शनिवार 23 मई को पीलीभीत पुलिस कप्तान अपने एक सिपाही को जांच के बाद निलबिंत कर दिया। इस सिपाही ने एक सप्ताह पूर्व पांच लोगों के विरुद्ध सब्ज़ी पर थूक लगाने की रिपोर्ट दर्ज करवाई थी। आला अधिकारियों की जांच में मामला झूठा पाया गया और सिपाही के विरुद्ध कार्रवाई हुई। एफ़आईआर भी रद्द कर दी गई।
आस मोहम्मद कैफ़।Twocircles .net
शहर कोतवाली इलाक़े के ‘तेज़ तर्रार’ माने जाने कांस्टेबल अंकित कुमार ने 15 मई को अपने ही तैनाती थाने में एक एफ़आईआर दर्ज करवाई थी। सिपाही अंकित ने थाने के राजिस्टर में अंकित करवाया कि वो दोपहर में लॉकडाऊन के दौरान गश्त पर था। इस दौरान जब वो शहर कोतवाली के शरीफ़ ख़ान चौराहे पर पहुंचा तो उसने देखा कि पांच लोग सब्ज़ी पर थूक लगा रहे थे। इसके बाद उसने अपनी ड्यूटी का पालन करते हुए इन्हें रोका और कहा कि वो मास्क क्यों नही लगाये हुए है ! साथ ही वो लॉकडाऊन का उल्लंघन कर रहे हैं! इसके बाद वो भाग गए। थाने में इनकी विरुद्ध रिपोर्ट दर्ज कर ली जाए।
अंकित की एफ़आईआर उसकी बात पर भरोसा करते हुए थाना प्रभारी श्रीकांत द्विवेदी ने दर्ज कर ली। जिन पांच लोगों के विरुद्ध यह एफ़आईआर दर्ज हुई उनके नाम वसीम,अज़मतीन, उवेश इनुदीन व क़ादिर शाह थे। सवाल था जब ये अंकित को देखकर भाग भाग गए तो अंकित को नाम कैसे पता चले ! अंकित ने एफ़आईआर की भाषा में लिखवाया कि पूछने पर इन लोगो ने अपने नाम ख़ुद बताए। इस ख़बर में संदेह था। लोगों को पुलिस की कहानी पर भरोसा नहीं हुआ।
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जैसे ही यह ख़बर बाहर आई तो पीलीभीत में ज़बरदस्त रोष फैल गया। अधिकारियों के फोन बजने लगे। लॉकडाऊन की स्थिति प्रभावित होने की संभावना बनने लगी। एक समुदाय के लोग नाराज़गी जताने लगें। माहौल गर्म होने लगा। शहर के दो थानों में से मुस्लिम बहुल शहर कोतवाली में अधिक हलचल हुई तो आनन फ़ानन में इलाक़े के ठेका चौकी इंचार्ज संजीव कुमार और सिपाही अंकित को लाइन हाज़िर कर दिया गया। थाना प्रभारी श्रीकांत द्विवेदी के ख़िलाफ़ जांच बैठा दी गई। डीएम वैभव श्रीवास्तव और एसपी अभिषेक दीक्षित दोनों के संज्ञान में मामला आने के बाद यह कार्रवाई हुई। एफआईआर को तुरंत रद्द कर दिया गया। कहानी में रोमांच था और रहस्य भी।
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इसके लिए हमने समाजवादी पार्टी के पूर्व मंत्री और इसी इलाके में रहने वाले हाजी रियाज़ अहमद से बात की उन्होंने कहानी से पर्दा उठाते हुए बताया, ‘जिन पांच लोगों को सब्ज के थूकने के इल्ज़ाम में नामज़द किया गया इनमें से एक ने भी अपनी ज़िंदगी में सब्जी़ नहीं बेची। जिस इलाके़ में यह थूकने की घटना घटित होना बताई गई। वहां कोई सब्ज़ी की दुकान ही नहीं है। जिन पांच लोगों को इकट्ठा मुक़दमे में नामज़द किया गया ये सब उस दिन आपस मे मिले ही नहीं। सारी कहानी फ़र्ज़ी थी। ख़ास समुदाय को बदनाम करने के लिए रची गई थी। हैरत यह है कि यह एफ़आईआर ख़ुद पुलिस के सिपाही दर्ज करवा दी। इंस्पेक्टर कोतवाली ने उसकी जांच नही की। न अपना विवेक लगाया। पुलिस कैसे इन लोगों का नाम जानती थी. ये भी रहस्य है। अब पोल खुल गई तो पुलिस के आला अधिकारी शर्मिंदगी महसूस कर रहे हैं।’
विरोध के बढ़ते स्वर के बीच एसपी पीलीभीत अभिषेक दीक्षित ने एफ़आईआर को तत्काल प्रभाव से रद्द कर दिया। सिपाही और चौकी इंचार्ज लाइन हाज़िर कर दिया गया। इंस्पेक्टर कोतवाली के विरुद्ध जांच के आदेश कर दिए गए। कप्तान ने स्वयं जांच कराई और शनिवार को सिपाही अंकित कुमार को इस मामले में दोषी मानते हुए निलंबित कर दिया। अंकित कुमार से बात करने की हमने भरसक कोशिश की,वो बात करने के लिए तैयार नही हुए। इंस्पेक्टर कोतवाली ने घटना के बारे में कुछ भी नही बताया।
सीओ पीलीभीत प्रवीण मलिक ने बताया कि दरोग़ा और सिपाही की लाइन हाज़िर होने की बात सही है। एफ़आइआर (स्पंज)रदद् कर दी गई है। ऐसा क्यों हुआ इसकी जांच चल रही है मगर वो इसके जांच अधिकारी नही है। एसपी ने अपने द्वारा जांच कराए जाने की बात मानी और बताया कि सिपाही को निलंबित किया जा रहा है। मुकदमा 147,148, 269, 270 के अंतर्गत दर्ज किया गया था। यह झूठा पाया गया इसे ख़त्म कर दिया गया है।
आरोपियों में एक उवेश के अनुसार वो इनमे सभी को जानते नहीं है।सारी कहानी फर्जी थी। थाने में बैठकर रच दी गई। वो सब्ज़ी नही बेचते। उस दिन शरीफ़ ख़ान चौराहे पर भी नही गए। पता नही पुलिस ने कैसे मुक़दमा लिख दिया!
