अफ़रोज़ आलम साहिल, TwoCircles.net
वक़्फ़ के बारे में दीन और दुनिया दोनों ही ओर से एक बड़ा मज़बूत ख़्याल यह है कि अगर मुसलमानों की तक़दीर को बदलना हो तो वक़्फ़ के ‘ईमान’ को क़ायम कर दो. वक़्फ़ का ‘ईमान’ यानी वक़्फ़ का हक़…
देश भर में उत्तर से दक्षिण और पूरब से पश्चिम तक फैले ग़रीब-मज़लूम मुसलमानों की डूबती उम्मीदों को सहारा देने के लिए वक़्फ़ से बड़ी ताक़त कोई और नहीं, मगर सरकार जान-बुझकर वक़्फ़ को नस्त-नाबूद करने पर तुली हुई है.
वक़्फ़ के नाम पर इस मुल्क में जितने प्रोपर्टी हैं. उसके सही इस्तेमाल से एक पूरी क़ौम की कौन कहे, बल्कि पूरे मुल्क की तस्वीर बदल सकती है.
यह बात सरकार को भी अच्छी तरह से मालूम है, लेकिन बावजूद इसके देश की केन्द्र व राज्य सरकार दोनों ही वक़्फ़ में सुधार के नाम पर सिर्फ़ रस्मी योजनाओं का ऐलान करती हैं, जबकि ज़मीनी स्तर पर काम न के बराबर है.
वक़्फ़ प्रोपर्टी के कम्प्यूटराईजेशन से लेकर वक़्फ़ की प्रोपर्टी पर अवैध क़ब्ज़ों और वक़्फ़ के भीतर के अवैध क़ब्ज़ों को सुलझाने का आज तक कोई तंत्र विकसित नहीं किया गया. हालात यहां तक आ गए हैं कि बिल्डर लॉबी की निगाहें अब वक़्फ़ की जान के पीछे पड़ गई हैं.
इन सबके पीछे कहीं न कहीं हमारी सरकारें ज़िम्मेदार हैं. (चाहे वो मौजूदा मोदी सरकार हो या पूर्व की मनमोहन सरकार) क्योंकि वक़्फ़ बोर्डों के नाम जो बजट केन्द्र सरकार ने तय कर रखा है, वो सिर्फ़ कागज़ों की ही शोभा बढ़ाती नज़र आ रही हैं.
अल्पसंख्यक मंत्रालय से मिले दस्तावेज़ बताते हैं कि राज्यों के वक्फ़ बोर्डों को मज़बूत (Strengthening of the state Wakf Board) करने के लिए साल 2012-13 में 5 करोड़ का बजट रखा गया, रिलीज़ सिर्फ़ 10 लाख रूपये ही हुआ. लेकिन इस फंड में से एक भी रूपया खर्च नहीं किया गया.
साल 2013-14 में 7 करोड़ का बजट रखा गया, रिलीज़ 1.93 करोड़ रूपये किया गया और खर्च 1.91 करोड़ का हुआ.
साल 2014-15 में भी 7 करोड़ का बजट था. इस बार 4 करोड़ रूपये रिलीज़ किया गया और खर्च 3.95 करोड़ कर दिया गया. लेकिन साल 2015-16 में बजट 6.70 करोड़ कर दिया गया और जून 2015 तक के उपलब्ध आंकड़ें बताते हैं कि खर्च सिर्फ़ एक लाख रूपये ही किया जा सका है.
चिंता का विषय यह है कि साल 2016-17 के बजट से राज्यों के वक़्फ़ बोर्डों को मज़बूत करने की इस योजना का फंड ज़ीरो है. यानी मोदी सरकार को वक़्फ़ बोर्ड से अब कोई मतलब नहीं रह गया है.
इसी प्रकार दस्तावेज़ बताते हैं कि केन्द्र सरकार ‘सेन्ट्रल वक़्फ़ कौंसिल’ को लेकर भी कभी गंभीर नहीं रहा. साल 2012-13 में इस ‘सेन्ट्रल वक़्फ़ कौंसिल’ के लिए सिर्फ़ 3 लाख रूपये बजट रखा गया और तीन लाख रूपये रिलीज़ भी किया गया. लेकिन खर्च ज़ीरो ही रहा.
