रमेश उपाध्याय
उत्तराखंड : “हम सुनील के काम से बहुत खुश हैं, वह मेहनत से काम कर रहा है. काम के बोझ के साथ परिवार की ज़िम्मेदारी भी अच्छे से संभाल लेता है.”
यह वाक्य है उत्तराखंड स्थित कर्णप्रयाग के गांव मठोली में रहने वाले सुनील कुमार के माता पिता का.
28 साल के सुनील कुमार ने इतिहास विषय में स्नातक तक शिक्षा प्राप्त की है. परिवार में कुल 7 सदस्य हैं. कुछ समय पहले सुनील की एक छोटी सी मोबाइल रिचार्ज तथा फोटोकॉपी की दुकान थी, जो अब मोबाईल रिपयेरिंग की दुकान में बदल चुकी है. दुकान के अतिरिक्त उत्पादित फ़सलों से तीन माह का खाद्य भण्डारण होता है जो परिवार के काम आता है.
सुनील शुरु से अपने काम को आगे बढ़ाने के लिए प्रयासरत था. ऐसे में जब उसे अगस्त 2016 में दिल्ली की संस्था उद्योगिनी और “दी हंश फाउण्डेश” द्वारा आयोजित ग्राम स्तरीय बैठक में भाग लेने का मौक़ा मिला, तो उसने कौशल विकास कार्यक्रम को समझा.
सुनील से बातचीत के बाद उसकी रुची को देखते हुए संस्था के कार्यकर्ताओं ने उसे मोबाईल रिपेयरिंग कार्य सीखने की सलाह दी और बताया कि इससे उसकी मासिक आय में वृद्धि होगी.
सुनील ने 15 दिन का प्रशिक्षण लिया. इस दौरान उसने मोबाईल रिपेयरिंग की सामाग्री भी अपनी दुकान में रखनी शुरु कर दी और मोबाईल रिपेयरिंग का कार्य भी शुरु किया.
चूंकि सुनील ने 15 दिन के प्रशिक्षण में सामान्य रिपेयरिंग का ही कार्य सीखा था. जबकि दुकान में स्मार्ट फोन की रिपेयरिंग के लिये भी लोग आने लगे थे. तब उसने संस्था के कार्यकर्ताओं से चर्चा की. इसके पश्चात् पुनः 15 दिन का एडवांस मोबाईल रिपेयरिंग प्रशिक्षण लिया, जिसमें स्मार्ट फोन को बनाना पूरी तरह से सीख लिया.
इसके अतिरिक्त उसने एक और लड़के को भी अपने साथ जोड़ा जो काम में उसकी मदद करता है. वो भविष्य में दुकान को बढ़ाकर अन्य युवाओं को भी रोज़गार देना चाहते हैं. जिसमें वे मोबाइल रिपेयरिंग के साथ-साथ फोटोग्राफ़ी व वीडियोग्राफ़ी का कार्य भी करेंगे.
सुनील का कहना है कि “बाज़ार में अच्छे कौशल उद्यमी की पहचान के साथ-साथ स्वयं के आत्मविश्वास में भी वृद्धि हुई है. अब इस व्यवसाय को आगे ले जाना है, ताकि अपने बच्चों को उच्च व तकनीकी शिक्षा दिलवा सकूं.”
सुनील के सपने बड़े हैं. निसंदेह वह मेहनती हैं और अपने काम को आगे बढ़ाना चाहते हैं. सुनील के इस फैसले से स्वयं सुनील के माता-पिता कितने सहमत हैं, बात करने पर उन्होंने बताया, हम सुनील के काम से बहुत खुश हैं, वह मेहनत से काम कर रहा है. काम के बोझ के साथ परिवार की ज़िम्मेदारी भी वह अच्छे से संभाल लेता है.
सुनील की पत्नी कहती हैं, “मैं ज्यादा पढ़ी-लिखी तो नहीं कि दुकान के काम में इनकी मदद करुं, लेकिन फिर भी जितना संभव होता हैं उतनी सहायता ज़रुर करती हूं. हमने अपना काम आपस में अच्छी तरह बांट लिया है. घर के हर छोटे-बड़े काम की ज़िम्मेदारी मेरी और दुकान और बाहर के काम की ज़िम्मेदारी इन पर है, ताकि ये अपनी दुकान अच्छी तरह चला सकें.”
उत्तराखंड स्टेट हेड उद्योगिनी के पवन कुमार सुनील के बारे कहते हैं, “सुनील ने प्रशिक्षण में पूर्ण लगन से भाग लिया. परिणाम स्वरुप एक सफल उद्यमी के रूप में पहचान बनाई हैं जो कि क्षेत्र में अन्य बेरोज़गार युवाओं के लिए मार्गदर्शक का कार्य करेगा. यदि सुनील को भविष्य में किसी प्रकार की तकनीकी सहयोग की ज़रुरत होती है तो संस्था उसके व्यवसाय को आगे बढ़ाने में हर संभव सहयोग प्रदान करेगी.” (चरखा फीचर्स)