काली पट्टी पर दो हिस्सों में बंट गया मुसलमान

आस मुहम्मद कैफ़, TwoCircles.net


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नई दिल्ली/मुज़फ़्फ़रनगर : बल्लभगढ़ में हुई जुनैद की दिल दहला देने वाली हत्या के बाद कुछ उत्साही नौजवानों के ज़रिए काली पट्टी बांधकर विरोध दर्ज कराने का अभियान आज ‘किंतु परंतु’ में उलझ कर रह गया. देर रात उलेमाओं ने इसको गैर-शरई क़रार दे दिया था, जिसके बाद सोशल मीडिया पर सक्रिय कुछ युवाओं को छोड़कर इसका व्या्पक प्रचार नहीं हो सका.

सबसे निराशाजनक ख़बर दिल्ली जामा मस्जिद से आई, जहां कुछ मुस्लिम युवा काली पट्टी बांधकर नमाज़ पढ़ने पहुंचे. यहां मीम नाम की एक सामाजिक संस्था चलाने वाले नावेद चौधरी ने पुलिस पर काली पट्टी होने के कारण ‘डिटेन’ करने की बात कही.

नावेद अपने कई साथियों के साथ हाथ पर काली पट्टी बांधकर मासूम जुनैद की हत्या पर ‘हेट क्राइम’ के विरुद्ध अपना विरोध दर्ज कराना चाहते थे, मगर यह कुचल दिया गया.

नावेद के मुताबिक़ ऐसा शाही इमाम के इशारे पर हुआ, वरना जामा मस्जिद में ऐसा करने की पुलिस की हिम्मत नहीं.

यह एक बानगी थी. ईद के लिए कपड़े खरीदकर ला रहे 16 साल के नौजवान जुनैद की रेल में चाकू से गोदकर हत्या के बाद मुस्लिम समुदाय बेहद गुस्से में है.

मशहूर शायर इमरान प्रतापगढ़ी की मुहिम के बाद लाखों मुस्लिम नौजवानों ने ईद पर अपना स्टैंड साफ़ कर दिया था कि वो जुनैद के दर्दनाक क़त्ल और मज़हबी भेदभाव के तौर पर हो रही हिंसा के विरोध में अपना नाम दर्ज कराएंगे और खुद के ज़िन्दा होने का सबूत देंगे.

इसकी तैयारी बड़े स्तर पर की गयी थी, मगर देर शाम उलेमाओं ने इसे गैर-शरई बताकर रोक लगा दी. 

एक नौजवान फिरोज़ अली ने बताया कि वो भी काली पट्टी बांधकर विरोध प्रदर्शन करना चाहते थे और ‘मोब लिचिंग’ को लेकर उनके दिल में गुस्सा है. इसके लिए यहां कई युवाओं ने सहमति जताई थी, मगर देर रात उलेमा हज़रात ने इसे गैर शरई क़रार दे दिया.

बिजनौर में विरोध-प्रदर्शन का नेतृत्व करने वाले सैफ़ जाफ़री के मुताबिक़, इस पुरे अभियान को नौजवानों ने बिना नेतृत्व के अपने दम पर कामयाब किया है. इससे कथित धार्मिक और राजनीतिक नेतागणों की नींव हिल गयी है. इसलिए उन्होंने विरोध कमजोर करने का काम किया.

मेरठ की सामाजिक संस्था युवा सेवा समिति के बदर अली के आह्वान के बाद यहां भी मुसलमान युवाओं ने काली पट्टी बांधकर अपना विरोध दर्ज कराया. सहरानपुर में मोनीश अंसारी और मुरादाबाद में अब्दुल समद ने विरोध प्रदर्शन की कमान संभाली. देश के कई हिस्से में एसआईओ ने भी विरोध-प्रदर्शन किया. काली पट्टी बांधकर एहतेजाज करने वालों में सिर्फ युवा ही शामिल रहें.

हालांकि युवाओं को इस बात का गुस्सा है कि जुनैद की रेल में हुई चाक़ू से गोदकर हुई हत्या के बाद एक तरफ़ जहां देश के अल्पसंख्यको में भय का माहौल है, वहां इस विरोध में मुसलमान एक राय नहीं हो पाया.

दरअसल इस अभियान का प्रचार-प्रसार सोशल मीडिया के ज़रिए हुआ. पहल इमरान प्रतापगढ़ी ने की, हालांकि इसके क्रेडिट लेने को लेकर कई लोगों के अपने दावे हैं.

देर रात मुज़फ्फ़रनगर जमीयत उलेमा हिन्द के प्रवक्ता व सचिव मौलाना मूसा क़ासमी ने सबसे पहले इस अभियान को गैर-शरई बताकर काली पट्टी बांधकर नमाज़ पढ़ने को ग़लत बता दिया. हमारे साथ बातचीत में वो कहते हैं, ‘उलेमाओं ने दीन की रौशनी में इसे ग़लत क़रार दिया. जुनैद का क़त्ल बेहद दिल दहलाने है. आप कल्पना कर सकते हैं कि उनकी माँ पर क्या गुज़र रही होगी. मगर ईद की ख़ुशी एक अलग चीज़ है, किसी और दिन इसका विरोध किया जा सकता है.’

इस बीच ख़बर है कि जुनैद हत्याकांड के विरोध में जमीयत उलेमा हिन्द के राष्ट्रीय महासचिव मौलाना महमूद मदनी ने अपना ‘ईद मिलन’ प्रोग्राम कैंसिल कर दिया है.

उन्होंने कहा कि, इस माहौल में ईद मिलन का कोई मतलब नहीं रह जाता. इसके पहले उनके चाचा और जमीयत के सदर मौलाना अरशद मदनी ने देशभर बहुसंख्यक समुदाय से नज़दीकी बढ़ाने के लिए मुसलमानों को सलाह दी थी.

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