हाथरस से ग्राऊंड रिपोर्ट : “ऊंची जाति के लोग अब हमसे बात नही करते, हम यहाँ से जाना चाहते हैं”

रियाज़ हाशमी, हाथरस से Twocircles.net के लिए
19 वर्षीय दलित लडकी से गैंगरेप के बहुचर्चित मामले में सवर्ण जाति के चारों आरोपियों के खिलाफ सेंट्रल ब्यूरो ऑफ इन्वेस्टिगेशन (सीबीआई) की ओर से कोर्ट में चार्जशीट दाखिल करने के बाद पीड़िता के गांव बूलगढ़ी की उदास और बेचैन फिजा में फिर से मीडिया, पुलिस और सियासी लोगों की सरगर्मी लौट आई है। सुर्खियों में बने रहने के करीब तीन माह बाद मीडिया के सवाल, पुलिस की कदमताल और नेताओं की चाल यहां की खामोशी में फिर से सुने जा सकते हैं। गैंगरेप की घटना को तीन महीने से अधिक और पीड़िता की मौत को दो माह 20 दिन बीत गए, लेकिन पीड़ित परिवार के जख्म नहीं भर पा रहे हैं। किसी न किसी बहाने ये ताजा रहते हैं। सरकार के वायदों का मरहम भी अभी तक नहीं पहुंच पाया है। सुरक्षा के तमाम तामझाम हैं, लेकिन पीड़ित परिवार अब गांव से पलायन को ही बेहतर मान रहा है।

इसकी वजह है यहां का सामाजिक तानाबाना, कुल 600 की आबादी वाले इस गांव के समाज में एक कुम्हार, एक नाई, चार वाल्मीकि और करीब साठ ब्राह्मण और बाकी ठाकुर परिवार हैं। घटना से पहले यहां के अधिकांश लोगों की जिंदगी खेतों तक सिमटी थी, गिनती के जो लोग दो ढाई सौ रुपये रोजाना दिहाड़ी पर शहर में काम करने जाते थे उनमें एक आरोपी भी है। चार वाल्मीकि परिवारों में से एक परिवार पीड़िता का है, जिनका घर गांव में घुसते ही दूसरे नंबर पर है। पहले नंबर पर मुख्य आरोपी ठाकुर संदीप सिंह का घर है। दोनों घरों के बीच में छह फुट की सड़क है। घटना के बाद से यह फासला अब काफी गहरा हो चुका है। पीड़िता का परिवार गांव छोड़कर जाना चाहता है। पीड़िता के भाई ने कहा, ‘आरोपियों के परिवार गांव के प्रभावशाली लोग हैं और गांव के बाकी तीन-चार दलित परिवार भी हमसे दूर रहना चाहते हैं। उच्च जाति के परिवारों ने हमसे घटना के बाद से बात नहीं की। चार्जशीट के बाद हालात और ज्यादा प्रतिकूल हो गए हैं।’ दो दिन से पीड़िता के पिता, भाई, मां और बुआ कभी मीडिया के सवालों का सामना तो कभी सुरक्षा में तैनात सीआरपीएफ की हिदायतों का पालन कर रहे हैं। आने वालों पर इंटेलीजेंस के लोगों की भी पैनी नजर है। एक टूटा हुआ सा घेर और इसके बराबर में दो कमरों का कच्चा घर, जहां हर आने वाले पर नाइट विजन सीसीटीवी कैमरों की निगरानी है। सीआरपीएफ रामपुर सेंटर के करीब 125 जवान घेर से लेकर घर के आंगन और छत तक पर अत्याधुनिक हथियारों के साथ 24 घंटे पीड़ित परिवार की सुरक्षा कर रहे हैं। ऐसे में असुरक्षा की भावना के पीछे कुछ दूसरा दर्द भी पीड़ित परिवार को साल रहा है, जो बातों बातों में उभर आता है।


