा हो जाए. खबर है कि आने वाले शैक्षणिक सत्र में इस स्कूल में कक्षाएं चलाई जा सकती हैं.
आदर्श कन्या विद्यालय
अब आता है इस खबर का सबसे रोचक पक्ष – जयापुर की बस. जयापुर में उत्तर प्रदेश के राज्यपाल राम नाईक और गुजरात के सांसद सीआर पाटिल कुछ महीनों पहले आए थे. उनके साथ मीडिया भी जुटा था और प्रशासन भी. यह एक बड़ा मौक़ा था. मौक़ा इसलिए कि जयापुर गांव के मुख्यद्वार पर बने नए-नवेले बस स्टैंड से महिलाओं के लिए बस चलने वाली थी, और बड़ा इसलिए कि इसके लिए गांव की ही दो लड़कियों को जिम्मेदारी दी गयी थी. जिम्मेदारी बस चलाने की और पैसे कमाने की. इसे महिला सशक्तिकरण और सुविधार्जन की दृष्टि से बड़ा कदम माना जा रहा था. बनारस के मोदी विरोधी इसमें कोई ख़ास मसाला ढूंढने में असफल रहे. लेकिन रोचक बात यह है कि जयापुर की यह बस एक दिन भी नहीं चली.
बस चालिका ज्योति मिश्रा अपनी मां के साथ
हमने बस की चालाक के तौर पर नियुक्त की गयी ज्योति मिश्रा से मुलाक़ात की. ज्योति का कहना है, ‘शुरुआत में 10-15 दिन तक बोले कि ट्रेनिंग देंगे, चलाना सिखाएंगे. लेकिन कुछ नहीं हुआ.’ बस वापस चली गयी. बकौल ज्योति, उनसे किसी किस्म के मेहनताने की बात नहीं की गई थी. उन्हें कहा गया था कि जो चालकों से पैसा मिलेगा, उसी से पेट्रोल का खर्च निकालना है, बस का मेंटेनेस करना है और जो बचे, उसे खुद के लिए रखना है. यह सोचने की बात है कि महज़ तीन हज़ार की आबादी वाले जयापुर गांव में ज्योति कितने पैसे बना पातीं या कितने बचा पातीं? बस को बनारस के उद्योगपति दीनदयाल जालान के प्रतिष्ठान ने दिया था, जिसे अब वापिस ले लिया गया है. यानी कुल मिलाकर यह बस चलने से ज्यादा खड़ी है. अब ज्योति वापिस अपनी पढ़ाई में जुट गयी हैं.
बस स्टैण्ड अब जमाखोरी का अड्डा है. इस बस स्टैंड पर हर सोमवार को निःशुल्क दवा वितरण का कैम्प लगाया जाता है.
बस स्टैंड, जहां निःशुल्क दवा वितरण किया जा रहा है
गांव में बिजली महज़ आठ घंटे मिलती है. पानी की समस्या और भी ज्यादा विकट है. गांववाले बताते हैं कि लोगों को पानी की सप्लाई देने के लिए महज़ दो इंच का पाइप लगाया गया है, जिसकी वजह से आधे से भी ज्यादा घरों में पानी नहीं पहुंच पाता है. सभी को सरकारी हैंडपंप या अन्य साधनों के भरोसे रहना पड़ता है. दलितों के लिए बसाया गया ‘अटल नगर’ परफेक्ट है. यहां रहे रहे परिवारों को कोई समस्या नहीं है. सोलर लाईटें लगी हैं, जो अँधेरा होने पर खुद-ब-खुद जल जाती हैं. बाग़ हैं, बगीचे हैं…पेड़ों में पानी भरते हुए लोग और बच्चे हमेशा दिख जाते हैं. एलपीजी गैस का कनेक्शन नहीं है, तो रसोईघर काला होने के डर से सभी परिवार पीछे की दो झोपड़ियों में लकड़ी पर खाना बनाते हैं. थोड़ा कुरेदने पर पता चलता है कि यहां भी पानी की समस्या विकट है. पानी नहीं मिलता, मिलता है तो ज़रुरत से बेहद कम मिलता है.
