मुजफ्फरनगर के जुहैब क़ुरैशी की आईईएस में छठी रैंक,चौतरफा तारीफ

आसमोहम्मद कैफ। Twocircles.net

मुजफ्फरनगर के मशहूर मीनाक्षी चौक से जब आप शामली बस अड्डे की तरफ चलते हैं तो ऐतिहासिक शहीद चौक से लगभग 100 मीटर आगे यहां दूसरी सबसे लोकप्रिय जगह ‘बशीर ताहरी ‘ हैं। खालापार के इस खास पॉइंट के सामने एक कपड़े की दर्जनों दुकानों वाली गली के अंदर की एक और गली में एक सितारा जमकर चमक रहा है। स्मार्ट से दिखने वाले यहां जुहैब कुरैशी के चेहरा गहरा संतोष और जबरदस्त तेज़ लिए हुआ है। जुहैब के घर मे जश्न का माहौल है उनकी अम्मी शाहीन बात बात करते भूल जाती है कि वो क्या कह रही थी ! पिता इरशाद बात कम करते हैं और आंखे ज्यादा गीली करते हैं ! इसकी वजह इंजीनियरिंग की सबसे बड़ी सेवा आईईएस में इस घर के लड़के का छठी रैंक लाना है।


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पूरे घर मे जश्न का माहौल है। इत्तेफाक से वो मुजफ्फरनगर के जिस मौहल्ले में रहते हैं उसका नाम खालापार है और मीडिया ने इस इलाके की बेहद खराब छवि बना दी है। एक खास समूह की धारणा है कि इस इलाके में अपराधियों का जमावड़ा है। यह बेहद सवेंदनशील इलाका है,जबकि यहां देखकर ऐसा नही लगता। जुहैब की कामयाबी से पूरा मोहल्ला खुश है। गली के बाहर खड़े राशिद खान अपने भतीजे को जुहैब जैसा बनने के लिए प्रेरणा दे रहे हैं। जुहैब की अम्मी शाहीन के लिए रमजान के पहले दिन ही ईद हो गई है। जुहैब के भाई जुनैद अंग्रेजी में बात करते हैं और यह बताने की कोशिश करते हैं कि उनके अम्मी अब्बू ने उनकी परवरिश अलग तरीके से की है।

जुहैब की अम्मी शाहीन के बेटे ने ऊंची उड़ान उड़ ली है

जुहैब क़ुरैशी के पिता कबाड़ के कारोबार से जुड़े है। यहां आसपास के अधिकतर क़ुरैशी गोश्त का व्यापार करते हैं और इनमे बहुत अधिक पैसे वाले भी है मगर जुहैब जैसा रुतबा अब किसी का नही दिखता। उन्हें लगातार मुबारकबाद मिल रही है । जुहैब से मिलने गए स्थानीय दिलशाद पहलवान जिंदादिली के साथ कहते हैं कि कामयाबी तो इसे कहते हैं,लड़का सितारा बन गया है। वो चुपचाप पढ़ता रहा और एक रिजल्ट ने शोर मचा दिया।

जुहैब ने जिस आईईएस की परीक्षा में छठी रैंक हासिल की है उसमें लगभग 10 लाख परीक्षार्थियों ने शिरकत की थी और वो चयनित( मैकेनिकल) 41प्रतिभागियों में से है। हाल के दिनों में मुजफ्फरनगर और बिजनोर से भारत की शीर्ष सेवाओं में कुछ बेहद सुखद परिणाम आये हैं। जैसे बिजनोर के शाद मियां खान 2018 में सिविल सेवा 25 वी रैंक पर आए थे तो नगीना के जुनैद आईएएस में तीसरी रैंक पाए थे। हाल ही में मुजफ्फरनगर के मोहम्मद ताबिश ने भी एम्स में तीसरी और पीजीआई चंडीगढ़ में दूसरी रैंक पाकर चौंका दिया था। देश की इस शीर्ष परीक्षा में इन सालों में बिजनोर और मुजफ्फरनगर के युवाओं की यह सफलताएं काफी मायने रखती है।

