आस मोहम्मद कैफ, TwoCircles.net
मुज़फ्फरनगर: मुज़फ्फरनगर की 6 विधानसभाओं में से 4 चार पर यहां के कद्दावर और रसूखदार ‘राणा परिवार’ के लोग ताल ठोंक रहे हैं. कमाल यह है कि ये चारों चुनाव जीतने की स्थिति में हैं और तीन का जीतना लगभग तय माना जा रहा है. इस पर सरसरी निगाह डालें तो इस परिवार से सईदा क़ादिर राणा बुढ़ाना से, शाहनवाज़ राणा खतौली से, नूरसलीम राणा चरथावल से और जाकिर राणा मुज़फ्फरनगर विधानसभा सीट से चुनाव लड़ रहे हैं.
अब इन दावेदारों के दलों पर नज़र डालें तो सईदा क़ादिर और नूरसलीम बसपा के टिकट पर चुनाव लड़ रहे हैं. शाहनवाज़ राणा रालोद के प्रत्याशी हैं और ज़ाकिर राणा निर्दलीय चुनाव लड़ रहे हैं. चारों प्रत्याशियों के नामांकन पत्र में एक ही पता है – गांव सुजडु.
अब इनके आपसी रिश्तों पर बात करते हैं. क़ादिर राणा, जाकिर राणा और नूरसलीम राणा सगे भाई हैं और शाहनवाज़ राणा बड़े भाई के बेटे हैं. चारों एक ही आंगन में रहते हैं. चारों का अपना समृद्ध राजनीतिक इतिहास है, यह अदालता बदलता रहता है. बात क़ादिर राणा से शुरू करें तो वे सपा से 60 हजार वोट लेकर शहर विधानसभा चुनाव हार गए और रालोद के टिकट पर 2007 में विधायक बन गए. इससे पहले वो कांग्रेस से एमएलसी रहे, समाजवादी पार्टी के टिकट पर कई बार चुनाव लड़े. कांग्रेस और समाजवादी पार्टी दोनों के जिलाध्यक्ष रहे. 2009 मे बसपा के टिकट पर सांसद बने. 2014 में बसपा के टिकट पर फिर लोकसभा लड़े और संजीव बालियान से हार गए. अब उनकी पत्नी सईदा क़ादिर राणा बुढ़ाना से बसपा की विधानसभा प्रत्याशी हैं.
क़ादिर राणा के एक भाई नूरसलीम राणा 2012 में बसपा के टिकट पर चरथावल से विधायक चुन लिए गए अब फिर एक मजबूत प्रत्याशी के तौर पर चुनाव लड़ रहे हैं. राणा परिवार का गांव सुजडु इसी विधानसभा के अंतर्गत आता है. बुढ़ाना से सईदा राणा भी चुनाव जीतने की ओर बढ़ रही हैं, शाहनवाज़ राणा अब रालोद से लड़ रहे हैं. पहले उनकी विधानसभा बिजनौर थी, फिर मीरापुर हुई. सबसे पहला चुनाव उन्होंने कैराना से लड़ा. फिर इलाहाबाद बार कॉउंसिल, फिर जिला पंचायत मुजफ्फरनगर, फिर बिजनौर विधानसभा, फिर बिजनौर जिला पंचायत, फिर मीरापुर और अब खतौली.
शाहनवाज़ राणा के दलबदल का इतिहास भी देखा जाना चाहिए. 2004 में बसपा से कैराना, 2007 बसपा से ही बिजनौर, 2012 रालोद से बिजनौर विधानसभा, 2012 सपा से जिला पंचायत मुजफ्फरनगर, 2014 में समाजवादी पार्टी से बिजनौर लोकसभा. 2017 में मीरापुर से समाजवादी पार्टी ने प्रत्याशी घोषित किया. कांग्रेस में सीट जाने की सम्भावना मे दो दिन पहले कांग्रेस से जुड़ गए और सीट चली गयी सपा के हिस्से में. तब उन्होंने मीरापुर विधानसभा छोड़कर खतौली से रालोद का टिकट हासिल कर ताल ठोंक दी. यानी शाहनवाज़ राणा ने तीन दिन में तीन पार्टियां बदलीं. इसके अलावा वो 3 सीट भी बदल चुके हैं. इन सबके बावजूद शाहनवाज़ राणा अब भी खतौली से मजबूत चुनाव लड़ रहे हैं.
अब जाकिर राणा 2001 में नजदीकी अंतर से जिला पंचायत अध्यक्ष बनते-बनते रहे गए. 2008 में केंद्र सरकार ने उन्हें राज्यमंत्री का दर्जा दिया और अब मुज़फ्फरनगर शहर से निर्दल चुनाव लड़ रहे हैं.
मुजफ्फरनगर और आसपास की राजनीति में महत्वपूर्ण भूमिका रखने वाले राणा परिवार का मुस्लिम राजपूत बिरादरी में खासा दबदबा है. पश्चिमी उत्तर प्रदेश के स्टील किंग राणा परिवार के दबंगई के किस्से यहां सुने जा सकते हैं. अस्सी के दशक में सबसे पहले क़ादिर राणा किदवईनगर से सभासद चुने गए थे. अब इनका परिवार जिले का सबसे शक्तिशाली परिवार है.
आज भी यह परिवार चार विधानसभाओं में मजबूत दावेदारी के साथ चुनाव लड़ रहा है. राणा परिवार का विवादों से भी गहरा नाता है मगर इनके दबदबे और मुस्लिम समुदाय में इनकी पकड़ के चलते चुनाव जीतने की संभावना बनते देख राजनीतिक दल इनके साथ अदला-बदली कर लेते हैं. इसीलिए एक ही छत के नीचे रहने वाले चार लोग अलग-अलग विधानसभाओं में अलग-अलग राजनीतिक गुटों के साथ चुनाव लड़ रहे हैं.
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