आसमोहम्मद कैफ़, Twocircles.net
लखनऊ/देवबंद/दिल्ली। देशभर में हो रहे नागरिकता संशोधन कानून के विरोध में हो रहे प्रदर्शन के दौरान सबसे मुश्किल काम नारे लगवाना है। दिल्ली के शाहीन बाग़ से शुरू हुए ऐसे प्रदर्शन देशभर में करीब 200 जगहों पर हो रहे हैं। इन प्रदर्शनों के दौरान लगने वाले नारे लगातार चर्चा में हैं। इनसे और अधिक महिलाओं को ऊर्जा मिल रही है। सीएए के दौरान प्रदर्शनों में ज़ोरदार नारे लगाकर कई महिलाओं और युवतियों ने अपने गले खराब कर लिये हैं।
शाहीन बाग़ की फ़ातिमा, लखनऊ की सय्यदा नशरा और वरीशा, हौज़ खास की हिना मेवाती और देवबंद की इरम उस्मानी को लगातार जोशो खरोश से नारे लगवाने के लिए जाना जा रहा है। लखनऊ में सबसे चर्चित नारे है
“नही किसी के बाप का,,यह देश हमारा आपका”
“बोल साथी हल्ला बोल, एनआरसी पर हल्ला बोल”
“बोल साथी हल्ला बोल, सीएए पर हल्ला बोल“
यहां प्रदर्शनकारियों का ‘ना ना ना’ गीत भी दिन में कई बार गायाा जाता है। इसे आएशा अमीन और उनकी टीम को पढ़ने के लिए जाना जाता है। इसके अलावा आज़ादी के नारे यहां ज्यादातर लड़कियां ही लगाती है। इनमे शायर मनव्वर राणा की नातिन वरीशा की लोकप्रियता काफी बढ़ रही है। उनकी अम्मी सुमैय्या राणा के खिलाफ यहां मुक़दमे दर्ज हो चुके हैं मगर परवाह उन्हें भी नही है। सय्यदा नशरा(23) नाम वाली एक दूसरी लड़की मंच पर नारे लगाने के दौरान सबसे ज्यादा हिम्मत और जोश-खरोश दिखाती रही है। लखनऊ की सय्यदा अमीन के अनुसार यह सबसे मुश्किल काम है। नारे लगाने के बहुत अधिक एनर्जी की जरूरत है, महिलाओं को प्रोत्साहित करना भी पड़ता है। कोई भी महिला इसे काफ़ी देर तक नही कर सकती है।लखनऊ में कई महिलाओं ने अपने गले खराब कर लिए है। मैं भी उनमें से एक हूँ। मैंने लगातार नारे लगवाए हैं। मेरा गला ख़राब हो गया था। कई दिन नारे नहीं लगा पाईं। अब जाकर गला ठीक हुआ है।हिम्मत बस अल्लाह दे रहा है।”
नारे लगाने वाली ऐसी लड़कियों को इन प्रदर्शनों में सेलिब्रिटी की तरह समझा जा रहा है इसकी वज़ह यह भी है देवबंद से लेकर दिल्ली तक किसी भी प्रदर्शन की कमीन किसी नेता के हाथ में नहीं है। सब कुछ आम गृहणियों के हाथों में है।
देवबंद के प्रोटेस्ट में अग्रिम पंक्ति की महिला इरम उस्मानी(38) कहती है, ‘मेरे शौहर और पारिवारिक लोग अब मुझे नारेबाज़ इरम कहने लगे हैं। मैंने ठंडा पानी पीना और चिकनाई वाला खाना बंद कर दिया है। लगभग रोज़ मुझे अपने गले के लिए एंटीबायोटिक लेनी पड़ रही है। कभी-कभी गले से आवाज़ निकलनी बंद हो जाती है। अब कुछ और भी महिलाओं ने नारे लगाने का जिम्मा संभाल लिया है। इनमे लड़कियां ज्यादा है। मेरा काम कम हो गया है। अब मेहमानों की व्यवस्था देख रही हूं। प्रोटेस्ट में अब कई बड़े नाम वाले चेहरे आने लगे हैं। फिर भी मुझे मंच संचालन करना होता है। इसलिए गला ख़राब हो ही गया है।’
लखनऊ प्रोटेस्ट की ऐसी ही एक युवा मंच संचालक वरीशा (22) बताती है कि जब हमनें यहां आज़ादी के नारे लगवाने शुरू किए तो महिलाएं हमें ऐसा करने के लिए मना करने लगी। तब हमें उन्हें समझाना पड़ा कि आज़ाद देश मे आज़ादी के नारे लगाना ग़लत नही है। हम गरीबी, छुआछूत, जातिवाद और भेदभाव से आज़ादी मांग रहे हैं। यह काला क़ानून हमें धार्मिक आधार पर बांट रहा है। यह पूरी तरह असंवैधानिक है। देश संविधान से चलेगा। मैं एमए की स्टूडेंट हूं।लखनऊ में ही पढ़ती हूँ। आज मुझे अपने करियर की परवाह नही है। अपने देश की परवाह है। इसकी अस्मिता और गौरव की परवाह है।अब नारे लगाने के लिए हिम्मत तो खुद ब खुद अंदर से आ रही है।आज एकजुट होने का वक़्त है। यह सिर्फ मुसलमानों की लड़ाई नही है बल्कि हर उस भारतीय की लड़ाई है जो देश के संविधान में विश्वाश रखता है।’
हिना एजाज़ (27) दिल्ली के हौज़रानी में चल रहे नागरिकता संशोधन कानून के विरोध में बैठी महिलाओं के बीच दमदार आवाज़ में नारे लगाने के लिए जानी जाती है। दिल्ली की रहने वाली हिना दो बच्चों की मां है। हौज़रानी में चल रहा यह प्रोटेस्ट दिल्ली के चार बड़े प्रॉटेस्ट में से एक है। फिलहाल हिना अपना गला ख़राब कर चुकी है वो कहती है, “यहां हमारे बच्चों का मुस्तक़बिल ख़राब होने की कगार पर है अब गले की परवाह किसे है! कट भी जाए तो परवाह नहीं। दुःख तो इस बात का है हम कितनी भी ज़ोर लगाकर चिल्ला लें मगर सरकार के कानों तक आवाज़ नही जा रही है। या फिर वो हमारी आवाज़ अनसुनी कर रही है। हिम्मत हम भी हारने वाले नहीं हैं।’
एंटी सीएए प्रदर्शनों में सबसे मुश्किल काम है नारे लगाने, देखिये-
लखनऊ में नारे लगाते हुए शायर मनव्वर राणा की नातिन वरिशा