आस मोहम्मद कैफ़, TwoCircles.net
मुज़फ्फरनगर : बीते शुक्रवार की शाम शहर के नावेल्टी चौक पर एक बहुत तंग जगह में बनी चाय की दुकान पर सरकारी अमला, जिसमें डीएम और एसएसपी भी शामिल हैं, दनादन और सायरन देती हुई गाड़ियों की भीड़ के साथ पहुंचता है, इतनी ‘ताकत’ डराती है, चौंकाती है और सवाल खड़ा करती है. जिले के सबसे बड़े अधिकारी यानी डीएम गाडी से उतरते हैं और चाय की दुकान के मालिक अब्दुल हक़ को सलाम करते हैं और गले से लगा लेते हैं. उनके साथ एसएसपी, एसडीएम, सीओ, शहर कोतवाल सहित लगभग सभी बड़े अफसर भी होते हैं.
अब्दुल हक़ की आंखें गीली हो जाती हैं. हक साहब एक गुमनाम शायर हैं, जिनके शागिर्द बड़े नाम वाले हैं. यह अफसरों की जमात उनकी एक चाहत को पूरा करने उनके पास पहुंची है. इस चाहत का ज़िक्र अब्दुल हक़ ने कुछ माह पहले यहां नौचन्दी मैदान में आयोजित एक मुशायरे में किया था. वहां निजामत कर रहे अब्दुल हक़ (जिनका उपनाम सहर है) ने कहा कि क्या यह मुमकिन है कि डीएम मुज़फ्फरनगर मुझ गरीब के यहां चाय पीने आ जाएं.
डीएम मुजफ्फरनगर दिनेश कुमार सिंह इसे दिल पर ले गए. तभी आचार संहिता लग गयी मगर कलेक्टर साहब ने इसे याद रखा. शुक्रवार की शाम डीएम खुद तो पहुंचे ही अपने साथ एसएसपी समेत तमाम बड़े अफसरों को भी ले गए. जाहिर है कि अब्दुल हक़ की आंखें छलक पड़ीं. वो बताते हैं, ‘अब मामला बीते देर हो गया है लेकिन नजारा अब भी आंखों में है. जब घर पर इस बारे में पता चला तो बीवी ने पहली बार माना कि मैं भी कुछ हूं.
अब्दुल हक़ ‘सहर’ कभी स्कूल नही गए मगर वो उर्दू जानते हैं. हमारे वहां मौजूद रहते सूफी अब्दुल शमी साहब बैठे जो उनसे इस्लाह कराने आए हैं. अब्दुल शमी बताते हैं कि ‘सहर’ शायरी के मेराज है और उनके 50 से ज्यादा शागिर्द मक़बूलियत के शिखर पर हैं, जिनमे सुनील उत्सव, आबिद अरमान, शबनम दुर्रानी, प्रकाश सुना और सुशीला शर्मा जैसे बड़े नाम हैं.
अब्दुल हक़ खुद तो कभी स्कूल नही गये मगर उनके बेटे नावेद अख्तर ने वाणिज्य जैसे विषय में पीएचडी की है. एक और बेटा इंजीनियर है और बेटी ने एमए किया है. चाय की यह दुकान 75 साल पुरानी है. उनकी इस दुकान पर बशीर बद्र, राहत इंदौरी और मुनव्वर राणा जैसे शायर भी पहुंचे हैं. हाल ही में उनकी एक किताब भी प्रकाशित हुई है. मिर्जा शाहिद नूरी को वो अपना उस्ताद मानते हैं, वैसे शायरी का हुनर खानदानी है. ‘सहर’ कहते है कि अब यह उन्होंने शागिर्दी में दे दिया है. अब्दुल हक 60 के हैं और उनकी सादगी और ईमानदारी पर सब फ़िदा हैं. वो लिखते हैं
जो अपना घर बहाव के रुख पर बनाएंगे
सैलाब की चपेट में वो लोग आएंगे