आस मुहम्मद कैफ़, TwoCircles.net
मुज़फ़्फ़रनगर : ये कहानी मुज़फ़्फ़रनगर की एक चर्चित लव स्टोरी है, जिसमें दोनों को शुरूआती दिनों में बेहद मुश्किल दौर का सामना करना पड़ा. पूरे समाज का विरोध झेलना पड़ा. लेकिन आज ये जोड़ी पूरे मुज़फ़्फ़रनगर के लिए एक मिसाल बन चुकी है.
मोहम्मद उमर TwoCircles.net के साथ ख़ास बातचीत में बताते हैं, वो सामाजिक गतिविधियों से जुड़े हैं. 2009 में वो मुज़फ़्फ़रनगर के उस समय के एसएसपी बीड़ी पॉलसन के पास किसी काम से गए थे, वहां उन्होंने एक लड़की को उनसे नारी निकेतन भेजे जाने का अनुरोध करते देखा. एसएसपी ने ऐसा करने से इंकार कर दिया और लड़की को घर वापस जाने की सलाह दी. मगर वो वहां नहीं जाना चाहती थी. मैं उस लड़की को घर ले आया. धीरे-धीरे हम में नज़दीकियां बढ़की चली गईं और हमने शादी कर ली.
उमर आगे बताते हैं कि, उन्होंने अपनी मर्ज़ी से इस्लाम क़बूल किया. मौलाना कलीम सिद्दीक़ी ने उन्हें सादिया नाम दिया. लेकिन इसके तुरंत बाद मेरे ख़िलाफ़ साज़िशें शुरू हो गई और एक समाज की पंचायतें होने लगी. जात-बिरादरी के नाम पर लोग एकजुट होने लगें. मेरे ख़िलाफ़ फ़र्ज़ी मुक़दमे लिख दिए गए. पुलिस ने मुझे जेल भेज दिया, मगर तब उस मुश्किल वक़्त में भी इन्होंने मेरा साथ नहीं छोड़ा और अदालतों और अफ़सरों के चक्कर काटती रहीं. जब मैं जेल से आया तो तब तक सरिता (सादिया) ने बीए की पढ़ाई की थी. अब अदालत और अफ़सरों के चक्कर लगाने से उनके अंदर वकालत की पढ़ाई करने का जज़्बा पैदा हुआ, जिसके बाद मैंने उन्हें आगे पढ़ाई कराई और उनका बार काउंसिल में रेजिस्ट्रेशन कराया.
इस समय सरिता एलएलबी कर चुकी हैं और सिविल सर्विस की तैयारी कर रही हैं.
सरिता हमसे कहती हैं, जब मैं खुद को अकेला महसूस कर रही थी और हर रास्ता बंद था तब मुझे इन्होंने सहारा दिया. फिर मेरा हर ख़्वाब पूरा करने में बेइंतहा मुश्किलों का सामना किया.
वो आगे कहती हैं कि, मज़हब मुहब्बत का क़ातिल नहीं होता. अब हमारे तीन बेटे हैं. असदुल्लाह, समद और सैफुल्लाह. और मैं बहुत खुश हूँ.
इस कहानी का सबसे सुखद पहलू यह है कि, सरिता हाल ही में मुज़फ़्फ़रनगर से निकाय चुनाव में सभासद चुनी गई हैं.
वो कहती हैं, इस्लाम में महिलाएं पिछड़ी हुई हैं और उन्हें बंधक बनाकर रखा जाता है, यह बात झूठी है. मुझे तो ऐसा कभी नहीं लगा. बल्कि जो मैंने चाहा वो मैंने किया.
वो एक मज़ेदार बात बताती हैं. उन्होंने श्रीराम लॉ कॉलेज से एलएलबी की है. यहां वो बुर्के में जाती थीं, मगर चूंकि उनका कागज़ों में अंकित नाम सरिता देवी होता है तो वो चर्चा का केन्द्र बन जाती थी.
सरिता (सादिया) हमसे कहती हैं, वकील बन गई. सभासद बन गई. अब बस कलक्टर बन जाऊं.
सरिता अभी 31 की हैं और मोहम्मद उमर की उम्र 41 साल है.
उमर बताते हैं कि, मज़हब नफ़रतों को बढ़ावा देने के लिए नहीं होते, बल्कि खुदा का रास्ता बतलाने के लिए होते हैं. हमारे रिश्ते में कभी कोई परेशानी नहीं आई.
मुज़फ़्फ़रनगर —जहां आज़ादी के बाद जाट और मुसलमानो में सबसे वीभत्स दंगा हुआ हो, वहां एक जाट लड़की और मुस्लिम लड़के की प्रेम कहानी का यह रंग हमें आश्चचर्य से ज़रूर भरता है और साथ ही अपने पीछे कई पैग़ाम भी छोड़ जाता है.