TwoCircles.net Staff Reporter
दिल्ली : उत्तर प्रदेश के लखनऊ में अपने पुराने पेंशन व अन्य मांगों को लेकर प्रदर्शन कर रहे शिक्षकों पर पुलिस द्वारा किए गए लाठीचार्ज के बाद अब यही कहानी बिहार के भागलपुर में दोहराई गई है. इस कहानी में फर्क़ सिर्फ़ इतना है कि यहां पुलिसिया दमन का शिकार शिक्षक नहीं बल्कि भूमिहीन दलित हुए हैं.
बताते चलें कि ये गरीब दलित पिछले चार दिनों से पर्चे के आधार पर ज़मीन पर क़ब्ज़ा दिलाने, भूमि सुधार आयोग की सिफारिशें लागू कराने और भूमिहीनों को आवास भूमि उपलब्ध कराने जैसी मूलभूत मांगो को लेकर सैकड़ों की संख्या में गरीब दलित-महादलित परिवारों के लोग भागलपुर जिलाधिकारी कार्यालय के समक्ष अनशन पर बैठे थे. बिहार पुलिस ने गुरूवार को अचानक इन पर लाठीचार्ज कर दिया. इसके बाद मची भगदड़ से लोग गेट में फंस गए. इस घटना में दर्जनों लोग गंभीर रूप से घायल हुए हैं. घायलों को मायागंज अस्पताल में भर्ती कराया गया है.
इस घटना के बाद पुलिस के इस लाठीचार्ज को लेकर पूरे बिहार में धरना-प्रदर्शन शुरू हो गए हैं. शुक्रवार को भागलपुर स्टेशन चौक पर न्याय मंच, नौजवान संघर्ष सभा, प्रगतिशील छात्र संगठन सहित शहर के छात्र-नौजवानों, बुद्धिजीवियों व सामाजिक कार्यकर्ताओं ने प्रतिवाद प्रदर्शन और मुख्यमंत्री का पुतला दहन किया. बिहार के अन्य ज़िलों से भी ऐसी कई ख़बरें आ रही हैं.
आज एक प्रेस विज्ञप्ति के ज़रिए भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी ने इस बर्बर लाठीचार्य की घोर निन्दा और इसके लिए दोषी पुलिस अधिकारियों को दंडित करने की मांग की है.
अपने प्रेस बयान में भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के बिहार राज्य सचिव सत्य नारायण सिंह ने कहा है कि बाढ़ एवं कटाव पीड़ित एवं बेदखल पर्चाधारी भूमिहीन दलित बेदख़ल एवं तीन डिसमिल ज़मीन की मांग को लेकर 5 दिसम्बर से ही भागलपुर समाहरणालय पर धरना दे रहे थे. तीन दिनों तक जारी शांतिपूर्ण धरना के दरम्यान जब ज़िलाधिकारी ने इसकी कोई नोटिस नहीं ली तो 8 दिसम्बर को धरनार्थियों ने भागलपुर समाहरणालय के प्रांगण में अपनी मांगों को लेकर जब नारेबाजी करने लगे तो समाहरणालय की सुरक्षा में लगी पुलिस ने उन पर बर्बर लाठीचार्य कर दिया जिसमें लगभग डेढ़ दर्जन धरनार्थी घायल हो गए. पुलिसकर्मियों ने महिलाओं को भी नहीं बख्शा. छः दलित महिलाएं बुरी तरह से घायल हो गयीं लाठीचार्य के दौरान कुछ महिलाएं अर्द्धनग्न हो गयी, फिर भी पुरूष पुलिसकर्मी उनको पीटते रहे.
वहीं लखनऊ का सामाजिक-राजनीतिक संगठन रिहाई मंच ने भूमिहीन दलितों व महादलितों के धरने पर हुए पुलिसिया हमले के लिए नितीश सरकार को जिम्मेदार ठहराया है.
मंच ने कहा कि इस घटना की आड़ में आंदोलनरत नेताओं का सरकार द्वारा दमन तत्काल बंद किया जाए और भूमि के वाजिब सवाल को प्राथमिक रूप से हल किया जाए तथा दोषी ज़िला अधिकारी व पुलिस अधिकारियों को बरर्खास्त किया जाए.
‘भागलपुर- राष्ट्रीय शर्म के 25 साल’ के लेखक और रिहाई मंच नेता शरद जायसवाल ने कहा कि ज़मीन के सवाल को लेकर निरीह भूमिहीन जनता पर जो पुलिसिया दमन भागलपुर में हुआ है, वह नितीश कुमार के सामाजिक न्याय की प्रतिबद्धता को ‘नंगा’ कर देता है. जिस तरह से बुजुर्ग महिलाओं और बच्चों पर लाठी चार्ज किया गया, वह साफ़ करता है कि नितीश सरकार ज़मीन के सवाल को हल करने से ज्यादा सवाल को दबाने में सक्रिय है.
उन्होंने सरकार से सवाल किया कि भूमिहीन दलितों के के आवास की गारंटी, भूमिहीनों को जो दशकों पहले परचा दिया गया था- उस पर क़ब्ज़ा दिलाने की मांग तथा सरकारी व भूदान की ज़मीनों से दबंगों व सामंतों के क़ब्ज़े से मुक्त कराने की मांग समेत डीडी बंदोपाध्याय आयोग की सिफारिशों को लागू कराने की मांग अगर आज बिहार का दलित, महादलित कर रहा है तो नितीश कुमार की एक दशक से अधिक समय से बिहार पर क़ाबिज़ सरकार क्या कर रही थी? उन्हें अब तक क़ब्ज़े क्यों नहीं दिए गए?
रिहाई मंच महासचिव राजीव यादव ने कहा कि पिछले दिनों बिहार दौरे के वक्त भागलपुर में दर्जनों दलित परिवारों से मुलाक़ात हुई जो साठ के दशक का परचा दिखा कर बता रहे थे कि उनको ज़मीन पर वास्तविक मालिकाना हक़ आज तक नहीं मिला. ऐसे में सवाल उठता है कि पिछले दो दशकों से अधिक समय से बिहार पर क़ाबिज़ और अपने को सामाजिक न्याय का अलम-बरदार कहने वाले लालू-नीतीश ने उनसे वोट लेने के अलावा उन्हें क्या दिया?
उन्होंने कहा कि पूरी देश-दुनिया में पलायन के लिए जाना जाने वाला बिहार के भागलपुर में दलित मॉ-बहनों पर हुए लाठी चार्ज ने साबित किया कि इन वंचित तबकों के लिए बिहार में कुछ नहीं है. पलायन ही उनकी जीवन-गाथा है.