नरेंद्र मोदी के आदर्श ग्राम जयापुर में ग्राम प्रधान का चुनाव होने वाला है. यहां तीन प्रत्याशी खड़े हैं तो तीनों भाजपा और नरेंद्र मोदी के नाम पर वोट मांग रहे हैं. ‘सबका साथ-सबका विकास’ के नारे भी पोस्टरों पर दिख रहे हैं. लेकिन गांव वाले बताते हैं कि यहां सबका साथ तो नहीं हो रहा है, लेकिन कुछ को छोड़कर बाकी सबका विकास हो रहा है. जयापुर में जातियों का खेल जबरदस्त है. भूमिहार और ब्राह्मण यह आरोप लगाते हैं कि इस गांव के बहुसंख्यक यानी प्रधान विकास के कार्यों में, बीज बंटवारे में और दूसरे ज़रूरी कामों में गैर-बराबरी करते हैं. पटेलों में ही सारा बीज और धान ख़त्म हो जाता है. सारी सोलर लाइटें और सारी मशीनरी प्रधान के घर में ही रखी रहती हैं. लोगों का कहना है कि वहीं से उनमें फेरबदल करके उन्हें लगा दिया जाता है.
वर्तमान प्रधान दुर्गावती देवी हैं, लेकिन मीडिया और प्रशासन से बात करने उनके देवर नारायण पटेल ‘प्रधान-प्रतिनिधि’ के रूप में हमेशा सामने आते हैं. शायद इसी कुव्वत के दम पर नारायण पटेल इस बार का चुनाव लड़ रहे हैं. महिला सशक्तिकरण की यह नई परिभाषा है कि जहां एक तरफ गांव में महिलाओं को बस चलाने की ट्रेनिंग देने की कवायद हो रही है, वहीँ दूसरी ओर महिला ग्राम प्रधान बेहद मुश्किल से सामने दिखती हैं.
प्रधान का घर
गांव के हरेक घर के बाहर भाजपा के कम और विश्व हिन्दू परिषद्-राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के झंडे ज़्यादा लगे हुए हैं. सारे घरों की तस्वीर तो नहीं दिखा सकते, लेकिन उदाहरण के लिए जयापुर की वर्तमान प्रधान के घर की तस्वीर संलग्न है. पिछली मुलाक़ात में हमने जब पूछा कि क्या प्रधान से बात नहीं हो सकती है? तो नारायण पटेल ने कहा कि जो भी बात हो आप हमसे कर सकते हैं. लिख दीजियेगा कि प्रधान से बात हुई और प्रधान-प्रतिनिधि के तौर पर हमारा नाम जोड़ दीजियेगा. नारायण पटेल किसी टेप-रिकॉर्डर की तरह बताने लगते हैं कि, ‘गाँव में तीन बैंक हैं, सोलर लाईट लग रही है, एक बैंक और खुलने वाला है, आठ बायोटॉयलेट हैं, आठ और लगने हैं, आराम कुर्सियां लग रही हैं, डाक विभाग ने एक बस स्टैण्ड भी बनवाया है.’
प्रधान-प्रतिनिधि नारायण पटेल
प्रधान से ताजा मुलाक़ात में प्रधान-प्रतिनिधि नहीं हैं. दबाव डालने पर सकपकाई निगाह से दुर्गावती देवी को बुलाया जाता है. गैर-बराबरी के सवाल पर वे अचकचाते हुए कहती हैं, ‘देखिए, चुनाव का समय है. जिसको जो कहना है, कहेगा.’ बीज और खाद वितरण के प्रश्न पर वह वस्तुस्थिति से पूरी तरह से अनभिज्ञ हैं. उन्हें आसपास बैठे लोगों से पूछना पड़ता है, जिसका स्पष्ट जवाब उन्हें नहीं मिल पाता.
