आस मुहम्मद कैफ़, TwoCircles.net
मुज़फ़्फ़रनगर : जानसठ के इब्राहिम (35) तब 10 साल के थे. वो बता रहे हैं कि, मेरे अब्बू दिन में 10 बजे नमाज़ पढ़ रहे थे. मैं यह नहीं समझ पा रहा था कि नमाज़ पढ़ने का यह कौन सा वक़्त है. दरअसल, ये दिन 6 दिसंबर का मनहूस दिन था. बाबरी मस्जिद शहीद हो चुकी थी. हर तरफ़ दहशत का माहौल था. ख़ासतौर पर मुस्लिम मोहल्ले आतंक के साए में थे. उस वक़्त पुलिस ने मुसलमानों को पकड़ हवालात में बंद करना शुरू कर दिया था. मुझे यह समझने में वक़्त लगा कि मेरे अब्बू ने उस दिन नमाज़ 10 बजे क्यों पढ़ी थी. वो जानते थे कि सिर्फ़ अल्लाह ही अब मदद कर सकता है.
खुर्शीद (31) बताते हैं कि, वो सिर्फ़ 6 साल के थे. बाहर शोर मच रहा था. “जय श्री राम”. मेरे पापा मुझे घर के अंदर ले गए और अम्मी से कहा बच्चों को बाहर मत आने देना. उन्होंने घर में बताया कि मस्जिद शहीद हो गई.
शाहनवाज़ (20) बीबीए कर चुके हैं. बाबरी मस्जिद शहादत के पांच साल बाद पैदा हुए हैं. वो कहते हैं, किसी भी मुल्क में किसी भी अल्पसंख्यक समुदाय के धार्मिक स्थल को ताक़त के ज़ोर पर गिराया जाना, उस देश के लिए एक शर्मनाक अतीत होता है. देश इस दिन शर्मिंदा हुआ. मगर क्या हमें सिर्फ़ यही याद रखना चाहिए. गुजरात के दंगे और मुज़फ़्फ़रनगर के दंगे ज्यादा गहरे ज़ख़्म हैं. यह हमारी आँखों के सामने हुए.
शिबली ज़ीशान (32) कहते हैं, किसी भी धर्मनिरपेक्ष देश के लिए यह कलंक है. हम लोग आगे बढ़ने की बात क्यों नहीं करते. अदालत का फैसला सबको मानना चाहिए. देश संविधान से चलेगा.
शनव्वर अली कहते हैं कि, मंदिर-मस्जिद के इस विवाद से देश भर में हिन्दू-मुस्लिम भाईचारा प्रभावित हुआ है. अब अगर फैसला किसी एक पक्ष में आता है तो यक़ीनन दूसरा पक्ष तनाव में आ जाएगा. ऐसे में अयोध्या में अस्पताल या स्कूल बन जाए तो अमन चैन क़ायम रहेगा. वैसे देश को थोड़ा बड़ा सोचना चाहिए.
मुन्ना कहते हैं कि, यह दिन बहुत बुरा था. हमें अदालत पर भरोसा करना चाहिए.
सरताज बेग़ TwoCircles.net से बातचीत में बताते हैं कि, अगर कहीं बहुसंख्यक मुसलमान किसी हिन्दू धर्मस्थल को ऐसे ही तोड़ दे तो वो तब भी इतनी ही बुरी बात है. किसी भी देश के और समाज के लिए जिसका आधार ही गंगा-जमुनी तहज़ीब हो, यह अच्छा नहीं है. बाबरी मस्जिद शहादत के बाद से हिन्दू-मुस्लिमो में खाई पैदा हो गई और देश गंदी सोच के राजनीति करने वालों का खिलौना बन गया. अदालत के फैसले को सभी को मानना चाहिए.