#HajFacts: हज सब्सिडी —कितनी हक़ीक़त, कितना फ़साना?

अफ़रोज़ आलम साहिल, TwoCircles.net

नई दिल्ली : देश में ‘हज सब्सिडी’ हमेशा से राजनीतिक बहस का विषय रही है. इस पर जमकर सियासत भी हुई है, लेकिन आप आज जानकर हैरान रह जाएंगे कि इस ‘सब्सिडी’ का लाभ मुसलमान नहीं, सरकारी अधिकारी व मंत्री उठा रहे हैं.


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जब से सुप्रीम कोर्ट ने ये आदेश दिया है कि अगले दस साल में धीरे-धीरे करके ‘हज सब्सिडी’ पूरी तरह से ख़त्म कर दिया जाए, तब से इन सरकारी अधिकारी व मंत्रियों की चिंता बढ़ने लगी हैं, क्योंकि वे अब घोटाला नहीं कर पाएंगे.

दरअसल, हज सब्सिडी वो सब्ज़-बाग़ है, जिसे सरकार दिखाती तो मुसलमानों को है, लेकिन उसके फल खुद ही डकार जाती है. जी हां! ‘हज सब्सिडी’ के नाम पर पिछले दस साल में इस देश में हजारों करोड़ का घोटाला हुआ है. TwoCircles.net की इस ख़ास सिरीज़ #HajFacts आज इसी पर विस्तार से चर्चा करेंगे.

सबसे पहले आपको बता दें कि ‘हज सब्सिडी’ है क्या? तो इसका जवाब अल्पसंख्यक कल्याण मंत्री मुख़्तार अब्बास नक़वी ने पिछले दिनों लोकसभा में एक प्रश्न के जवाब में कुछ इस प्रकार दिया —‘हज यात्रियों को ले जाने की व्यवस्था करने की ज़िम्मेदारी भारत सरकार के नागर विमानन मंत्रालय की है. हाजियों को ले जाने वाले एयरलाइंस को ये मंत्रालय कुछ आर्थिक राशि उपलब्ध कराती है, यही राशि ‘हज सब्सिडी’ है. जो निर्धारित किए गए हवाई किराया और हज कमिटी को हाजियों द्वारा भुगतान किए गए एक समान किराए के बीच का अंतर होता है. ये सब्सिडी सीधे एयरलाइन्स को अदा की जाती है.’

यानी अल्पसंख्यक कल्याण मंत्री की इन बातों से बिल्कुल स्पष्ट हो गया कि ‘हज सब्सिडी’ हाजियों को नहीं, बल्कि इंडियन एयरलाइन्स कम्पनी को दी जाती है.

यहां ये भी बताते चलें कि साल 2016 में हाजियों से एयर-फेयर के नाम पर 45 हज़ार रूपये लिए गए थे, लेकिन इस बार एयर-फेयर के नाम पर अधिकतम 70085 रूपये और न्यूनतम 58,254 रूपये लिए गए हैं. जबकि सरकारी तौर पर एयरलाइन का आने जाने का टिकट क़रीब 65-70 हज़ार रुपये का बताया जाता है.

यही नहीं, अगर हाजी के साथ कोई मेहरम (70 साल से अधिक बुजुर्ग हाजियों के साथ जाने वाला साथी) भी है तो एयर-फेयर का खर्च और भी अधिक होता है. अगर ये मेहरम असम से जा रहा है तो उसके लिए इस बार एयर-फेयर 1,11,723 रूपये है तो वहीं यदि बिहार से है तो उसे 1,06,868 बतौर एयर-फेयर देना होगा. बाक़ी राज्यों का किराया आप नीचे टेबल में देख सकते हैं.

हालांकि प्राइवेट टूर ऑपरेटरों की मानें तो वो यही टिकट अधिकतम 25-30 हज़ार में करा देते हैं. और तो और अगर आप आज किसी भी ऑनलाइन टिकट बुक करने वाली वेबसाइट पर जाएं तो इसी हज के दौरान आने-जाने का टिकट अधिकतम 30-35 हज़ार में मिल रहा है. तो ऐसे में अंदाज़ा लगाया जा सकता है कि इस ‘हज सब्सिडी’ का लाभ कौन उठा रहा है.

अब ‘हज सब्सिडी’ के आंकड़ों की बात करें तो अल्पसंख्यक कल्याण मंत्रालय के अनुसार पिछले साल यानी 2016 में 405 करोड़ रूपये बतौर ‘हज सब्सिडी’ एयरलाइन्स को दिया गया है. वहीं 2015 में ये रक़म 529.51 करोड़, 2014 में 577.07 करोड़, 2013 में 680.03 करोड़ और 2012 में 836.55 करोड़ रुपये थी.

अगर हम इससे पिछले दस साल की ‘हज सब्सिडी’ के आंकड़ों पर नज़र डालें तो समझ में आएगा कि यह सिर्फ़ सरकारी भ्रष्टाचार का एक बेहतरीन ज़रिया है.