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बातचीत के दौरान पीड़िता के एक भाई कहते हैं, ‘राज्य सरकार ने हमारे परिवार को 25 लाख रुपये, शहरी इलाके में एक आवास और एक सदस्य को सरकारी नौकरी देने का वादा किया था। खुद हमारे पिता से सीएम ने वीडियों कॉन्फ्रेंसिंग में इन्हें दोहराया था। 25 लाख रुपये की जो धनराशि हमें दी गई, उसी में एससी-एसटी एक्ट के तहत मिलने वाली साढ़े आठ लाख रुपये  की राशि को भी जोड़ दिया गया। नौकरी और आवास की बात अब कोई नहीं करता है। हमने डीएम को हटाने की मांग की, एसआईटी से शिकायत भी की, लेकिन वह यहीं जमे हैं।’ इसी बीच बिटिया की अस्थियों का विसर्जन नहीं करने की बात परिवार के सदस्यों की जबान पर आई तो इसका जवाब बिटिया के पिता ने दिया। वे बोले, ‘हम नहीं जानते कि ये अस्थियां हमारी बिटिया की हैं या नहीं? या फिर अस्थियों के नाम पर पुलिस प्रशासन ने हमें क्या दिया? ऐसे में हम इनका विसर्जन कैसे कर सकते हैं? प्रशासन ने हमसे बिटिया के अंतिम संस्कार का अधिकार ही छीन लिया।’ इतनी सुरक्षा के बावजूद असुरक्षा की भावना के सवाल का जवाब बिटिया की मां देती हैं, ‘पुलिस और प्रशासन आरोपी पक्ष से मिले हुए हैं। हमें राज्य सरकार पर भरोसा नहीं है। हम शुरू से मांग कर रहे हैं कि हमारा पूरा केस दिल्ली ट्रांसफर कर दिया जाए। सीबीआई ने चार्जशीट लगाई है, लेकिन यही विवेचना पुलिस कर रही होती तो इसमें अंतिम रिपोर्ट लगाई जाती।’ परिवार के सदस्य एक सुर में यह मांग करते हैं कि पूरे मामले में लीपापोती करने और कार्रवाई में देरी करने वाले पुलिस अफसरों के खिलाफ अब राज्य सरकार कार्रवाई में देरी नहीं करनी चाहिए।

सीबीआई ने पीड़िता के मरने से पहले के उस ब्यान को चार्जशीट का आधार बनाया है, जिसमें उसने गैंगरेप की बात कही थी. लेकिन उत्तर प्रदेश पुलिस ने दुष्कर्म की बात को भी अपनी थ्योरी में नकार दिया था। 14 सितंबर को दुष्कर्म का शिकार होने के बाद 30 सितंबर को दिल्ली के अस्पताल में उसकी मौत हुई थी। पीड़िता की वकील सीमा कुशवाहा भी कह चुकी हैं कि वह मामले को दिल्ली स्थानांतरित करने की मांग हाईकोर्ट से करेंगी। इस पूरे मामले की निगरानी हाईकोर्ट खुद कर रहा है। सीमा कहती हैं, ‘सूबे के अफसर लापरवाही के आरोपी हैं। हम चार्जशीट में उनको भी शामिल करने की मांग करेंगे। स्थानीय पुलिस प्रशासन की तरफ से गांव में पीड़िता के परिवार के लिए खतरा है।’

