20 साल की सादिया शेख ने उठा रखी है अपने पूरे गांव को शिक्षित करने की ज़िम्मेदारी

जिब्रानउद्दीन।Twocircles.net

जहां कोरोना महामारी के बाद देशभर में हज़ारों बच्चों की पढ़ाई छूटती हुई देखी गई, वहीं बिहार की रहने वाली सादिया शेख़ ने अपने निरंतर प्रयासों की मदद से उनके गांव के एक भी बच्चे को शिक्षा से दूर नहीं होने दिया। 20 वर्षीय सादिया शेख़ ने सालभर पहले अपने पैतृक गांव, देऊरा में एक कम्युनिटी लाइब्रेरी की नींव रखी थीं जो आज काफी सफल मानी जा रही है, चूंकि इस लाइब्रेरी ने गांव भर के सैकड़ों बच्चों और बड़े लोगों के अंदर शिक्षा की रुचि जगा पाने में सफलता प्राप्त की है। यहां तक कि गांव में आवारा घूमने वाले नौजवान भी अब ज्यादातर समय इस लाइब्रेरी में ही गुजारते हैं।


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सादिया शेख़ ने इस कम्युनिटी लाइब्रेरी का नाम देश के पहले शिक्षा मंत्री मौलाना अबुल कलाम आज़ाद के नाम पर रखा है। इस लाइब्रेरी में न सिर्फ बच्चों के लिए मुफ़्त किताबें और दूसरी शिक्षा सामग्री को मुहैया करवाया जाता है बल्कि एक अनुभवी शिक्षक भी अपनी खुशी से रोज़ाना शाम को दो घंटे रोचक तरीकों से गांव के बच्चों को पढ़ाया करती हैं। मौजूदा समय में लगभग 150 बच्चे प्रतिदिन समय से पहले ही पढ़ने के लिए लाइब्रेरी पहुंच जाया करते हैं। इसके इलावा यहां हिंदी और अंग्रेज़ी के अखबारों का भी सब्सक्रिप्शन लिया गया है, जो बड़े-बूढ़ों को खूब लुभाते हैं।

दूरदर्शी विचार वाली सादिया शेख़ से TwoCircles.net ने खास बातचीत की, जिसमें उन्होंने इस लाइब्रेरी की स्थापना और इससे आगे की उम्मीदों के बारे में विस्तार से बताया। सादिया कहती हैं, “पिछले साल जब लॉकडाउन के समय मुंबई से मैं अपने गांव लौटी तो यहां के बच्चों की हालत बिलकुल दयनीय दिखी, किसी को पढ़ाई लिखाई से मतलब नहीं था।” सादिया ने उस समय कई बच्चों से स्कूल जाने को लेकर जानना चाहा तो सबका जवाब लगभग एक सा ही होता था की वो सिर्फ “मध्यांतर भोजन” के लालच में विद्यालय जाते हैं। इधर सादिया ने 6-7 वर्ग में पढ़ने वाले बच्चों की स्थिति देखी तो ऐसा मालूम पड़ा की उन्होंने अब तक कुछ खास पढ़ा ही नही है।

सादिया को बच्चों के शिक्षा की ऐसी हालत देखकर बहुत बुरा लगा। “मुझे इस स्थिति को किसी भी तरह से बदलना था इसलिए कुछ लोगों से विचार विमर्श कर मैने गांव में आयोजित एक कार्यक्रम में लोगों के सामने लाइब्रेरी खोलने का विचार प्रस्तुत किया।” सादिया आगे कहती हैं कि गांव के लोगों ने उनका पूरा समर्थन किया। जिसके बाद उन्होंने अपने एक बंद पड़े पुराने घर में लाइब्रेरी की नींव रखी।

“शुरआत में मेरे पास पैसों के नाम पर सिर्फ 5 हज़ार रुपए थें जो मैने अपनी जेबखर्च से बचा रखे थें, जिनसे हमने सीबीएसई और बिहार बोर्ड की कुछ किताबें खरीदी।” सादिया ने बताया की इसके इलावा उन्होंने गांव वालों से भी मदद करने को कहा तो जिनलोगो के पास जैसी भी पुरानी किताबें थी वो उन्होंने दानस्वरूप दे दी। “हमारी लाइब्रेरी में कई मज़हबी किताबें भी मौजूद हैं, हालांकि इस लाइब्रेरी को हमने किसी भी धर्म या जाति विशेष तक सीमित नहीं किया है और हम सबका ही स्वागत करते हैं।”

