जाकिर अली त्यागी Twocircles.net के लिए
यूक्रेन और रूस के बीच हफ़्तों से युद्ध चल रहा है,इस युद्ध मे यूक्रेन के कई शहरों ने तबाही का मंज़र देखा है व इस बीच एक और चिंताजनक ख़बर है कि यूक्रेन में 20 हज़ार से अधिक भारतीय छात्र फंस चुके है और एयरस्पेस बंद होने की वजह से उन्हें तमाम कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है, इन्हें धीरे -धीरे वहां से निकाला जा रहा है। इस दौरान कुछ नोजवानों ने ऐसी मुश्किल परस्थितियों में भी अपनी परवाह न् करते हुए साथियों की मदद की है। मेरठ के एक स्टूडेंट आलमगीर ने भी ऐसा ही किया है।
बताते हैं कि मेरठ के रहने वाले यूक्रेन में एमबीबीएस में फाइनल ईयर के छात्र आलमगीर ने सैकड़ो भारतीय छात्रों की अपनी मदद कर सबका दिल जीत लिया। Twocircles.net के साथ आलमगीर बताते हैं कि कैसे आलमगीर ने फंसे हुए भारतीयों की मदद की!
आलमगीर उत्तर प्रदेश के जिला मेरठ से 35 किलोमीटर की दूरी पर ललियाना गांव के रहने वाले हैं और यह गांव देश मे खासी पहचान रखता है क्योंकि इसी गांव के ज़ुबैर अहमद कारगिल युद्ध मे शहीद हुए थे,अब इस गांव को ज़ुबैर अहमद के साथ साथ आलमगीर ने भी नई पहचान दिलाई है,ललियाना के रहने वाले आलमगीर यूक्रेन के लवीव शहर में खारकीव इंटरनेशनल मेडिकल यूनिवर्सिटी से एमबीबीएस में फाइनल ईयर के छात्र है,जो कि अब यूक्रेन से सकुशल अपने घर आ गये है,उनके घर मिलने जुलने वालों का तांता लगा हुआ है क्योंकि आलमगीर ख़ुद ही सकुशल नही लौटे बल्कि सैकड़ो भारतीय छात्रों को भी सकुशल भारत भेजने में मदद की है,और उनकी इस मदद ने भारतीय के दिलों में एक छाप छोड़ दी है कि आलमगीर सभी के ज़ख्मो पर लगने वाला मरहम है जिसकी ना कोई जात और ना कोई मज़हब है!
जब यूक्रेन में फंसे भारतीय छात्र धन और रोटी की किल्लत से जूझ रहे थे उस वक्त आलमगीर फ़रिश्ता बनकर उन छात्रों के बीच पहुंचे और यूनिवर्सिटी में फीस जमा करने के लिए रखे हुए रुपयों से सैकड़ो छात्रों को राशन व अन्य ज़रूरत का सामान मुहैय्या कराना शुरू कर दिया,आलमगीर ने हमसे बातचीत की और बताया कि “कुछ ऐसे छात्र थे जिनके पास फ्लाइट के टिकट के लिए तो क्या खाना खाने के लिए भी रुपये नही थे,मैंने अपनी व कुछ दोस्तों की फीस जमा करने के लिए रखे हुए 5 से 6 लाख रुपये इकठ्ठा किये और उन्ही रुपयों से हर ज़रूरतमंद छात्र की मदद करना शुरू कर दी,वहां छात्रों को खाने के लाले पड़ रहे थे,जिनके पास रुपये थे वो तो महंगा खाना भी खरीदकर खा रहे थे लेकिन हज़ारो छात्र ऐसे थे कि जिनके पास बैंक बंद होने की वजह से कोई रुपया नही था,ऐसे मे मैं ख़ुद को नही रोक सकता था क्योंकि मैंने यूक्रेन में कई सामाजिक संस्थाओं के साथ काम किया था,इसीलिए मैंने रुपये इकठ्ठा करके ज़रूरतमंद छात्रों में बांटने का काम किया,हमें जो खाना मिला वो ही खरीदकर छात्रों में बांटा”
अब आलमगीर अपने घर तो आ चुके है लेकिन वह अब भी ग्रुप बना लापता भारतीय छात्रों को ढूंढने में लगे हुए है आलमगीर ने बताया कि “मैं जब यूक्रेन से घर आता बेहद ख़ुशी होती थी लेकिन इस बार ख़ुशी से घर नही आया हूँ क्योंकि अभी भी यूक्रेन में हमारे हज़ारो भारतीय छात्र फंसे हुए है,उनको हर संभव मदद नही मिली है,48 घंटे में एक ब्रेड हाथ आ रहा है और अभी भी हमारे 150 से अधिक भारतीय छात्र यूक्रेन में लापता है जिनको हम ग्रुप के माध्यम से ढूंढने की कोशिश में लगे हुए है,मेरे पास हर वक़्त उन छात्रों के कॉल आ रहे है जो यूक्रेन में फंसे हुए है और भारत आना चाहते है,उनको यूक्रेन के बॉर्डर तक पहुंचने में भी कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है कि यूक्रेनी टैक्सी वाले मात्र 12 किलोमीटर दूर बॉर्डर तक ले जाने के लिए 30 से 50 हज़ार रुपये मांग रहे है,सामान्य समय मे इतनी ही दूर 500 रुपये में तय की जाती थी”!
आलमगीर ने आगे बताया कि “मैं अपने घर आने के बाद भी उन छात्रों की मदद कर रहा हूँ,मेरे दर्जनों साथी और हज़ारो छात्र अभी भी यूक्रेन में फंसे है, और 150 से ज़्यादा छात्र लापता है ऐसे में मैं सो नही पाऊंगा क्योंकि मैं एक सामान्य परिवार से हू और सामान्य परिवार से ताल्लुक रखने वाले हज़ारो छात्र पुलिस और भूख की मार अभी भी झेल रहे है वह अपने मुल्क़ आने का रास्ता खोज रहे है और मैं उनको हरसंभव रास्ता दिखाने बताने की कोशिश करता रहूंगा,मैं भारत आया तो देखा कि यहां के अखबारों ने मुझे भारतीय छात्रों का सहारा लिखा हुआ है,मैं सहारा तो नही लेकिन हां मैं सहारा बनकर यदि किसी छात्र को भारत लाऊंगा तो इससे बड़ी उपलब्धि मेरे लिए कोई नही हो सकती है”!
आलमगीर के परिवार के इरशाद बताते हैं कि वो आलमगीर के नजरिये से बहुत प्रभावित है। मुश्किलें तो जिंदगी का हिस्सा है मगर जिस प्रकार से आलमगीर ने ऐसे हालात में भी साथियों का साथ नही छोड़ा वो सराहनीय है।