अंजली कुर्रे, TwoCircles.net के लिए
जांजगीर चांपा (छत्तीसगढ़) : “कभी सोचा नहीं था कि सरकारी नौकरी कर पाउंगी वो भी शादी के बाद” ये वाक्य हैं 38 वर्षीय सुमित्रा जयसवाल का, जो छत्तीसगढ़ के ज़िला जांजगीर चांपा विकास खंड डभरा ग्राम कंवालाझार की निवासी हैं.
सुमित्रा बताती हैं कि, हम चार बहन तीन भाई हैं. परिवार पढ़ा-लिखा है. मां-बाबूजी सिलाई-कढ़ाई का काम करके घर चलाते थें. मैं बारहवीं तक पढ़ी हूं. बचपन से सोचती थी कि मैं भी सिलाई-कढ़ाई जैसे काम करके ही जीवन गुज़ारुंगी.
22 साल की थी जब शादी हुई. ससुराल वाले भी शिक्षित हैं. वो शुरु से चाहते थें कि घर के कामों के साथ-साथ और भी कुछ करूं. विशेष रुप से सरकारी नौकरी के लिए हमेशा सुसराल वालों ने प्ररित किया. 2004 में जब मितानिन के पद के लिए आवदेन मांगे जा रहे थें तो सबने आवेदन करने के लिए प्रोत्साहित किया. मैंने आवेदन डाला और नियुक्त कर ली गई. 6 साल तक इस पद पर काम किया, फिर 2011 में मैं एमटी (मास्टर ट्रेनर) बनी. अब मितानीन मेरे नीचे कार्य करती हैं.
आपको बता दें कि मितानिन गर्भवती महिलाओं के पंजीयन, जांच व संस्थागत प्रसव कराने में सहयोग करती हैं. इसके अलावा कुपोषित बच्चों को पोषण पुर्नवास केंद्र भेजने, 0-5 साल के बच्चों का टिकाकरण के अलावा स्वास्थ्य विभाग के अन्य काम करती हैं. स्वास्थ्य विभाग की ओर से उन्हें वेतन भुगतान नहीं किया जाता, बल्कि प्रोत्साहन राशि दी जाती है.
अपनी दिनचर्या के बारे सुमित्रा कहती हैं, रोज़ सुबह 5 बजे उठकर घर के काम में लग जाती हूं. बच्चों को स्कूल भेजना, टिफिन तैयार करना आदि सब मेरे ज़िम्मे होता है. 11 बजे से मेरी बाहर की ज़िम्मेदारियां शुरू होती हैं. गांव-गांव जाती हूं, बैठक रखती हूं. बैठक के बारे गांव की महिलाओं को मितानिन पहले से ही सुचना दे देती हैं. मितानिन एवं गांव वाले एक साथ जमा होते हैं, फिर मितानिन ताली और प्रेरक गीत से कार्यक्रम शुरू करती हैं. VHSNC (ग्राम स्वास्थ्य स्वच्छता और पोषण समिति) के अंतर्गत चर्चा शुरू होती है. जैसे गांव वालों के स्वास्थ्य से संबंधित चर्चा, गांव गली की सफ़ाई, स्कूलों की, आंगनबाड़ी की स्थिति कैसी है? इत्यादि की चर्चा.
इन सभी कार्यो के लिए हमें कोई निर्धारित मासिक वेतन नहीं मिलता, बल्कि प्रतिदिन के 250 रुपए मिलते हैं. रविवार को छोड़कर पूरे महीने काम करते हैं और महीने में एक बार ब्लाक कोर्डिनेटर को रिपोर्ट देनी होती है.
ससुराल में कितने सदस्य हैं? पूछने पर सुमित्रा कहती हैं, कुल 14 सदस्य हैं. तीनों बहुओं में से सिर्फ़ मुझे दो बेटियां हैं. बाकी को दो- दो बेटे हैं. सास-ससुर कभी-कभी बोलते हैं कि मुझे भी एक बेटा हो जाए तो अच्छा होगा. बुढ़ापे का सहारा बनेगा, पर मैं और मेरे पति धनंजय दोनों बेटियों को ही अच्छी शिक्षा देकर आगे बढ़ाना चाहते हैं. पति कहते हैं कि बेटे की चाह में और बेटियां हो गई तो परिवार तो बढ़ेगा ही किसी को अच्छी शिक्षा और जीवनशैली नहीं मिल पाएगी. इसलिए दोनों बेटियों को ही क़ाबिल बनाना है. बड़ी बेटी प्रीति जयसवाल 14 वर्ष की है और पढ़-लिखकर आईपीएस बनना चाहती है. छोटी बेटी प्रिया जयसवाल 12 वर्ष की होने वाली है. वो कलेक्टर बनना चाहती है.
चाहती हूं कि मेरी बेटियां मुझ से भी आगे जाएं और ससुराल वालों ने जिस तरह मुझे आगे बढ़ने के लिए सहयोग किया, मेरी बेटियों को भी करें. मैं खुद जब सरकारी कामकाज की गतिविधियों को संभालती थी तो पहले मुझे झिझक होती थी. लेकिन सबने विश्वास दिलाया कि मैं ये कर सकती हूं.
बहू की सफलता के बारे सास-ससुर कहते हैं, हमारी तीन बहुओं में सुमित्रा समझदार और पढ़ी-लिखी है, इसलिए हमने उसे आगे बढ़ने से नहीं रोका. आज वो घर की ज़िम्मेदारी के साथ बाहर का काम भी संभालती है. लोग जब उसकी तारीफ़ करते हैं तो गर्व होता है. हमारी कोई बेटी नहीं जो ये सपना पूरा करती, पर सुमित्रा के कारण ऐसा संभव हो पाया है. वो जिस लगन से काम करती है, उसे देखकर पता चलता है कि बेटियों को यदि सहयोग दिया जाए तो हमेशा हमारा सिर उंचा करती हैं. अब हमारी दोनों पोतियां भी सुमित्रा की तरह बनें तो खानदान का नाम और आगे जाएगा.
पति धनंजय जयसवाल कहते हैं, नारी में बहुत क्षमता होती है पर ससुराल वाले उसे सहयोग न करें तो वो आगे बढ़ने की हिम्मत कैसे कर पाएगी.
ससुराल वालों की प्रतिक्रिया सुनकर सुमित्रा खुश नज़र आ रही थी. चेहरे पर चमक लिए कहने लगी, मैं भाग्यशाली हूं कि मुझे ऐसा सुसराल मिला. आजकल सुसराल में लड़कियों को प्रताड़ित करने और जलाने वाले परिवार तो बहुत मिल जाते हैं पर इस तरह सहयोग करने वाला ससुराल बहुत कम है. मैं हर सास-सुसर से विनती करती हूं कि वो बहू को बेटी समझ कर उसे प्यार और सहारा दें तो बहू भी आजीवन आपके सम्मान की रक्षा करेगी. क्या पता कल को वही आपके बुढ़ापे का सहारा बने. (चरखा फीचर्स)