अलगाव से जूझ रहे बिहार के ईसाई वोटर

अफ़रोज़ आलम साहिल, TwoCircles.net

बेतिया: बिहार के चुनाव में एक तबक़ा ऐसा भी है, जिस पर किसी की भी नज़र नहीं है. यह ईसाई तबक़ा है, जो संभवतः देश में होने वाली हाल की घटनाओं से आतंकित है. संख्या में कम होने और सत्ता में हिस्सेदारी न होने के चलते इन अल्पसंख्यकों की आवाज़ अभी तक अनसुनी है.


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बेतिया जिले के फ़ादर लौरेंस कहते हैं, ‘देश में साम्प्रदायिकता काफी बढ़ गई है. सच तो यह है कि हमारे देश के लोकतंत्र में नाममात्र की धर्म-निरपेक्षता रह गयी है. लोगों में अविश्वास काफ़ी ज़्यादा बढ़ गया है. डर का ऐसा माहौल है कि लोग अब बोलने से पहले हज़ारों बार सोचते हैं. वैसे भी हमारी सुनने वाला है कौन?’

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फ़ादर लौरेंस आगे कहते हैं, ‘हमने यहां के समाज को बहुत कुछ दिया, पर हमें कुछ नहीं मिला. अब तो हमारे घर भी सुरक्षित नहीं है. लोग किराये पर रहने के वास्ते आते हैं और फिर हमारे लोगों के घरों पर क़ब्ज़ा जमा लेते हैं. पीने का पानी तो हर समुदाय के लोग हमारे इस चर्च से भरकर ले जाते हैं.’

फ़ादर लौरेंस की बात में काफ़ी सचाई है. पश्चिमी चम्पारण के बेतिया शहर के सारे प्रसिद्ध स्कूल इसी समुदाय के लोग चलाते हैं. शहर को स्वास्थ्य सेवा उपलब्ध कराने में इस समुदाय का काफी योगदान है. आज से 100 साल पहले 1915 में जब यह पूरा शहर कालरा जैसी बीमारी से ग्रसित हुआ था तब इसी समुदाय की ननों ने काफी साहस व धैर्य के साथ यहां के तमाम मरीज़ों की सेवा की थी.

ब्रदर फिन्टर बताते हैं, ‘जब इस देश में हमारे धार्मिक स्थल सुरक्षित नहीं रह पा रहे हैं तो हमारी कौन कहे. बार-बार हमारे चर्चों व लोगों पर हमले हो रहे हैं.’ जब हमने पूछा कि क्या ऐसी कोई घटना चम्पारण में घटी है, तो फिन्टर बताते हैं, ‘नही. ईश्वर की कृपा है कि चम्पारण में आज तक ऐसा कभी कुछ नहीं हुआ. लेकिन हां! बिहार के जहानाबाद में इसी साल जनवरी महीने में बजरंग दल के लोगों ने हमारे भवन पर हमला किया था. जमकर तोड़फोड़ की थी. उस घटना के बाद यहां भी हम थोड़े डरे हैं.’

सी. संजय भी बताते हैं,, ‘लोग काफी असुरक्षित महसूस कर रहे हैं. सरकार इंसानियत के नाते भी चर्चों की सुरक्षा पर ध्यान नहीं देती. धर्म-निरपेक्षता किसी भी लोकतंत्र की नींव होती है. लेकिन इस लोकतंत्र में साम्प्रदायिकता काफी बढ़ गई है.’ फ्रैंकिक बेनेडिक्ट भी संजय की बात को ही दोहराते हैं.

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शिप्रा रफेल बताती हैं कि हमारे समुदाय में शिक्षित लोग बहुत हैं, युवाओं में टैलेन्ट की कोई कमी नहीं है. लेकिन उनके लिए रोज़गार सबसे बड़ी समस्या है. रोज़गार के लिए उन्हें बिहार छोड़कर बाहर जाना पड़ता है. हालांकि ज़्यादातर लोग अभी भी यहीं रहकर दूसरे समुदाय के लोगों की सेवा कर रहे हैं. बेतिया शहर में ही स्कूल चलाने वाले शिक्षक मनोज सोलेमन बताते हैं, ‘मोदी सरकार बनने के बाद हमारे उपर और भी खतरे मंडराने लगे हैं. कांग्रेस के शासन में कभी चर्च पर हमला नहीं हुआ.’

