बनारस : जहां संघ भी भाजपा का साथ छोड़ रहा है

सिद्धांत मोहन, TwoCircles.net

वाराणसी : ‘अरे मारिए महाराज, कौन जाएगा प्रचार करने. जिसके लिए साला हम लोग जान लगा देते, उसको बैठा दिए. अब ऐसा हिस्ट्रीशीटर को प्रत्याशी बना देंगे तो हम लोग कहां से काम करेंगे’, संघ के पदाधिकारी नाम न प्रकाशित करने की शर्त पर ऐसा बताते हैं. उनका यह कहना है वाराणसी के कैंट से प्रत्याशी बनाए गए सौरभ शास्त्री के बारे में, जिन पर लूट, घोटाले और छेड़खानी तक के मामले चल रहे हैं.


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बनारस में भाजपा के टिकट बंटवारे को लेकर उठा बवाल थमता दिखाई नहीं दे रहा है. केशव प्रसाद मौर्या और ओम माथुर बनारस के साथ-साथ इलाहाबाद का कई दौरा कर चुके हैं, उन्होंने कार्यकर्ताओं को मनाने की कोशिश भी की है, लेकिन पार्टी की स्थिति यह है कि कोई भी कार्यकर्ता जनसंपर्क करने के लिए तैयार नहीं है. गुस्सा है कि थमने का नाम नहीं ले रहा है, और लोग हैं कि पोलिंग एजेंट बनने को तैयार नहीं हैं.

संघ के वही बेनामी और लोकल पदाधिकारी बताते हैं, ‘जब तक प्रत्याशी नहीं घोषित हुए थे, मुझे 17 वार्डों का जिम्मा दिया गया था. इन सभी 17 वार्डों पर मुझे जनसंपर्क करवाना था, बूथ-इंचार्ज की नियुक्ति करनी थी और पोलिंग एजेंट की भी नियुक्ति करनी थी. लेकिन इन्होने दादा(श्यामदेव राय चौधरी) का टिकट काट दिया. हम लोग दादा को अपने बचपन से देखते आ रहे हैं. हम लोगों के लिए उन्होंने इतना काम किया है, उनकी जगह नीलकंठ तिवारी को टिकट दे दिया है. ऐसे आदमी के लिए वोट मांगने या बूथ-वार्ड मैनेज करने का मन नहीं कर रहा है.’

वे आगे कहते हैं, ‘भाई साब, हम जा ही नहीं रहे हैं. एक दिन वार्ड में निकले तो सब हमही से सवाल कर दिए, जवाब का देते? इसलिए अब काम ही छोड़ दिए हैं. लग रहा है कि भाजपा को भी कांग्रेस की तरह हारने के बाद ही बुद्धि आएगी.’

हालांकि यह बात भी ज़रूरी है कि भाजपा के टिकट के बंटवारे के कारण राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ में भी दोफाड़ साफ़ है. एक तरफ जहां संगठन के पदाधिकारी वार्ड और मोहल्लों में जाकर जनसंपर्क करने की जहमत नहीं उठाना चाह रहे हैं, वहीं कुछ कार्यवाह और प्रचारक टिकट के जुगाड़ में लगे हुए थे. शहर उत्तरी से रवीन्द्र जायसवाल को टिकट देना इसी बात की ओर इशारा है.

रवीन्द्र जायसवाल पिछले विधानसभा चुनाव में मात्र 1700 वोटों से जीत पाए थे और उनके क्षेत्र में उनकी छवि भी अच्छी नहीं है. टिकट बंटने के पहले रवीन्द्र जायसवाल का टिकट कटना तय माना जा रहा था क्योंकि उनकी हार भी लगभग तय मानी जा रही थी. लेकिन उन्हें टिकट दोबारा मिल गया. ऐसे में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़े लोग खुलासा करते हैं कि रवीन्द्र जायसवाल के बड़े भाई वीरेन्द्र जायसवाल प्रांत प्रचारक हैं, और उनकी ही लॉबिंग पर रवीन्द्र जायसवाल दोबारा टिकट हासिल कर सके हैं. संघ के लोग यह भी कहते हैं, ‘इनको टिकट तब मिला है जब इनके भाई इनके लिए बैटिंग किए. वरना मान लीजिए कि इनका टिकट कटना तय था. अब टिकट नहीं कटा तो यह भी जान लीजिए कि इनका हारना भी तय है.’
संघ से जुड़े एक और कार्यकर्ता रामजनम मिश्रा जिस इलाके में रहते हैं, वह शहर दक्षिणी विधानसभा सीट में आता है.

रामजनम मिश्रा दो चुनावों से भाजपा के लिए काम करते रहे, इसलिए नहीं कि उन्हें पैसा मिलता था बल्कि तत्कालीन विधायक और प्रत्याशी दादा लोगों के और उनके अक्सर काम आए थे. लेकिन इस बार रामजनम मिश्रा जनसंपर्क कार्यक्रमों में नहीं जा रहे हैं. एक बेहद अनौपचारिक बातचीत में उन्होंने बताया, ‘संगठन का अधिवेशन था तो हम लोगों पर बहुत दबाव डाला गया था कि प्रचार करो. अभी संस्कृति महोत्सव में भी लोग आए थे तो हम लोगों को प्रोत्साहित करने की कोशिश की जा रही थी. टिकट बांटने के पहले तो नहीं, लेकिन बाद में जब बवाल होने लगा और कार्यकर्ता लोग बैठ गए तो इलाहाबाद या लखनऊ में बुला-बुलाकर बोला गया कि प्रचार करो, लेकिन हम लोग नहीं कर रहे हैं.’

रामजनम आगे बताते हैं, ‘इसमें कोई झोल नहीं है. एकदम सीधी बात है. संगठन या पार्टी से ऊपर है प्रत्याशी. जो काम किया कराया उसके लिए लोग जुट भी जाएंगे. लेकिन जिसका मुंह आज तक नहीं देखे, या जो सिर्फ फोटो-खेंचवा की तरह काम करे, उसके साथ जनता क्या कार्यकर्ता भी नहीं खड़े होंगे.’

बनारस में मचे बवाल के बाद ऐसी आशा जतायी जा रही थी कि भाजपा कुछ टिकटों में फेरबदल कर सकती है, लेकिन केशव प्रसाद मौर्या और ओम माथुर ने स्पष्ट कर दिया है कि कोई भी टिकट बदले नहीं जाएंगे. क्योंकि एक सीट पर भी टिकट बदलने से पूरे प्रदेश में टिकट बदलने की मांग उठने लगेगी. ऐसे में देखें तो बनारस और इलाहाबाद में मचा हुआ बवाल सिर्फ पार्टी का बवाल नहीं है, अब पार्टी का पैतृक संगठन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की भी नाराज़गी यहां साफ़ ज़ाहिर हो रही है, जिसका खामियाज़ा भाजपा को ख़राब प्रचार के तौर पर भुगतना होगा.

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