वर्तमान प्रधान दुर्गावती देवी
गांव में पानी की समस्या पर वे कहती हैं कि लोग प्रधान चुनाव के कारण ऐसा कह रहे हैं. सोलर प्लांट लग जाने के बावजूद सप्लाई नहीं शुरू हुई, इसके जवाब में वे कहती हैं कि चुनाव के बाद सप्लाई शुरू होगी. चलाई गयी बस चलने के बजाय खड़ी रही, इसके जवाब में वे कहती हैं कि यह सब गांव के ठाकुर-भूमिहार का खेल है. ईंटों के लिए भी उनके पास बहाना है. कुल मिलाकर जयापुर के ग्राम प्रधान के पास किसी भी किस्म की कोई ज़िम्मेदारी नहीं है.
जाति का खेल, प्रधान पर आरोप
जयापुर गांव में एक आर्मी के रिटायर्ड सिपाही रहते हैं, नाम है रवीन्द्र प्रताप सिंह. एक बार जयापुर गांव में प्रमुख सचिव नृपेन्द्र मिश्र वाराणसी के जिलाधिकारी प्रांजल यादव और अन्य अधिकारी विकास कार्यों का जायज़ा लेने आए हुए थे. गांव में मंच बनाकर सभी को अपनी बात कहने का मौक़ा दिया गया. भूमिहार जाति से ताल्लुक रखने वाले रवीन्द्र प्रताप सिंह ने बीच सभा में खड़े होकर चिल्लाना शुरू कर दिया कि इस गांव में जाति का खेल हो रहा है. सिर्फ़ पटेल जाति के लोगों का सारा काम किया जा रहा है और बाकी भूमिहारों की ओर कोई ध्यान नहीं दिया जा रहा है. इतना कहते ही सभा में हड़कंप मच गया. लोग रवीन्द्र प्रताप सिंह को जबरन बिठाने लगे, लेकिन अपनी ज़िद पर अड़े रवीन्द्र प्रताप सिंह ने अपनी बात रख ही दी. इन्डियन एक्सप्रेस ने इस खबर को उठाया लेकिन फिर भी मीडिया का ध्यान इस ओर नहीं गया.
बस की संचालिकाओं के साथ राज्यपाल राम नाईक(साभार – डीएनए)
पहले रवींद्र का नाम लेते ही लोग यह कहने लगे कि वह आर्मी के रिटायर्ड सैनिक हैं, इसलिए पागल हो चुके हैं. उनसे बात करके कोई फायदा नहीं होगा. लेकिन रवीन्द्र प्रताप सिंह आर्मी से सेवानिवृत्ति के बाद जयापुर के बैंक में बतौर क्लर्क नौकरी कर रहे हैं. गांव के विकास के बारे में पूछने पर रवीन्द्र प्रताप सिंह बताते हैं कि सबकुछ हो रहा है, अच्छा है कि प्रधानमंत्री ने गाँव को गोद ले लिया है, इससे कुछ सुविधा मिलेगी. लेकिन उनकी शिकायत को लेकर बात करने पर वे कहते हैं, ‘मेरा कहना सिर्फ इतना है कि गाँव के विकास का काम यदि हो रहा है तो वह सही तरीके और ब्लॉकवार तरीके से हो. एक के बाद एक ब्लॉक का विकास किया जाए. लेकिन यहां जाति के नाम पर खेल चल रहा है. चूंकि प्रधान पटेल हैं, इसलिए पटेलों की तरफ ही सोलर लाईट लग रही है और शौचालय बन रहे हैं. बाकी भूमिहारों और अन्य जातियों की तरफ कोई ध्यान नहीं दिया जा रहा है.’ रवीन्द्र सिंह कहते हैं, ‘उस दिन मुख्य सचिव की बैठक में बोलने का मुझे यह खामियाजा भुगतना पड़ रहा है कि अब गाँव में मुझसे कोई बात नहीं कर रहा है. लोग कहते हैं कि मैनें गांव की बेइज़्ज़ती कराई है.