जुहैब मानते हैं कि जामिया मिल्लिया इस्लामिया ने उनकी कामयाबी में अहम किरदार अदा किया है

जुहैब इससे काफी खुश है और वो बताते हैं मुझे हमेशा लगता था कि उनके अंदर कोई साइंटिफिक टेम्परामेंट है और अब इसका पूरा उपयोग वो देश को मजबूत बनाने में करेंगे। जुहैब को यह कामयाबी पहले ही प्रयास में मिली है और वो हिंदी मीडियम के शुरुआती छात्र रहने के बाद काफी मशक्कत करके इंग्लिश में पकड़ बनाने की कहानी को चाव से सुनाते हैं। पहले प्रयास में ही इस कामयाबी को पाने वाले जुहैब अपनी पढ़ाई की स्ट्रेटजी की भी अद्भुत कहानी सुनाते हैं वो कहते हैं ” उन्होंने खुद से एक प्लान बनाया, जैसे वो जानते थे कि इस परीक्षा में 8 से 10 लाख लोग बैठते है और सिर्फ 41 सीट (मेकेनिकल) है तो उन्होंने रिसर्च की कि तमाम हार्ड वर्क के बाद भी प्रतिभागियों को कामयाबी क्यों नही मिल पाती ! इससे उनकी समझ मे आया कि उनके साथी मुश्किल सवालों में उलझ जाते हैं। ऐसा ही एक सब्जेक्ट है ‘मेक्रोनिक्स’ वो काफी लोचा पैदा करता है। मैंने सबसे अधिक महारत ही मेक्रोनिक्स में हासिल की। मैंने स्ट्रेटजी बनाई कि सबसे मुश्किल को सबसे पहले हल करो ! इससे मुझे कई फायदे हुए”। जुहैब एक मजेदार बात बताते हैं वो कहते हैं कि इंजीनियरिंग उनका जुनून है वो जब बचपन मे पंखा चलते हुए देखते तो सोचते थे कि यह घूमता क्यों है ! जुहैब का चयन इससे पहले इसरो में भी हो चुका है।

जुहैब की अम्मी शाहीन चाहती है जुहैब अपनी काबलियत का देश की तरक़्क़ी में योगदान दे। वो कहती है कि मैंने अल्लाह से बहुत दुआएं मांगी है। रिज़ल्ट वाले दिन यह बहुत उदास था। खामोश बैठा हुआ फोन देख रहा था। मैंने इससे फोन छीन लिया तभी यह चिल्लाया कि अम्मी मेरी आल इंडिया छठी रैंक आई है। मैं रो पड़ी ! उस दिन से हमारी दुनिया बदल गई। अब स्पेशल हो गए हैं। बड़े लोग मुबारकबाद दे रहे हैं। जुहैब ने इससे पहले कई बडी परीक्षाएं पास की है मगर उसे आईईएस की ही जिद थी जो उसने पूरी कर ली है। अल्लाह उस पर मेहरबान हो !

हाल ही में जारी हुए इंजीनियरिंग सेवा परीक्षा में 302 प्रतिभागियों के चयन हुआ है। इसमे मैकेनिकल इंजीनियरिंग भाग में सिर्फ 38 प्रतिभागी कामयाब हुए हैं। जुहैब की कामयाबी में जामिया मिल्लिया इस्लामिया का महत्वपूर्ण योगदान है। जुहैब क़ुरैशी ने अपनी इंजीनियरिंग की पढ़ाई वहीं से की हैं। मुजफ्फरनगर के समाजसेवी आसिफ राही कहते हैं जुहैब जिस इलाके और समुदाय से आते हैं वहां पढ़ाई को लेकर रुचि कम है और जाहिर है कि उनकी यह कामयाबी बहुत बड़ी है और इससे युवाओं को काफी प्रेरणा मिलेगी।

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