By अफ़रोज़ आलम साहिल, TwoCircles.net
नई दिल्ली: बाबरी मस्जिद विध्वंस की घटना को 23 वर्ष बीत गए हैं लेकिन दिल्ली में आज भी यह दिन विभिन्न संगठनों व राजनेताओं के विरोध-प्रदर्शन, धरना, जलसा-जुलूस के नाम रहा. जहां एक तरफ़ जंतर-मंतर पर कई संगठन के लोगों ने धरना दिया, वहीं दिल्ली के मुस्लिम इलाक़ों में विरोध-प्रदर्शन हुए.
जंतर-मंतर पर आज वामपंथी राजनीतिक पार्टियों ने एक साथ मिलकर सांप्रदायिकता विरोधी जुलूस व सभा आयोजित कर केन्द्र की मोदी सरकार को निशाने पर लिया.
वक्ताओं ने इस सभा में स्पष्ट तौर कहा कि भाजपा-आरएसएस का केन्द्रीय सरकार पर क़ब्ज़ा होने के बाद से पूरे देश में साम्प्रदायिक तनाव व हिंसक वारदातों में तेज़ी से बढ़ोतरी हुई है. ये कभी लव-जिहाद के नाम पर नौजवान लड़के-लड़कियों के अधिकारों पर हमला करते हैं तो कभी घर-वापसी के नाम पर मुसलमानों व ईसाइयों पर धर्मान्तरण करने का दबाव डालते हैं. कभी मस्जिदों व गिरजाघरों पर हमले करते हैं.
वक्ताओं ने आगे कहा कि मोदी सरकार के कई मंत्री और सांसद अपने ज़हरीले भाषणों से घृणा फैलाने और साम्प्रदायिक गड़बड़ी पैदा करने में लगातार लगे हुए हैं. आज तक प्रधानमंत्री मोदी ने संसद या देश को इन पर लगाम लगाने का यक़ीन नहीं दिलाया है. अल्पसंख्यकों के ख़िलाफ़ देश में बढ़ती साम्प्रदायिक हिंसाओं की घटनाओं पर भी कभी खुलकर निंदा नहीं की. ऐसे में इस संरक्षण से साम्प्रदायिक ताकतों के हौसले और भी बुलंद हुए हैं.
इस सभा में सीपीआई (एम), सीपीआई, एआईएफबी, आरएसपी, सीपीआई (एमएल) लिबरेशन, एसयूसीआई (कम्यूनिस्ट) जैसी राजनीतिक पार्टियां शामिल थीं.
जंतर-मंतर पर आज पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया ने भी प्रदर्शन किया. पॉपुलर फ्रंट ने इस प्रदर्शन में सरकार के सामने यह मांग रखी कि बाबरी मस्जिद को ढहाना एक आतंकी कार्रवाई थी. इसलिए जो लोग इस कार्य में शामिल थे, उनको कड़ी से कड़ी सज़ा दी जाए ताकि दोबारा इस तरह की फाशिस्ट हरकतें न हों. पॉपुलर फ्रंट के इस धरने में कई संगठनों के साथ-साथ कई अहम चेहरे शामिल थे.
इसके अलावा लोकराज संगठन, कम्युनिस्ट ग़दर पार्टी, जमाअत-ए-इस्लामी हिन्द, सिख फोरम, वेलफेयर पार्टी ऑफ इंडिया, यूनाईटेड मुस्लिम्स फ्रंट, सीपीआई (एम.एल.) न्यू प्रोलेतेरियन, एसोसिएशन फॉर प्रोटेक्शन ऑफ सिविल राइट्स, नया दौर पार्टी, इंसाफ, दिल्ली श्रमिक संगठन, राष्ट्रीय ईसाई मंच, स्टूडेंट इस्लामिक ऑर्गनाईजेशन, पुरोगामी महिला संगठन, हिन्द नौजवान एकता सभा, मजदूर एकता कमेटी, राष्ट्रीय उलेमा कौंसिल, सिटिज़न फॉर डेमोक्रेसी, मिशन भारतीयम, सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी ऑफ़ इंडिया, निशांत नाट्य मंच, ऑल इंडिया मुस्लिम मजलिस-ए-मुशावरात जैसे कई संगठनों ने एक साथ मिलकर आज जंतर-मंतर पर धरना दिया.
वहीं दिल्ली के जामिया नगर इलाक़े में भी असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन के दिल्ली चैप्टर ने भी कैंडिल मार्च निकालकर बाबरी के हत्यारों के ख़िलाफ़ आवाज़ बुलंद की.
उत्तर प्रदेश के लखनऊ में भी आज बाबरी मस्जिद के शहादत की 23वीं बरसी पर लक्ष्मण मेला मैदान में राष्ट्रीय उलेमा कौंसिल, आल इंडिया इमाम्स कौंसिल, मुस्लिम मजलिस, इंडियन नेशनल लीग, इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग, पिछड़ा जन समाज पार्टी, परचम पार्टी, वेलफेयर पार्टी आफ इंडिया एवं मुस्लिम फोरम ने एकसाथ मिलकर धरना-प्रदर्शन किया और सरकार के समक्ष यह मांग रखी कि बाबरी मस्जिद का नव निर्माण किया जाए और दोषियों को दण्डित किया जाए.
इस बीच आज यूपी में बाबरी मस्जिद पर बहन मायावती के बयान ने देश की सियासत को गरमा दिया है. मायावती ने अयोध्या के उस विवादित ढांचे को ‘बाबरी मस्जिद’ बताया है कि जिसे भाजपा व आरएसएस के लोग राम मंदिर बताते आए हैं.
वहीं दूसरी तरफ़ मद्रास उच्च न्यायालय ने तमिलनाडु सरकार को आदेश दिया है कि वह अगले साल से किसी भी संगठन को 6 दिसंबर के दिन बाबरी मस्जिद या राम मंदिर के समर्थन या विरोध में जलसे-जुलूस और प्रदर्शन की अनुमति न दे. उच्च न्यायालय ने कहा है कि इस तरह के प्रदर्शनों से आम जनजीवन प्रभावित होता है और उससे सरकारी और ग़ैर-सरकारी संसाधन भी बर्बाद होते हैं.
दरअसल, 6 दिसम्बर आज़ाद हिन्दुस्तान के इतिहास का एक ऐसा दिन है, जिसे भूलना अल्पसंख्यकों के लिए मुश्किल है. बाबरी मस्जिद विध्वंस की घटना हिन्दुस्तान की धर्मनिरपेक्ष छवि पर एक ऐसा बदनुमा दाग़ है, जिसकी कालिख़ एक लम्बे समय तक भाजपा, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और विश्व हिन्दू परिषद् को ढोनी होगी. ज्ञात हो कि मस्जिद गिराए जाने के बाद देश के एक बड़े हिस्से में साम्प्रदायिक दंगे हुए थे, जिसमें हज़ारों मासूम जानें गयी थीं. जहां राम मंदिर के समर्थक हर साल इसे ‘शौर्य दिवस’ के रूप में मनाते रहे हैं, वहीं हर साल इस दिन बाबरी मस्जिद के समर्थक ‘काला दिन’ मनाते हैं और उसके पुनर्निर्माण के लिए सभाएं और प्रदर्शन करते रहे हैं.