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की आड़ में जयापुर
जिस समय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी गाँव को गोद लेने की प्रक्रिया की औपचारिकता को अंजाम देने वाराणसी आए थे, उस समय यह बात उड़ते-उड़ते आई कि जयापुर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का एक गढ़ है इसीलिए नरेन्द्र मोदी ने इस गाँव का चुनाव किया. टीवी चैनल जयापुर पहुंच गए और वहां से एक और शिगूफ़ा सामने आया…. ‘जयापुर के लोगों ने सबसे पहले मुस्लिम शासकों और अंग्रेजों को मारकर भगाया था.’ प्रधानमंत्री समेत भाजपा से जुड़े किसी भी व्यक्ति ने इस पर कोई भी स्पष्टीकरण देना या उसे सत्यापित करने का बीड़ा नहीं उठाया. प्रधानमंत्री ने मंच से कहा था कि जब वे पहली बार बनारस आए तो उन्हें किसी ने बस यूं ही जयापुर का नाम बताया और तब उन्होंने ही निर्णय कर लिया कि वे इसी गाँव को गोद लेंगे. लेकिन जयापुर की हकीकत किसी दूसरी ओर ही इशारा करती है.
बनारस शहर से लगभग 40 किलोमीटर की दूरी पर बसा जयापुर आराजी लाइन के अंदर आता है. सड़कें कुछ ख़ास अच्छी हालत में नहीं हैं, पहुंचने में एक घण्टे से ऊपर का ही वक्त लगता है. प्रधानमंत्री हेलीकॉप्टर से गए थे, न कि सड़क से. 2011 की जनगणना के हिसाब से जयापुर की आबादी 3205 होनी चाहिए लेकिन प्रधान और लोकल लोगों की मानें तो गाँव की आबादी 4200 के आसपास है.
जयापुर जाते वक्त पास के सिंगही गांव के सनाउल्ला बीच रास्ते में साइकिल पर मिलते हैं और बड़े इत्मीनान से कहते हैं कि यदि आप मुस्लिमों को खोज रहे हैं तो जयापुर मत जाइयेगा. सनाउल्ला झूठ नहीं कहते हैं. यह रोचक तथ्य है कि जयापुर गाँव में सभी के सभी हिन्दू हैं. इस गाँव में आपको भूल से भी एक मुस्लिम मिल जाए, तो समझ जाइए कि आप से ही कोई गलती हुई है क्योंकि इस गाँव में एक भी मुस्लिम या ईसाई या कोई भी अल्पसंख्यक नहीं मौजूद है. पास ही सटे गाँव जक्खिनी में मुस्लिम रहते हैं, पास के दूसरे गाँव सिंगही में भी मुस्लिमों की बस्ती है.
बातचीत में अल्पसंख्यक फैक्टर लाने की कोई ज़रूरत ही नहीं पड़ती, यदि हमने जयापुर गांव के बाशिंदों से कोई बातचीत न की होती. सीधे प्रधानमंत्री का नाम जुड़ा होने की वजह से जयापुर की खबरें रिपोर्ट करने की अपनी दिक्क़तें हैं. यहां का लगभग हरेक बाशिंदा किसी भी तरीके की बात करने से पहले हमेशा यही चाहता है कि तैयार खबर में उसका नाम न आए, फ़िर भी हमने पूरी कोशिश की है कि सभी आयामों पर बात करते वक्त सही शख्स का उल्लेख किया जाए.
जयापुर में मुस्लिम आबादी की बात उठाने पर बूढ़े-नौजवान एक ही बात रटते रहते हैं कि उनके पुरखों ने यहां से सभी मुसलमानों को मारकर भगा दिया और तब से लेकर आज तक गांव में मुस्लिमों का नामो-निशां नहीं है. गांव के बुजुर्ग रामअवतार मिश्रा कहते हैं, ‘घूम लीजिए पूरे गांव में, कोई मुस्लिम मिले तो बताईयेगा. भगा दिया हमने सब मुसलमानों को. हिन्दू अब और नहीं सहेगा. अब तो हम सीधे मोदी जी के आशीर्वाद के तले हैं, अब कोई डर नहीं है.’ बहुत बार पूछने पर गांव के नौजवान अजीत सिंह कहते हैं, ‘हम लोगों का संकल्प है कि इसे ऐसा आदर्श ग्राम बनाएं ताकि हिन्दू समाज सबक ले सके.’ यह कोरे दावे नहीं हैं. जयापुर की कुल आबादी का 65-70 प्रतिशत हिस्सा पटेल जाति के लोगों का है. उसके बाद भूमिहार, ब्राह्मण, लाला, भर, लोहार, तेली और मुसहर जाति के लोग आते हैं. गांव में हरिजन भी इक्का-दुक्का ही हैं. इसके अलावा गांव के अधिकतर लोगों से पूछने पर यह बात पता चलती है कि गांव का लगभग हरेक बाशिंदा राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का सदस्य है.