साल 2013-14 से लेकर 2015-16 तक की यही कहानी रही है. इस झंझट को हमेशा के लिए समाप्त करने के ख़ातिर इस बार के बजट में इस तीन लाख के बजट को भी बंद कर दिया गया.
कहानी यहीं ख़त्म नहीं होती. वक़्फ़ प्रोपर्टीज़ के कंप्यूटराईजेशन का काम भी सिर्फ़ कागज़ों पर ही होता नज़र आ रहा है.
दस्तावेज़ बताते हैं कि राज्य वक़्फ़ बोर्डों के अभिलेखों के कंप्यूटराईजेशन (Computerization of records of State Wakf Boards) के लिए साल 2009-10 में 10 करोड़ का फंड रखा गया और पूरे 10 करोड़ रूपये रिलीज़ भी किए गए. लेकिन खर्च 8.06 करोड़ ही किया जा सका.
साल 2010-11 में बजट बढ़ाकर 13 करोड़ कर दिया गया. लेकिन इस बार रिलीज़ सिर्फ़ 6 करोड़ रूपये और खर्च 3.63 करोड़ रूपये ही हुआ.
साल 2011-12 की कहानी थोड़ी अलग है. इस साल बजट को घटाकर 5 करोड़ कर दिया गया. इसमें भी रिलीज़ सिर्फ़ 2 करोड़ रूपये ही हो सका और इस 2 करोड़ रूपये को भी देश के तमाम राज्य खर्च नहीं कर सके. सिर्फ़ 62 लाख रूपये ही देश के तमाम राज्य मिल कर खर्च कर पाएं.
2012-13 में 5 करोड़ रूपये का बजट रखा गया, लेकिन रिलीज़ हुआ सिर्फ 1.65 करोड़ रूपये और इस पैसे को भी देश के तमाम राज्य खर्च नहीं कर सके. देश के तमाम राज्यों में इस मद में मात्र 89 लाख रुपये ही खर्च किया जा सका.
साल 2013-14 में इस योजना के बजट को घटाकर 3 करोड़ कर दिया गया. 3 करोड़ रूपये रिलीज़ भी किया गया और खर्च 2.98 करोड़ किया गया.
साल 2014-15 में स्थिति थोड़ी बेहतर नज़र आई. इस बार 3 करोड़ रूपये रिलीज़ किया गया और पूरा पैसा खर्च कर दिया गया.
साल 2015-16 में भी 3 करोड़ का फंड रिलीज़ किया गया है, लेकिन जून 2015 तक के उपलब्ध आंकड़ें बताते हैं कि एक पैसा भी खर्च नहीं किया गया है. हालांकि सरकार नए बजट में इस महत्वपूर्ण योजना को लेकर काफी गंभीर नज़र आ रही है. आंकड़े बताते हैं कि साल 2016-17 में इस काम के लिए 16.18 करोड़ का फंड तय किया गया है.
स्पष्ट रहे कि विश्व में वक़्फ़ प्रोपर्टीज़ की सबसे अधिक संख्या भारत में है. सरकारी आंकड़ों के मुताबिक़ 4.9 लाख पंजीकृत वक़्फ़ प्रोपर्टीज़ भारत में मौजूद हैं और इन प्रोपर्टीज़ से होने वाली वर्तमान आय लगभग 163 करोड़ रुपये है. हालांकि ये सरकारी आंकड़ें हैं, असल संख्या व कमाई इससे कई गुणा अधिक है.
यह बात पूरा देश जानता है कि रेलवे और डिफेंस के बाद सबसे ज्यादा ज़मीन वक़्फ़ के पास है. लेकिन ज्यादातर प्रॉपर्टी विवादों में घिरी हुई हैं. हक़ीक़त तो यह है कि आज देश में वक़्फ़ की 70 फीसदी प्रॉपर्टी अतिक्रमण का शिकार हैं. ये सब या तो वक़्फ़ बोर्ड सदस्यों की मेहरबानी से है या फिर सरकारी महकमों की अनदेखी से संभव हो पाया है.
खैर, सरकारी आंकड़ों के मुताबिक़ समूचे भारत में वक़्फ़ प्रोपर्टीज़ के अंतर्गत क़रीब 6 लाख एकड़ क्षेत्रफल आता है, जिसका बाजार मूल्य लगभग 1.20 लाख करोड़ रुपये है. इनमें से अधिकांश प्रोपर्टी प्रमुख स्थानों पर है और इनसे पर्याप्त आय होने की क्षमता है, जिसे मुस्लिम समुदाय के वंचित वर्गों के सामाजिक-आर्थिक विकास के लिए उपयोग किया जा सकता है.
