रामपुर : जहां आज़म ख़ान बस्तियां ढहाने की कीमत चुका सकते हैं

By TwoCircles.net Staff Reporter

रामपुर: समाजवादी पार्टी के मुस्लिम चेहरे आज़म खान अपने शहर रामपुर को मॉडल के रूप में विकसित करने का दावा करते हैं लेकिन इस शहर में बुलडोज़र की आवाज़ से लोगो को डर लगता हैं. पिछले चार सालो में सरकारी बुलडोज़र द्वारा कई इमारत, गेट और लोगों के घर तक ज़मींदोज़ कर दिए गए. प्रशासन का दावा है कि सिर्फ अतिक्रमण करके बनायी गयी गैरकानूनी इमारतों को गिराया गया, लेकिन रामपुर शहर में ये एक बड़ा मुद्दा बन चुका है. बहुत सारे लोगों को घर से बेघर होना पड़ा और उंगली हमेशा आज़म खान की तरफ ही उठी.


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रामपुर के सराय गेट के मोहल्ले घोसियान में कुछ इसी तरह का नज़ारा है. वहां रहने वाले आज़म खान के लिए गुस्से से भरे हैं. वजह – इस मोहल्ले में लगभग 47 घर गिरा दिए गए. 42 साल के इशाक मियां कहतें हैं, ‘भले ही पूरे रामपुर में आज़म खान का खौफ सिर चढ़कर बोलता हो, लेकिन अब हम खामोश नहीं रहेंगे, चाहे हमारी जान ही क्यों न चली जाए?’ उनका दावा है कि अक्टूबर 2016 में भारी पुलिस फ़ोर्स की मौजूदगी में उनके 25 साल पुराने घरों को ढहा दिया गया. सभी औरतों-बच्चों को सिविल लाइन पहुंचा दिया गया, वहीं मर्द घर छोड़ कर भाग गए.

हालांकि यह ज़मीन सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड की है और ये लोग वहां किरायेदार के रूप में रह रहे थे. बोर्ड ने किरायेदारी ख़त्म कर दी और इन सबको घर छोड़ने को कह दिया. यहां रह रहे सभी लोग अचानक से सड़क पर आ गए. मालूम रहे कि उत्तर प्रदेश में वक्फ विभाग का ज़िम्मा आज़म खान के पास था. वक्फ बोर्ड पूरे रामपुर में जितना मुस्तैद रहा, उतना प्रदेश में कहीं नहीं. लखनऊ में वक्फ बोर्ड के एक कर्मचारी ने बताया कि वक्फ की ज़मीन खाली करवाने की उनकी चिट्ठियों पर शायद ही किसी जिले में कार्रवाई होती हो, लेकिन रामपुर में बात अलग है.

इसके अलावा शिया सेंट्रल वक्फ बोर्ड ने भी कार्रवाई रामपुर में शुरू कर दी थी और बहुत सारी इमारतों पर से नवाब खानदान के वारिस नवाब काजिम अली कहन उर्फ़ नवेद मियां को मुतावाली पद से हटा दिया. नवेद मियां आज़म के विरोधी हैं, मामला अदालत तक पहुंचा था. शिया वक्फ बोर्ड के चेयरमैन सैय्यद वसीम रिज़वी ने खुद हेलमेट लगाकर पुलिस के साथ रामपुर में कई बिल्डिंग्स पर कब्ज़ा लिया.

इधर यतीमखाने की ज़मीन, जिस पर मोहल्ला घोसियां के लोग बसे हुए थे, को उनसे खाली करा लिया गया. इस मामले में 32 स्थानीय लोगों पर मुकदमा हुआ और दावा किया जाता हैं कि तीन लोग सदमे से मर भी गए. 15-16 लोगों को कुछ मुआवज़ा भी दिया गया.

स्थानीय कांग्रेस नेता फैसल खान लाला जो उत्तर प्रदेश कांग्रेस समिति की अल्पसंख्यक प्रकोष्ठ के उपाध्यक्ष भी हैं, यतीमखाने के मामले को राजभवन तक ले गए. आज़म खान के रिश्ते भी राजभवन से मधुर नहीं रहे. राजभवन ने इस मामले पर रिपोर्ट भी मांगी थी. मामले को लाला राष्ट्रीय मानवधिकार आयोग तक ले गए हैं.

यतीमखाना का मुद्दा पहला नहीं था. इससे पहले 2015 में वाल्मीकि भी ऐसा ही कर चुके थे. तब मुद्दा बना था एक खूबसूरत बापू माल जिसको नगर पालिका परिषद् रामपुर द्वारा बनवाया गया था. उसके रास्ते के लिए वाल्मीकि बस्ती के कुछ घर आ रहे थे. यहां फिर वही मामला हुआ क्योंकि वो ज़मीन भी सरकारी निकली. लेकिन वाल्मीकियों द्वारा इस्लाम धर्म अपनाने के धमकी देने से मामला तूल पकड़ गया और फिर ठन्डे बस्ते में चला गया. इस मामले में ध्यान देने वाली बात है कि आज़म के पास नगर विकास विभाग भी है जो ये विकास कार्य करवा रही थी.

एकलव्य वाल्मीकि, जिन्होंने ये मुहिम चलायी थी लेकिन अब शांत हो गए हैं और आज़म के समर्थन में हैं, कहते हैं, ‘देखिये अब मामला ठीक हो गया हैं. मंत्री जी ने हमें गले लगा लिया हैं. लोगो को नौकरी, ज़मीन सब कुछ मिल गया.’ फिलहाल वो कांग्रेस से जुड़े हैं और जब सपा और कांग्रेस का गठबंधन हो गया तो वो मुस्कुराकर कहते हैं, ‘भाई आप खुद समझदार हैं. अब आप ही बताइये कि कैसे उनके खिलाफ बोलें. गठबंधन नहीं हुआ तो फिर हम बताते आपको सारी सच्चाई. हमारा वीडियो देखिएगा यूटूयूब पर, सबसे आगे हम ही नज़र आयेंगे.’

जहां आज़म खान का विरोध शहर में दिख रहा है और उन पर बस्तियां ढहाने का आरोप लगता हैं, वहीं रामपुर में ही मोहसिन-ए-आज़म कॉलोनी भी बनी हुई हैं.

इन्हीं सबके बीच आज़म खान रामपुर शहर से फिर नौवीं बार चुनाव जीतने के लिए लगे हैं. इस बार उनके बेटे अब्दुल्लाह आज़म भी स्वार सीट से मैदान में हैं. आज़म की पत्नी तजीन फातिमा पहले से ही राज्यसभा सदस्य हैं.

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