सादिया गांव के बच्चों की शिक्षा के प्रति रुचि बनाए रखने के लिए कई रोचक तरीकों से उन्हें ज्ञान बांटने की कोशिश करती हैं, जिसकी वजह से कभी कभी तो बच्चों की संख्या इतनी ज़्यादा हो जाती है की उनके बैठने की जगह भी नहीं बचती। “हमने बच्चों के लिए एक अनुभवी अध्यापिका को भी नियुक्त किया है जो प्रतिदिन दो घंटे बच्चों को हर तरह के विषय पढ़ाया करती हैं।” साथ ही लाइब्रेरी का ख्याल रखने के लिए भी सादिया ने गांव के ही एक ज़िम्मेदार व्यक्ति को नियुक्त किया है। वैसे तो अध्यापिका स्वेच्छा से बिना किसी शुक्ल के पढ़ाया करती हैं लेकिन देख-रेख करने वाले व्यक्ति का मासिक वेतन तय है जो सादिया अपनी ही जेब से प्रदान करती हैं।

सादिया के गांव, देऊरा की कुल आबादी 3,446 है। यहां कुल 631 घर हैं। इस गांव की साक्षरता दर तो 40.9% है, लेकिन इसमें सबसे ज़्यादा चौका देने वाला महिलाओं का साक्षरता दर है, जोकि सिर्फ 18.6% है। सादिया के अनुसार, महिलाओं के प्रति बढ़ते अपराधों के कारण ग्रामीण इलाकों में लड़कियों को बाहर जाने से रोका जाता है, ऐसे में मौलाना आजाद लाइब्रेरी उनके लिए भी काफी मददगार साबित हो रही हैं। गांव के बीचों बीच होने के कारण घरवाले बिना किसी झिझक के अपने घर की लड़कियों को लाइब्रेरी में भेजते हैं। साथ ही गांव के बड़े-बूढ़े भी अखबारों और दूसरी किताबों को पढ़ने के लिए लाइब्रेरी में निरंतर जाया करते हैं।

सादिया ने इस लाइब्रेरी और इसके साथ किए जाने वाले समाजसेवा को “रहनुमा वेलफेयर फाउंडेशन” के नाम से पंजीकृत करवाया है। सादिया को एक अंतरराष्ट्रीय संगठन ‘किड्स राइट आर्गेनाइजेशन’ का भी समर्थन प्राप्त है।

सादिया शेख़ के इस कम्युनिटी लाइब्रेरी वाले विचार से प्रभावित होकर अब देश के दूसरे हिस्सों में भी इसी तरह की लाइब्रेरी खोलने की शुरुआत होने लगी है। जैसे एएमयू के छात्र नेता हम्ज़ा मसूद ने अपने इलाके सहारनपुर में भी एक ऐसा ही लाइब्रेरी खोली है, वहीं खुद सादिया भी बिहार के दूसरे हिस्सों में भी ऐसी ही कम्युनिटी लाइब्रेरी खोलने का प्रयास कर रही हैं। “इस समय हमारे समाज को शिक्षा की बहुत ज़रूरत है, हालांकि सरकार शिक्षा के लिए कई योजनाएं चला रही।” लेकिन सादिया का सोचना है कि बच्चों को पढ़ाने से साथ ही साथ उनके अंदर पढ़ाई को लेकर रुचि पैदा करना भी ज़रूरी है।

लाइब्रेरी में निरंतर आने वाले पड़ोस के नन्हे अयाज़ ने बताया, “मुझे यहां आना बहुत पसंद है, क्योंकि यहां खेल भी खेलाए जाते हैं।” अयाज़ की तरह सैकड़ों बच्चे जो पहले सरकारी स्कूल से आते ही घर से बाहर खेलने निकल जाया करते थें आज वो जब मौका मिलता है तब लाइब्रेरी में आकर तरह तरह की किताबों को पढ़ने की कोशिश करने लगते हैं। सादिया शेख ने समाज के हर तबके को संदेश देते हुए कहा, “हर किसी को अपने आस पास के लोगों को शिक्षित बनाने की ज़िम्मेदारी उठाने की ज़रूरत है।”

सादिया शेख ने बांद्रा के रिज़वी कॉलेज से समाजशास्त्र में स्नातक किया है। वो आगे भी समाज सुधार का काम करने को लेकर इच्छुक हैं।

सादिया कई मर्तबा अपने कारनामों के चलते लोगों की शाबाशी पहले भी पा चुकी हैं। दो साल पहले हुए नागरिकता संशोधन कानून के विरोध प्रदर्शन के दौरान उन्होंने कई बड़े बड़े दिग्गज नेताओं, जैसे असदुद्दीन ओवैसी, उमर खालिद, कन्हईया के साथ मंच साझा कर रखा है। उन्हें कुछ दिनों पहले ही इमर्जिंग सोशल वर्क लीडर ऑफ द ईयर 2021 और वैश्विक महिला प्रेरणादायक पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया है और फिलहाल वो ह्यूमैनिटेरियन एक्सीलेंस अवार्ड के लिए भी नामांकित हैं।

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