शाहनवाज़ नज़ीर, TwoCircles.net के लिए
आज बक़रीद है और उज्जैन के बेगमबाग़ मुहल्ले की शबीना अपनी तीन बहनों और मां के साथ रेलवे स्टेशन जाने की तैयारी कर रही हैं. उन्हें सुबह 7:15 मिनट पर भोपाल जाने वाली ट्रेन पकड़नी है. मां ने एक टिफिन में बनाए कोफ्ते रख लिए हैं, जिसे वो भोपाल सेंट्रल जेल में छह साल से बंद अपने बेटे मुहम्मद साजिद को खिलाना चाहती हैं.
साजिद पर प्रतिबंधित संगठन स्टूडेंट इस्लामिक मूवमेंट ऑफ इंडिया (सिमी) का सदस्य होने का आरोप है. उन्हें जून 2011 में जबलपुर से गिरफ़्तार किया गया था.
तक़रीबन 12 बजे शबीना अपनी बहनों और मां के साथ भोपाल सेंट्रल जेल पहुंच गईं. त्योहार के दिन क़ैदियों को अपने घर वालों से मिलने की छूट होती है, लेकिन अभी इनकी मुलाक़ात नहीं हो पाई.
जेल के बाहर बने टिन शेड में इंतज़ार करते हुए शाम के पांच गए, तब जाकर साजिद से इनका आमना-सामना हो पाया. मगर मां के लाए कोफ्ते को वहां तैनात प्रहरियों ने खिलाने से मना कर दिया.
शबीना नज़दीक के एक होटल से सेम-आलू की सब्ज़ी ले आई जिसे साजिद को खिलाया. बक़ौल शबीना, ‘उन्होंने कहा कि सिमी के आतंकियों को गोश्त दिए जाने की मनाही है.’
देर से हुई मुलाक़ात के चलते शबीना शाम साढ़े पांच बजे भोपाल से उज्जैन के लिए छूटने वाली ट्रेन नहीं पकड़ पाईं. अगली ट्रेन सुपरफास्ट है जिसका टिकट ख़रीद पाना उनके लिए आसान नहीं है.
बक़रीद की सुबह भोपाल के लिए निकलीं शबीना रात 12 बजे वापस अपने घर बेगमबाग़ पहुंची.
वो कहती हैं कि हमारी हर ईद इसी तरह गुज़रती है. हर कोई घर पर ईद मनाता है, लेकिन हमारी ईद जेल पर मनती है.
शबीना कहती हैं, ‘मुलाक़ात के लिए जाने पर भोपाल सेंट्रल जेल के प्रहरी उनके घर वालों को ज़ेहनी तौर पर काफी परेशान करते हैं. चेकिंग के नाम पर बदन के उन हिस्सों पर हाथ लगाया जाता है, जिनका मैं नाम नहीं ले सकती.’
उनके मुताबिक़ पुलिस वाले कहते हैं कि, तुमलोग इसी लायक़ है, इसलिए ये दिन देख रहे हो.
छह साल से जेल में बंद साजिद चार बहनों में इकलौता भाई है. गिरफ्तारी का सदमा पिता को ऐसा लगा कि कुछ ही दिन में एक्सिडेंट का शिकार हो गए. दाहिने पैर में रॉड पड़ गई है. पिता का अपना टैंपो था जो बिक चुका है. अब वो ड्राइवर की नौकरी करते हैं.
शबीना 11वीं क्लास में थी, जब जून 2011 में साजिद को गिरफ़्तार किया गया. अब वो उज्जैन के एक लैब में 2 हज़ार रुपए महीने की नौकरी करती है.
बड़ी बहन एक स्कूल में पढ़ाती है, जहां से उसे एक हज़ार रुपए मिलते हैं. सबसे बड़ी बहन की शादी हो चुकी है और सबसे छोटी अभी पढ़ रही है.
पिता की ड्राइवरी की नौकरी के अलावा घर का खर्च शबीना और उनकी बहन मिलकर चलाते हैं.
वो कहती हैं कि हर मुलाक़ात पर कम से कम हज़ार रुपए ख़र्च हो जाते हैं और अब यह ख़र्च झेला नहीं जाता.
शबीना कहती हैं कि, बीते साल हुए भोपाल एनकाउंटर के बाद से सख़्ती काफ़ी बढ़ गई है. उनका भाई हर वक़्त सेल में बंद रहता है, उसे बमुश्किल बाहर निकाला जाता है. वक़्त से पहले उसके सिर के बाल पक गए हैं. वो महज़ 28 साल का है, लेकिन बूढ़ा लगने लगा है. अगर उसके साथ यही बर्ताव होता रहा तो वो पागल भी हो सकता है.
साजिद 22 साल का था, जब वो जबलपुर के एक कढ़ाई के कारख़ाने में काम ढूंढने के लिए गया था. घर वालों के मुताबिक़ काम नहीं मिलने पर उसने वापस लौटने की बात कही थी, लेकिन इससे पहले मध्यप्रदेश पुलिस ने उसे सिमी का सदस्य होने के आरोप में उठा लिया.
वकील परवेज़ आलम कहते हैं कि, साजिद और उसकी तरह बंद कई क़ैदियों को अदालत में सिमी का सदस्य साबित करना मध्यप्रदेश पुलिस के लिए मुमकिन नहीं है.
फिर इनकी ज़मानत कब तक हो सकती है? इस सवाल पर परवेज़ कहते हैं कि कुछ नहीं पता. अदालत में चल रही कार्यवाही की प्रक्रिया काफी धीमी है. मुमकिन है कि 10-15 साल के बाद इन्हें रिहा कर दिया जाए, जैसे आतंकवाद के अन्य मामलों में सुनने को मिलता है.