ग़ौरतलब है कि साल 2011 में सुप्रीम कोर्ट में एक स्पेशल लीव पेटिशन निजी टूर संचालक के लिए हज कोटे को लेकर मुंबई हाईकोर्ट के फ़ैसले के ख़िलाफ़ विदेश मंत्रालय की ओर से दायर की गई थी, जिसे बाद में सुप्रीम कोर्ट ने जनहित याचिका में तब्दील कर दिया था.

इसी केस में विदेश मंत्रालय के सचिव विवेक जेफ़ ने सरकार द्वारा ‘हज सब्सिडी’ और हज से संबंधित अन्य कार्यों के बारे में सुप्रीम कोर्ट में हलफ़नामा दायर किया था. इस हलफ़नामे में ‘हज सब्सिडी’ की पूरी जानकारी मौजूद थी जिसके आंकड़े हमें चौंका देने के लिए हैं. वहीं सूचना के अधिकार के माध्यम से इस पत्रकार को हज सब्सिडी पर जो जानकारी दी गई थी और इस हलफ़नामा में जो जानकारी मौजूद है, दोनों में थोड़ा-बहुत हेर-फेर भी है. 

हलफ़नामे के अनुसार 2011 वर्ष में सरकार द्वारा दी गई सब्सिडी 685 करोड़ रुपये है, लेकिन आरटीआई से मिले कागज़ों में वर्ष 2011 में अदा की गई सब्सिडी 605 करोड़ रुपये ही दिखाया गया था. हलफ़नामा और आरटीआई से मिले कागज़ों में 80 करोड़ रुपये का अंतर ‘हज सब्सिडी’ के नाम पर सरकार के घोटाले की एक नए प्रकरण की ओर संकेत कर रहा था. विदेश मंत्रालय या तो सुप्रीम कोर्ट से झूठ बोल रही थी या फिर सूचना के अधिकार अधिनियम के तहत दी गई जानकारी में गड़बड़ कर रही थी.

बताते चलें कि साल 2011 में 124921 हाजी हज कमेटी ऑफ इंडिया की ओर से हज के लिए गए थे. सरकार की ओर से एयर-फेयर पर प्रति हाजी 38,800 की सब्सिडी अदा की गई. इस लिहाज से सब्सिडी की कुल राशि 484 करोड़ होती है. लेकिन हलफ़नामे में सरकार का कहना है कि इन सब्सिडी पर 685 करोड़ रुपये खर्च किए गए. अब सवाल ये है कि 202 करोड़ रुपये कहां खर्च किए गए?

इस तरह सुप्रीम कोर्ट में पेश हलफ़नामा के अनुसार पिछले पांच सालों (2007-11) में सरकार ने 790 करोड़ का ज़बरदस्त घोटाला किया था. यह अंतर तो सिर्फ़ कागज़ों में इतना था. वास्तव में जब हम हिसाब लगाने बैठेंगें तो घोटाले का आंकड़ा हजारों करोड़ रुपये में आएगा. क्योंकि हाजियों की संख्या में भी काफी फर्क़ था. (इस आंकड़ें को आप यहां देख सकते हैं — Haj Subsidy Scam: Where were 790 Crore Spent?)

अब इस साल भी ये देखना दिलचस्प होगा कि हर हाजी से क़रीब 70 हज़ार रूपये एयर-फेयर लेने के बाद भी ये सरकार इस बार कितना पैसा ‘हज सब्सिडी’ के नाम पर दिखाती है.

जानकार ये भी बताते हैं कि अगर सरकार हाजियों को सिर्फ़ इंडियन एयरलाइन्स के ‘थकेले जहाज़’ से जाने की शर्त को ख़त्म कर दे और उसके बदले हज कमिटी ऑफ़ इंडिया को ग्लोबल टेंडर मंगवाने की इजाज़त दे दे तो हर साल हाजी अभी जो रक़म एयर-फेयर के नाम पर लिया जा रहा है, उसके आधे में आना-जाना हो सकता है और देश के दूसरे धर्म के लोगों को ये शिकायत भी नहीं रहेगी कि मुसलमान सरकारी सब्सिडी पर हज करने जाता है.   

आज हर भारतीय मुसलमान की ख़्वाहिश है कि सरकार 2022 का इंतज़ार न करे, बल्कि इसी साल इस तथाकथित ‘हज सब्सिडी’ को समाप्त कर दे. सरकार का ये फैसला भारतीय मुसमलानों के साथ-साथ देश के भी हक़ में होगा.

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नोट : TwoCircles.net की ये ख़ास सीरीज़ #HajFacts आगे भी जारी रहेगा. अगर आप भी हज करने का ये फ़र्ज़ अदा कर चुके हैं और अपना कोई भी एक्सपीरियंस हमसे शेयर करना चाहते हैं तो आप [email protected] पर सम्पर्क कर सकते हैं. हम चाहते हैं कि आपकी कहानियों व तजुर्बों को अपने पाठकों तक पहुंचाए ताकि वो भी इन सच्चाईयों से रूबरू हो सकें.

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