हाजी रियाज़ अहमद कहते हैं, ‘बात यह है कि पुलिस ने पुलिस ने इनमें से कुछ लोगो को इससे पहले जुआ सट्टा में जेल भेजा था। नाम रिकॉर्ड में थे। थाने में बैठकर कहानी गढ़कर एफ़आईआर लिख दी गई। आजकल एक समुदाय के ख़िलाफ़ कार्रवाई गुड वर्क में आती है। मैंने इसके बाद अधिकारियों को अवगत कराया। यहां इस झूठे मुक़दमे से काफ़ी नाराज़गी हो गई थी। थूकने वाली बात साम्प्रदयिक सौहार्द प्रभावित कर सकती थी। यह सीधे सीधे एक क़ौम को बदनाम करने वाली बात थी। देश भर में ऐसी घटनाएं पुलिस जांच में झूठी साबित हुई है। यहां तो खुद पुलिस का ही सिपाही झूठी एफ़आईआर करा रहा था। निश्चित तौर पर यह उसका अकेले का षड्यंत्र नही हो सकता था। फिर दूध का दूध पानी का पानी हो गया। लेकिन पुलिस में ऐसी विचारधारा का होना गंभीर है।’
बरेली के सामाजिक कार्यकर्ता एडवोकेट अंजुम अली ने बताया यह मामला सिर्फ़ एक थाने का नही है। वो ऐसे कचहरी में ऐसे बहुत से मामले देख रहे हैं कि जिनमे पुलिस की कहानी मनगढ़ंत लगती है। सबसे ख़ास बात यह है कि इनमे एक वर्ग विशेष के लोग ज्यादा है। मुजफ्फरनगर के वरिष्ठ अधिवक्ता प्रमोद त्यागी और मेरठ के प्रभावशाली अधिवक्ता अनिल बख्शी इससे सहमत है़। वो कहते हैं सिर्फ़ एक पीलीभीत की कहानी ऐसी नही़ है। पुलिस ऐसे मामले बना रही है जो अदालत में एक मिनट नही ठहर सकते। ऐसे ज़्यादातर मामले झूठे हैं।
समाजवादी पार्टी के नेता और सुप्रीम कोर्ट के वकील फ़िरोज आफ़ताब भी कहते हैं उन्होंने भी बहुत से केसेस का अध्धयन किया है। ख़ासकर गौकशी के मामलों में बहुत झोल है। थूकने वाले मामला लगभग हर जगह झूठा साबित हुआ है। पुलिस बहुत कमज़ोर कहानी लिख रही है। चिंताजनक यह है कि ज़्यादातर मामले एक ही वर्ग विशेष के ख़िलाफ़ बनाये गए हैं जैसे उनका कोई पुरसाने हाल नही है। काँग्रेस के पश्चिमी उत्तर प्रदेश प्रभारी नेता पंकज मलिक कहते हैं कि सिर्फ एक जनपद और एक मामला ऐसा नही है। कई मामलों में पुलिस का पक्षपाती रोल सामने आया है।
पीलीभीत में तैनात रहे पूर्व डिप्टी एसपी जगतराम जोशी कहते हैं कि उन्होंने यहां बतौर सीओ सेवा दी है। जहां तक वो समझते हैं वहाँ लोग बिल्कुल भी साम्प्रदयिक नही है। पुलिस पर एक वर्ग विशेष के उत्पीड़न के आरोप सही नहीं हैं। हाल के दिनों में पुलिस ने अत्यधिक सम्मान अर्जित किया है। एक-दो मामले में चूक हो सकती है मगर कोई परसेप्शन नहीं बनाया जाना चाहिए। पीलीभीत की घटना दुर्भाग्यपूर्ण है। हाजी रियाज़ अहमद इसपर सहमति जताते हुए कहते हैं कि ख़ुद इस मामले में स्थानीय बहुसंख्यक आबादी ने पुलिस द्वारा फ़र्जी मामला बनाये जाने का विरोध किया। स
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