हालांकि पीड़ित परिवार की सुरक्षा में तैनात सीआरपीएफ की कंपनवी सुरक्षा व्यवस्था में कहीं कोई चूक नहीं बरत रही है। घेर और घर के प्रवेश द्वार पर मेटल डिटेक्टर और रेत के बोरों के पीछे सशस्त्र जवान हर समय सतर्क दिखते हैं। आसपास के रास्तों पर अब कंटीले तार लगा दिए गए हैं। घर के भीतर जाने के लिए थ्री लेयर सिक्योरिटी से गुजरना पड़ता है। छत पर मुस्तैद जवान अलग हैं। प्रवेश और निकास के लिए एक तंग रास्ता है। उधर, गांव में आरोपियों के परिजन खासे तनाव में हैं। इन्हें उम्मीद थी कि स्थानीय पुलिस प्रशासन की शुरूआती थ्योरी के आधार पर चारों आरोपियों के खिलाफ कोई अपराध नहीं बनेगी। लेकिन 3 महीने से जांच में सीबीआई ने किसी को बाहर नहीं किया। मुख्य आरोपी संदीप के दादा राकेश सिंह अपने घर के बाहर खाट पर बैठकर पीड़ित परिवार से मिलने आने वालों पर खामोशी से नजर रखते हैं। किसी से कुछ बोलते नहीं, लेकिन अगर कोई बात करता है तो काफी देर बाद जवाब देना शुरू करते हैं। राकेश सिंह मीडिया ट्रायल से काफी खफा हैं और कहते हैं, ‘हमारा तो सब खत्म हो गया। हमारे बच्चों को तो फांसी पर चढ़ाने का इंतजाम मीडिया वालों ने करा दिया। वो गांव की नहीं, हमारी बिटिया थी। कथित  घटना के बाद खुद चलकर गांव से गई थी, लेकिन मरी कैसे? अब तो किसी पर भरोसा नहीं। एक झूठ को इतनी बार बोला गया कि सबको सच लगने लगा।’ चार में से एक नाबालिग आरोपी के पिता तो बात करने पर रोने लगते हैं। कहते हैं, ‘तीन महीने से हमें अपने बच्चे से मिलने तक नहीं दिया गया।’ इस घटना के दो महीने बाद गांव का माहौल कुछ सामान्य हुआ था, लेकिन अब फिर से गांव के लोग इस मसले पर बात करने से कतराने लगे हैं। कोई भी किसी पक्ष की बात नही करना चाहता है।

पीड़िता के घर के पीछे से जाने वाली गली ब्राह्मणों के मोहल्ले में पहुंचती हैं। यहां महिलाएं आने जाने वालों को दरवाजों पर खड़ी होकर ताक रही हैं। सबके खामोश लबों पर कई सवाल हैं। एक बुजुर्ग महिला पूछती है, भैया सब कब तक ठीक होगा? मीडिया और पुलिस वाले यहां फिर आ गए हैं। हमारी तो खेतीबाड़ी का धंधा भी बंद सा हो गया है। मर्द खेत पर जाते हैं, जब तक लौटते नहीं, हमें तनाव रहता है कि पुलिस गांव में घुसने देगी या नहीं? एक महिला पूछती है, ‘बेटा बस तू यह बता कि रामू छूट जाएगा या नहीं? बेचारा ऊंचा सुनता है, बहुत सीधा है, बिलकुल गाय है गाय। इसका पाप पूरे गांव को लगेगा।’ चार आरोपियों में से एक रामू भी है, जो तीन बच्चों का पिता और डेयरी पर ड्यूटी करता है। शीतलहर के तीव्र होने और शाम ढलने तक पीड़िता के घर से सिक्योरिटी वाले मीडिया और दूसरे लोगों को हटाने लगते हैं। परिजन भी अब बात करना नहीं चाहते। महिलाएं  भी चूल्हे चौके में व्यस्त होने की कोशिश कर रही हैं। सीआरपीएफ के जवान भी मैस में खाना बनाने में जुट रहे हैं। पीड़िता की भाभी की गोद से नवजात बेटी चिपकी है। दूसरी चारपाई पर लेटी बोतल से दूध पी रही है और तीसरी मां के पीछे-पीछे रो रही है, जो घर की महिलाओं को ढांढस बंधा रही है। पीड़िता भी अपने घर की तीसरी बेटी थी, जिसकी कमी घर के हर कोने में नजर आती है लेकिन उसकी मौजूदगी के निशान बीत गए हैं। बाकी है तो बस वह क्लश जिसमें अस्थियां रखी हैं और जिन पर परिजनों को भी शक है कि ये बिटिया के हैं भी या नहीं?

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