स्टाफ़ रिपोर्टर।Twocircles.net
उत्तर प्रदेश की योगी सरकार द्वारा पत्रकारों का दमन जारी हैं। ताज़ा मामला बाराबंकी का हैं जहां बाराबंकी की पुलिस ने ‘द वायर’ के दो पत्रकारों पर रामसनेही घाट स्थित ग़रीब नवाज़ मस्जिद को गिराए जाने पर गलत जानकारी फैलाने के आरोप में एफआईआर दर्ज की हैं। बाराबंकी पुलिस का आरोप है कि द वायर ने मस्जिद पर कार्रवाई के तथ्यों को तोड़-मरोड़ कर पेश किया हैं जिससे लोगों की धार्मिक भावनाएं भड़क सकतीं हैं।
द वायर के पत्रकार सेराज अली और मुकुल सिंह चौहान ने रामसनेही घाट मस्जिद को ढहाने पर एक डाक्यूमेंट्री रिपोर्ट की थी जिसको 23 जून को पब्लिश करा गया था। द वायर द्वारा की गई डाक्यूमेंट्री रिपोर्ट में वीडियो रामसनेही घाट तहसील के परिसर के भीतर स्थित गरीब नवाज मस्जिद को जिला प्रशासन द्वारा नष्ट करने के बारे में था, जिसको पिछले महीने प्रशासन ने अवैध ढांचा बताकर ध्वस्त कर दिया था।
द वायर द्वारा रिपोर्ट की गई इस वीडियो में स्थानीय लोग रामसनेही घाट में गरीब नवाज मस्जिद को अवैध तरीके से ध्वस्त करने के बारे में बताते हैं। वीडियो डॉक्यूमेंट्री में बताया गया था कि प्रशासन ने 100 साल पुरानी मस्जिद को अवैध और गैरकानूनी बताकर ध्वस्त कर दिया गया। द वायर ने स्थानीय लोग ब मोहम्मद अनीस और मोहम्मद नईम के इंटरव्यू भी लिए थे, दावा किया गया है कि मोहम्मद अनीस मस्जिद कमेटी के सदस्य भी थे।
वीडियो डॉक्यूमेंट्री में यह भी दिखाया गया है कि मस्जिद के इलाके के मुस्लिम लोगों ने मस्जिद को ध्वस्त करे जाने का विरोध भी किया था, लेकर पुलिस की सख्ती के चलते विरोध के उठते स्वर को शांत कर दिया गया था। द वायर की वीडियो डॉक्यूमेंट्री में यह भी दावा करा गया है कि बाराबंकी पुलिस ने इस मामले में मुस्लिम समाज को निशाना बनाया और साथ ही इस बात का भी दावा गया है कि पुलिस द्वारा मुस्लिम के धार्मिक ग्रंथ कुरान को नाले में फेंका गया।
बाराबंकी प्रशासन का कहना है कि डॉक्यूमेंट्री वीडियो में ग़लत और निराधार दावे करे गए हैं । प्रशासन का कहना है कि द वायर ने भ्रामक जानकारी फैलाई हैं जिससे सांप्रदायिक तनाव उत्पन्न हो सकता है और हिंसा हो सकती हैं। पुलिस ने द वायर के इस दावे का भी इनकार करा हैं जिसमें यह दावा करा गया है कि पुलिस ने धार्मिक ग्रंथों को नाले में फेंका था।
बाराबंकी पुलिस के अनुसार मोहम्मद नईम जो स्थानीय नागरिक हैं उसने धार्मिक पुस्तकों को नदी और नाले में फेंके जाने के झूठे दावे’ किए। पुलिस द्वारा दर्ज एफआईआर में आरोप लगाया गया है कि पत्रकारों ने जानबूझकर समाज में वैमनस्य फैलाने और सांप्रदायिक सौहार्द बिगाड़ने का प्रयास करा हैं। पुलिस ने रामसनेही घाट थाने में द वायर के पत्रकार सिराज अली, मुकुल सिंह चौहान, न्यूज़ पोर्टल द वायर, मोहम्मद अनीस, मोहम्मद नईम और कुछ अन्य अज्ञात लोगों के खिलाफ मुकदमा दर्ज करा हैं।
पुलिस ने आईपीसी की धारा 153 ,धारा 153ए, धारा 505 (1) (बी) , धारा 120ब और धारा 34 के तहत मामले को दर्ज करा हैं। बाराबंकी पुलिस ने आरोपियों पर दंगे के लिए उकसाना, विभिन्न समुदायों में वैमनस्य फैलाने, अपराधिक षड्यंत्र रचने की धाराएं लगाई हैं। उत्तर प्रदेश में एक साल में यह द वायर के ऊपर चौथी एफआईआर दर्ज हुई है।
द वायर ने दर्ज एफआईआर पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा हैं कि बाराबंकी पुलिस द्वारा दर्ज एफआईआर आधारहीन है। द वायर के संस्थापक संपादक सिद्धार्थ वरदराजन ने कहा हैं कि उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार मीडिया की स्वतंत्रता में विश्वास नहीं करती है और राज्य में क्या हो रहा है, इसकी रिपोर्ट करने वाले पत्रकारों के काम को अपराधीकरण कर रही है। उन्होंने कहा हैं कि वे इस तरह के मुकदमे से डरने वाले नहीं हैं।
पिछड़े महीने 17 मई को बाराबंकी प्रशासन द्वारा रामसनेही घाट स्थित 100 साल पुरानी ग़रीब नवाज़ मस्जिद को अवैध बता ध्वस्त कर दिया गया था। सुन्नी वक्फ बोर्ड द्वारा मस्जिद के विध्वंस को चुनौती देने और इसके दोबारा जीर्णोद्धार की मांग करने वाली रिट याचिका दायर करने के बाद इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने मंगलवार को यूपी सरकार को नोटिस जारी किया हैं। इस पर सुनवाई चल रही हैं और अगली तारीख 23 जुलाई हैं।