सोलेमन बताते हैं कि चम्पारण से काफी सारे क्रिश्चन समुदाय के लोग बाहर चले गए, क्योंकि यहां प्रोग्रेस ही नहीं है. दूसरी तरफ़ क्रिश्चन क्वार्टर से बाहर के लोग यहां आकर गुंडागर्दी करते हैं. छेड़खानी के मामले रोज़ होते है. हमलोग पढ़े-लिखे हैं, हम लड़ना नहीं चाहते. हमारा इलाक़ा काफी असुरक्षित है.

बताते चले कि बेतिया के राज देवड़ी से सटे लगभग 90 एकड़ में ईसाई टोला बसा हुआ है, जिसे ‘क्रिश्चन क्वार्टर’ के नाम से जानते हैं. यह शहर का एक शांत इलाक़ा माना जाता है. लेकिन शहर के अधिकतर अराजक तत्व इसी इलाक़े में मंडराते रहते हैं, क्योंकि इसी इलाक़े में शहर का सबसे प्रसिद्ध लड़कियों का स्कूल संत टेरेसा है. इसके अलावा भी लगभग 50 की संख्या में छोटे-बड़े स्कूल हैं.

क्रिश्चन क्वार्टर का यह इलाक़ा ईसाई समुदाय के साथ उपेक्षा और त्रासदी की तस्वीर पेश करता है. इनकी सबसे बड़ी तकलीफ़ यह है कि अपनी लाख दिक्कतों के बावजूद कोई भी उम्मीदवार या पार्टी इनके मसले में दिलचस्पी लेने को तैयार नहीं हैं.

मनोज सोलेमन बताते हैं कि पिछली बार उन्होंने नरेन्द्र मोदी को वोट दिया था. पर इस बार नहीं देने वाले. यहां सांसद व विधायक दोनों भाजपा के हैं. लेकिन जब कभी ईसाई समुदाय के लोग इनके यहां अपनी समस्या को लेकर जाते हैं तो सांसद व विधायक दोनों ही स्पष्ट रूप में कहते हैं कि आपने हमें वोट नहीं दिया था. आपका हम काम नहीं करेंगे.

बेतिया के मीना बाज़ार में चश्मे की दुकान चलाने वाले विजय फिदेलीस का स्पष्ट तौर पर कहना है, ‘चुनाव तो बस ‘नंबर गेम’ का खेल है. क्योंकि हमारी संख्या कम है, इसलिए हमें कोई पूछता ही नहीं. बस चुनाव में नेता हमारे इलाक़े में एक बार हाथ हिलाकर चले जाते हैं. उसके बाद तो वो कहीं नज़र भी नहीं आते.’ फिदेलीस भी कहते हैं कि परिवर्तन हमने केन्द्र में कर दिया है. लेकिन इस बार यहां की जनता भी परिवर्तन के मूड में है. आईडियल सीएम नीतिश कुमार ही हैं. हालांकि सोलेमन नीतिश कुमार से भी ज़्यादा खुश नहीं हैं. लेकिन कहते हैं कि हमारी मजबूरी है कि इस बार उन्हें ही लाना होगा.

ऐसे में अब यदि आंकड़ों की बात करें तो 2011 जनगणना के मुताबिक बिहार में कुल आबादी में सिर्फ 53,137 लोग ईसाई हैं. और इनमें से 8,469 लोग पश्चिम चम्पारण में रहते हैं और 4,865 लोग पूर्वी चम्पारण में रहते हैं यानी चम्पारण में ईसाई समुदाय के लोगों की कुल संख्या 13,334 है. बाकी के 39,803 क्रिश्चन पूरे बिहार में फैले हुए हैं.

सच तो यह है कि चुनाव इकलौती ऐसी व्यवस्था होती है, जहां कोई भी तबक़ा अपनी दिक्कतों और अपनी ज़रूरतों को ‘हाइलाईट’ करने या करवा सकने की स्थिति में होता है. मगर बिहार के ईसाईयों को यह मौक़ा भी नसीब नहीं है.

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