हालांकि सच्चर समिति ने भारत में बचे हुए प्रोपर्टी के संख्या से यह अनुमान लगाया था कि यदि ऐसी प्रोपर्टीज़ का समुचित रूप से विकास किया जाए तो इससे 10 प्रतिशत का न्यूनतम लाभ प्राप्त होगा, जो प्रतिवर्ष 12 हज़ार करोड़ रुपये की आय अर्जित करने में समर्थ होगा.
हम आपको बताते चलें कि इन आंकड़ों से अलग हक़ीक़त यह है कि भारत में वक़्फ़ प्रोपर्टीज़ में बदस्तूर घोटाला जारी है. और सच तो यह है कि वक़्फ़ का यह घोटाला विश्व का सबसे बड़ा घोटाला है.
फ़रार शराब कारोबारी विजय माल्या पर भी यूपी वक़्फ़ को ठगकर ले जाने के आरोप लगे हैं. शिया सेंट्रल वक़्फ़ बोर्ड के चेयरमैन वसीम रिज़वी के मुताबिक़ माल्या ने 2015 में मेरठ में वक़्फ़ सम्पत्ति पर बनी अपनी शराब फैक्ट्री की ज़मीन को फ़र्ज़ी तरीक़े से अफ्रीकी कंपनी सैब मिलर इंडिया लिमिटेड को बेच दिया है.
मध्य प्रदेश में भी विधायक आरिफ़ अक़ील द्वारा 500 करोड़ रूपये की वक़्फ़ संपत्ति कथित रूप से हड़पने का मामला सामने आया है. इस मामले खुद अल्पसंख्यक मामलों की केन्द्रीय मंत्री नजमा हेपतुल्ला ने इस विधायक का चेहरा ‘‘काला’’ करने का सुझाव दिया है.
दो दिन पूर्व मंत्री ने यह कहा कि ‘‘कुछ बोर्ड सदस्यों’’ ने विभिन्न राज्यों में बोर्ड की संपत्ति पर अतिक्रमण कर लिया है.
मंत्री ने एक सम्मेलन में वहां मौजूद लोगों से यह भी पूछा कि -‘आपमें से कितने लोगों ने वक़्फ़ के लिए धरना दिया? कितनों ने प्रदर्शन किया? ये संपत्ति हमारी धरोहर है. अतिक्रमण के खिलाफ़ आप लोगों को एकत्रित क्यों नहीं करते? उनका चेहरा जनता के सामने काला किया जाना चाहिए.’
उधर उत्तर प्रदेश के हुसैनाबाद ट्रस्ट में जारी भ्रष्टाचार और अवैध निर्माण के मुद्दे पर सख्त रुख अपनाते हुए मौलाना कल्बे जव्वाद नक़वी ने कहा कि –‘वक़्फ़ में लूट मची है. इतनी लूट अंग्रेजों ने गदर में भी नहीं की होगी, जितनी सपा सरकार और प्रशासन ने मचाई है.’
आगे उन्होंने कहा कि –‘अगर क़ौम के लोग एकजुट नहीं होंगे, तो यूं ही लूट जारी रहेगी.’
दरअसल, वक़्फ़ का मामला दिनों-दिन गंभीर बनता जा रहा है, लेकिन शायद हमें इससे कोई मतलब नहीं है.
सच तो यही है कि सिर्फ़ सरकार ही नहीं, वक़्फ़ बोर्डों के कर्ता-धर्ता भी बराबर के ज़िम्मेदार हैं. दरअसल, वक़्फ़ एक ऐसी मलाई वाली प्रोपर्टी है, जिस पर क़ाबिज़ होने के बाद लोगों की आंखों में पट्टी बंध जाती है. इसके बाद उन्हें लाचार व मज़लूम मुसलमान आबादी का दुख-दर्द दिखाई नहीं पड़ता है, जिसकी ज़िन्दगी में खुशहाली लाने के लिए इस वक़्फ़ की जायदाद का वरदान की तरह इस्तेमाल किया जा सकता है. ज़रूरत समय रहते जागने की और आम आदमी के आह की क़ीमत पर राजनीति चमकाने के धंधे को बंद करने की है.
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