रोजाना गांव में संघ की शाखा लगाने वाले ग्राम प्रचारक अरविंद भी इस बारे में बताते हैं, ‘गाँव के लगभग 100 लोग वार्षिक दीक्षा लेने वाले संघ सदस्य हैं. लेकिन अक्सर सुबह शाखा में उपस्थित रहने वाले, ध्वज प्रणाम करने वाले और पथ-संचलन और रैलियों में हिस्सा लेने वाले लोगों को भी गिनें तो गांव का एक भी घर ऐसा नहीं होगा जहां संघ के सदस्य न हों.’ गांव में बिना किसी क्रम के पूछताछ करने पर पता चलता है कि आदर्श ग्राम लिए जाने के पहले तक लगभग गाँव की आधी आबादी संघ से जुड़ी हुई थी, लेकिन अब प्रधानमंत्री द्वारा गोद लिए जाने के बाद लगभग हरेक पुरुष संघ का सदस्य है.
गांव साफ़ दिखता है, ‘प्रधान-प्रतिनिधि’ बताते हैं कि आदर्श ग्राम बनने के बाद से लोगों ने साफ़-सफ़ाई करना शुरू किया. पहले ऐसी कोई जागरूकता नहीं थी. अब सभी को नियमित रूप से हफ़्ते में एक दिन अपने घर के सामने सफाई करनी होती है. जयापुर के संघ के जुड़ाव के बारे में पूछने पर नारायण पटेल पहले जवाब देने से बचते हैं. फ़िर बहुत कुरेदने पर कहते हैं कि यह तो आस्था का सवाल है.
नारायण पटेल की बात सही भी है. यह बात बहुत कम लोगों को मालूम होगी कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का न तो कोई बैंक खाता है, न कोई लेटर-हेड, न कोई पंजीकरण का प्रमाण और न ही कोई कागज़, जिसकी बिना पर किसी भी तरह से सच और झूठ की स्क्रूटनी हो सके. इसी कारण से राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के भीतर नाथूराम गोडसे को लेकर ही विरोधाभास है. संघ का एक हिस्सा कहता है कि नाथूराम गोडसे संघ का सदस्य नहीं था और दूसरा ज़्यादा मुखर हिस्सा कहता है कि नाथूराम गोडसे संघ का सदस्य था जिसने गांधी को मारकर देश की रक्षा की, नहीं तो देश कब का बिक गया होता. एक और अज्ञानी हिस्सा यह भी कहता पाया जाता है कि नाथूराम ने महात्मा गांधी की हत्या नहीं की थी.
जयापुर में ज़ाहिर तौर पर काम हुई हैं. तीन राष्ट्रीय बैंक हैं, एटीएम लगे हुए हैं. कई बड़ी चारपहिया गाड़ियां अक्सर दिख जाती हैं. अधिकतर घरों के पुरुष नहीं दिखते, क्योंकि वे काम करने खेतों में गए हुए होते हैं. लेकिन इस गांव की मियाद अब पूरी हो चुकी है, यह भी कहें कि इस मियाद के साथ अपेक्षित मुराद बेहद शिकायतों, उलझनों और अनियमितताओं से भरी हुई है. यदि प्रधानमंत्री द्वारा गोद लिया गांव इस स्थिति में है, तो अगले चार साल तक सभी सांसदों द्वारा लिए गए गांव किस स्थिति में जाएंगे, यह सोचने की बात है.